डॉ. आर.बी. दास की कलम से- दीपावली

डॉ. आर.बी. दास, पटना। दीपावली को दिवाली के नाम से भी जाना जाता है। जिसका मतलब होता है दीपों की पंक्ति। यह भारत के सबसे प्रमुख त्योहारों में से एक है। महाकाव्य रामायण के अनुसार रावण को हराने के बाद भगवान राम के अयोध्या लौटने के उपलक्ष्य में दिवाली मनाई जाती है। श्रीराम को 14 साल के लिए अयोध्या से उनके पिता, राजा दशरथ द्वारा बनवास दिया गया था। उनकी पत्नी, माता सीता और भाई लक्ष्मण भी साथ थे। तीनों ने 14 साल जंगलों में भटकते हुए विभिन्न चुनौतियों का सामना किया।

कई लोग दीपावली को विष्णु की पत्नी तथा उत्सव, धन और समृद्धि की देवी लक्ष्मी से जुड़ा हुआ मानते हैं।दीपावली का 5 दिवसीय महोत्सव देवताओं और दानवों द्वारा दूध के लौकिक सागर के मंथन से पैदा हुई लक्ष्मी के जन्म दिवस से शुरू होता है।

जैन परंपरा के अनुसार, दीपक जलाने की यह प्रथा सर्वप्रथम 527 ई. पूर्व महावीर के निर्वाण के दिन शुरू हुई, जब महावीर की अंतिम शिक्षाओं के लिए एकत्र हुए 18 राजाओं ने घोषणा जारी की कि “महावीर के महान प्रकाश” की याद में दीपक जलाए जाए। यह परंपरा आज भी जारी है और इसे रोशनी के त्योहार के रूप में मनाया जाता है।

दीपावली पर घर की सफाई बाहर के साथ-साथ आंतरिक शुद्धि का भी प्रतीक है, जो आत्मा की पवित्रता को दर्शाता है। माता लक्ष्मी की पूजा केवल भौतिक धन के लिए नहीं बल्कि आत्मिक समृद्धि और आंतरिक शांति के लिए भी की जाती है।

Dr. R.B. Das
Adv. supreme court,
Advisor (UGC)
National Sec.
SC/ST commission

दीपावली अंधकार पर प्रकाश की जीत, बुराई पर अच्छाई और अज्ञानता पर ज्ञान की जीत का प्रतीक है। यह हमारे जीवन से अंधकार, नकारात्मकता और संदेह के उन्मूलन का प्रतीक है। यह त्योहार हमारे अंदर स्पष्टता और सकारात्मकता के साथ अपने भीतर को रोशन करने का संदेश देता है। इस दिन (कार्तिक अमावस्या) लोग देवी लक्ष्मी और भगवान गणेश की पूजा करके, प्रियजनों के साथ उपहारों का आदान प्रदान करके और दान करके समृद्धि के लिए जश्न मनाते हैं और पूजा करते हैं….।

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