अशोक वर्मा “हमदर्द” की कविता : सपना या हकीकत

।।सपना या हकीकत।।
अशोक वर्मा “हमदर्द”

सपने में देखा मैंने
एक अनजानी राह पर चल रहा था,
चारों तरफ अंधेरा था
और मैं अकेला खड़ा था।

अचानक मेरे सामने
एक परछाई सी आई,
चेहरे पर गंभीरता थी
पर नजरों में सच्चाई।

उसने मुझे दिखाया
मेरा ही बेजान शरीर,
सफेद कफन में लिपटा
और जलता हुआ शरीर।

लोग खड़े थे चुपचाप
कुछ उदास कुछ बेसुध,
कुछ के चेहरे पर
दबी हुई मुस्कान थी स्पष्ट।

मैं देखता रहा
इस अजीब मंजर को,
तभी किसी ने
मेरा हाथ थाम लिया धीरे से।

मुड़कर देखा तो
हैरान रह गया मैं,
वो कोई और नहीं
मेरा भगवान था, मेरा सहारा था।

चेहरे पर मुस्कान
और नंगे पांव खड़ा था,
उसकी आंखों में
एक अनकही बात थी।

मैंने पूछा उससे
क्यों आया तू आज यहाँ?
वो मुस्कराया और बोला
तूने जपा था मेरा नाम हर बार,
आज उसी का हिसाब लेने आया हूँ यार!

रो पड़ा मैं
अपनी भूलों पर,
सोचा जिसने मुझे
हर घड़ी याद रखा,
वो मुझे आज
यहां क्यों लाया।

तभी आंख खुली
और मैं बिस्तर पर था,
समझ गया अब
सपना था, पर सीख गहरी थी।

अब से हर दिन
उसका नाम लूंगा,
हर घड़ी उसे
अपना मान लूंगा।

अशोक वर्मा “हमदर्द” : लेखक, कवि

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