भूपेन्द्र अस्थाना के क्यूरेशन में “सेव द टाइगर” अखिल भारतीय पेंटिंग प्रदर्शनी 26 जुलाई से

“सेव द टाइगर” अखिल भारतीय पेंटिंग प्रदर्शनी व कला शिविर रणथंभौर राष्ट्रीय उद्यान में 26 से 29 जुलाई तक
देश भर के 18 चित्रकारों की टाइगर पर आधारित 18 कृतियाँ होंगी प्रदर्शित
जिसमें से कुल 8 चित्रकार उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ से हैं

लखनऊ। भारत सरकार द्वारा संचालित सेव टाइगर प्रोजेक्ट के 51 वर्ष पूर्ण होने के उपलक्ष्य में राजस्थान के रणथंभौर, सवाई माधोपुर स्थित रणथंभौर राष्ट्रीय उद्यान में अखिल भारतीय पेंटिंग प्रदर्शनी शीर्षक “सेव द टाइगर“ का आयोजन दिनांक 26 जुलाई 2024 से किया जा रहा है। इस प्रदर्शनी के क्यूरेटर लखनऊ के युवा चित्रकार भूपेंद्र कुमार अस्थाना एवं कोऑर्डिनेटर लखनऊ बुक फेयर के संयोजक मनोज एस चंदेल हैं। प्रदर्शनी के क्यूरेटर भूपेंद्र कुमार अस्थाना ने जानकारी देते हुए बताया कि शीर्षक “सेव द टाइगर“ प्रदर्शनी जयपुर आर्ट समिट के द्वारा रणथंभौर राष्ट्रीय उद्यान में लगाई जा रही है।

प्रदर्शनी में देश भर से कुल 18 चित्रकारों के कलाकृतियों को प्रदर्शित किया जाएगा। साथ ही एक कला शिविर का भी आयोजन किया जाएगा जिसमें देश भर से 21 चित्रकार भाग लेंगे। ज्ञातव्य हो की यही प्रदर्शनी टाइगर इन मेट्रो शीर्षक से पिछले साल लखनऊ के हजरतगंज मेट्रो स्टेशन परिसर में लगाई गयी थी। उसी शृंखला में हम यह प्रदर्शनी राजस्थान में करने जा रहे हैं। जिसे हजारों की संख्या में लोगों ने अवलोकन किया था। इस प्रदर्शनी में देश के लगभग 9 राज्यों उत्तर प्रदेश, बिहार, राजस्थान, छत्तीसगढ़, झारखंड, जमशेदपुर, महाराष्ट्र, नई दिल्ली, उड़ीशा से 18 चित्रकारों के 18 कलाकृतियों को प्रदर्शित किया जाएगा।

इस प्रदर्शनी में कुल 8 चित्रकार उत्तर प्रदेश से अमित कुमार, संजय कुमार राज, सर्वेश पटेल, जितेंद्र कुमार, दीपेंद्र सिंह, राहुल शाक्या, श्रीयांशी सिंह, प्रशांत चौधरी उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ से हैं। नई दिल्ली से अनूप कुमार चाँद, उमा शंकर पाठक, बिहार से अबधेश करन मधुबनी, मनोज कुमार हंसराज, जमशेदपुर से फरहाद हुसैन, झारखंड से संजय शर्मा, उड़ीसा, गोपाल समांतरे, छत्तीसगढ़ से ऋषभ राज, महाराष्ट्र से रामचंद्र खराटमल, राजस्थान से लाखन सिंह जट की भी कलाकृतियों को प्रदर्शित किया जाएगा। यह प्रदर्शनी आगामी 29 जुलाई 2024 तक कलाप्रेमियों के लिए लगी रहेंगी।

जयपुर आर्ट समिट के संस्थापक शैलेंद्र भट्ट कहते हैं कि इस तरह के प्रबंधन और समर्पण की आवश्यकता का दुखद प्रमाण यह है कि जंगलों में पचास हजार बाघों से दो हजार से भी कम बाघों तक पहुंचने में हमें एक शताब्दी का समय लगा है। जलवायु परिवर्तन के बढ़ते खतरों और इसके प्रभावों की बहुलता के साथ-साथ जिस पर्यावरण में हम रहते हैं, जहां हमारे ग्रह पर अधिकांश लोग रहते हैं, की बिगड़ती गुणवत्ता को देखते हुए, हमारे वनों को संरक्षित करना अब पहले से कहीं अधिक महत्वपूर्ण है। किसी न किसी रूप में प्रदूषण के संपर्क में हैं।

जैसा कि हम जानते हैं, मानव जाति और जीवन के भरण-पोषण के लिए इस प्रजाति को इसके निवास स्थान के साथ संरक्षित करना अब आवश्यक है। हमें न केवल पृथ्वी के लिए, बल्कि अपने लिए भी अपने जंगलों और उसके जंगली निवासियों को संरक्षित करने की आवश्यकता है। हम चीजों के बड़े पैमाने पर धूल का एक कण मात्र हैं। पृथ्वी पर हमारे अस्तित्व के लिए उपयुक्त परिस्थितियाँ बनी रहें, इसके लिए हमें अभी से कार्य करना होगा। यदि हम चाहते हैं कि हमारे बच्चे इस खूबसूरत ग्रह की भव्यता से आश्चर्यचकित हो सकें, तो हमें अभी से कार्य करना चाहिए।

यदि हम चाहते हैं कि अस्तित्व की लड़ाई में प्रकृति हमारी सहयोगी बने, तो हमें अभी से कार्य करना होगा। यह वह मुद्दा है जिसे हम सबको बहुत देर होने से पहले समझने की जरूरत है। इस प्रतिष्ठित प्रजाति (और इस प्रक्रिया में स्वयं) के संरक्षण के अपने लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए, हम बेहतर वन्यजीव प्रबंधन नीतियों, स्थानीय समुदायों के साथ साझेदारी बनाने और जागरूकता को बढ़ावा देने की दिशा में काम कर रहे हैं।

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