*कुण्डलिया*
इक विलायती नार पर, पिघला दिल ज्यों मोम
कुछ लोगों के बस गया, रोम रोम में रोम
रोम रोम में रोम, बसाकर जुटे मवाली
देश कर दिया होम, तिजोरी कर दी खाली
जहाँ कहीं भी होयँ, चरण-चाटू निहायती
सौ करोड़ पर राज, करेगी इक विलायती
इक विलायती नार पर, पिघला दिल ज्यों मोम
कुछ लोगों के बस गया, रोम रोम में रोम
रोम रोम में रोम, बसाकर जुटे मवाली
देश कर दिया होम, तिजोरी कर दी खाली
जहाँ कहीं भी होयँ, चरण-चाटू निहायती
सौ करोड़ पर राज, करेगी इक विलायती