संचिता सक्सेना की कविता : क्या एक मात्र समाधान था ?

खुद को मार के मर तो जाओगे,
क्या अपनी मजबूरियां मार पाओगे,
तेरे पीछे उन मजबूरियां को,
कोई और जीयेगा,
ना बर्दाश्त कर सका वो तो,
तेरा रास्ता ही चुनेगा ।

माना दर्द कम ना होगा तेरा,
जो तूने आत्महत्या को अपना साथी बनाया,
पर क्या आत्महत्या ने तुझे,
तेरे दर्द से बचाया,
तकलीफे हमें मजबुर करती है,
पर क्या मार जाने से तकलीफे मरती है।

मौत से हासिल सिर्फ मौत होती है,
अंत होता है एक ज़िन्दगी का,
जब मौत रोती है,
माना ज़िन्दगी का अंत मौत से ही है,
पर आत्महत्या कर,
ज़िन्दगी को खो देना
क्या एक मात्र समाधान था ?

संचिता सक्सेना, शिक्षिका और सामाजिक कार्यकर्ता

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

three × 3 =