डीपी सिंह की रचनाएं

कुण्डलिया

अंगूठे को कम नहीं, आँको बरखुरदार
इससे ही तो आजकल, है सबका “आधार”
है सबका आधार, किसी भी दफ़्तर जाओ
सरकारी अनुदान, दवा या राशन पाओ
ठेंगे पर संसार, रखो, मत बैठो रूठे
मिले अनेकों लाभ, दिखाने के अंगूठे

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