प्यार के भवर जाल में पिसती जिंदगी की कहानी : लव मैरिज, दूसरी किस्त

गतांक से आगे : दूसरी किस्त…

अशोक वर्मा “हमदर्द”, चांपदानी। चांदनी ने अपनी मां को विदा कर दिया, लेकिन उनके शब्द उसके दिल में गहरे पैठ गए थे। अपनी बेटी स्नेहा को वह उन दुखों से बचाना चाहती थी, जो उसने झेले थे। लेकिन स्नेहा का मन सवालों से घिरा था। क्या प्यार करना सचमुच गलत था? क्या उसकी मां को सिर्फ इसलिए कष्ट सहने पड़े क्योंकि उन्होंने अपने दिल की सुनी थी?

स्नेहा अब 18 साल की हो चुकी थी। वह पढ़ाई में तेज थी और अपने दोस्तों के साथ खूब घुल-मिल कर रहती थी। एक दिन कॉलेज से लौटते वक्त उसकी मुलाकात अर्जुन से हुई, जो उसके कॉलेज का ही छात्र था। अर्जुन हमेशा से उसकी क्लास का सबसे समझदार और सुलझा हुआ लड़का माना जाता था। दोनों की बातें शुरू हुई और धीरे-धीरे दोस्ती गहरी होने लगी।

अर्जुन स्नेहा की समझदारी और खुले विचारों से बहुत प्रभावित था और स्नेहा अर्जुन की बातों और उसके संजीदा स्वभाव की कायल थी। कुछ महीनों के बाद, अर्जुन ने स्नेहा से अपने दिल की बात कही, “स्नेहा, मैं तुमसे प्यार करने लगा हूँ। तुम मेरे लिए सिर्फ एक दोस्त नहीं हो, बल्कि मेरे जीवन का सबसे महत्वपूर्ण हिस्सा हो।”

स्नेहा ने अर्जुन की बात सुनी और तुरंत चुप हो गई। उसे अपनी माँ की हालत याद आ गई, और वो सारी बातें, जो उसकी माँ ने उसे समझाई थीं। उसने अर्जुन से कहा, “अर्जुन, मैं भी तुमसे प्यार करती हूँ, लेकिन मुझे अपनी माँ की बातें याद हैं। उन्होंने मुझे प्यार के रास्ते पर जाने से मना किया है। मैं नहीं चाहती कि मेरे फैसले से मेरी माँ को और कष्ट हो।”

अर्जुन ने उसकी बात समझी और कहा, “मैं तुम्हारी माँ का सम्मान करता हूँ, स्नेहा। लेकिन प्यार करना कोई अपराध नहीं है। हमें बस समझदारी से फैसले लेने की जरूरत है। हम जल्दबाजी में कोई निर्णय नहीं लेंगे। पहले हम अपने करियर पर ध्यान देंगे और फिर धीरे-धीरे अपने परिवार को समझाएंगे।”

स्नेहा को अर्जुन की बातों में सच्चाई दिखी। उसने फैसला किया कि वह इस बार जल्दबाजी में कोई कदम नहीं उठाएगी। उसने अपने दिल की बात अपनी माँ को बताने का फैसला किया। एक शाम, जब वह और उसकी माँ साथ बैठी थीं, स्नेहा ने अपनी माँ से कहा, “माँ, मैं आपको कुछ बताना चाहती हूँ। मुझे अर्जुन से प्यार हो गया है। लेकिन इस बार मैं कोई गलत कदम नहीं उठाऊंगी। हम दोनों पहले अपने करियर पर ध्यान देंगे और फिर आपकी और पापा की मर्जी से ही आगे बढ़ेंगे।”

चांदनी ने यह सुनकर एक गहरी सांस ली। उसने अपनी बेटी के चेहरे पर वही मासूमियत देखी, जो उसके चेहरे पर भी कभी हुआ करती थी। लेकिन इस बार परिस्थितियां कुछ अलग थीं। उसने स्नेहा को गले से लगाते हुए कहा, “बेटा, मुझे तुम पर पूरा भरोसा है। अगर तुमने सोच-समझकर यह फैसला लिया है, तो मैं तुम्हारे साथ हूँ। बस इतना ध्यान रखना कि जो गलतियां मैंने कीं, वो तुम मत दोहराना। प्यार करने में कोई बुराई नहीं है, बस सही वक्त और सही फैसले जरूरी हैं।”

चांदनी के लिए यह पल बहुत कठिन था, लेकिन उसने अपनी बेटी को समर्थन देने का फैसला किया। उसे यह अहसास हो चुका था कि उसकी बेटी उसकी तरह जल्दबाजी में नहीं, बल्कि समझदारी से अपने जीवन का फैसला ले रही है। उसने स्नेहा से कहा, “अगर तुम्हें अर्जुन से सच्चा प्यार है, तो मैं और तुम्हारे पापा तुम्हारे साथ हैं। बस हमें समय दो, हम भी अर्जुन से मिलकर उसे समझेंगे।”

इस नई शुरुआत ने चांदनी के दिल में एक नई उम्मीद जगाई थी। वह चाहती थी कि उसकी बेटी वह सब पाए, जो उसने खो दिया था। स्नेहा की समझदारी और अर्जुन का धैर्य देखकर चांदनी को यकीन होने लगा था कि इस बार कहानी का अंत सुखद होगा।

अगली किश्त में, देखेंगे कि अर्जुन और स्नेहा के रिश्ते को परिवार की स्वीकृति कैसे मिलती है और क्या उनके सामने आने वाली चुनौतियाँ उनके रिश्ते को और मजबूत बना पाती हैं।

अशोक वर्मा “हमदर्द”, लेखक

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