दामन छोडावत जाता
उहँवे जाके अंटकि जाता, जहाँ से दामन छोडावत जाता,
चलल रहे जहँवा से रोवत, उहे दुआरी खटखटा रहल बा II१II
सिंकुड़ के चादर में सूते वाला, गोड़ के अइसे पसारत जाता,
बढ़ल तनिक सा दीन-दासा, आपन जरूरत बढ़ा रहल बा II२II
तहरे दीया, तहरे बाती, तहरे दम पर रौशनी बा,
हिफ़ाजत में तहरे ज़िन्दगी के, चिराग सब झिलमिला रहल बा II३II
ई केकरा ज़ुल्फन से चुपके-चुपके निकल के खुशबू मुस्कुरा रहल बा,
ई हार, बाली, गोड़ के पायल, केकर हs नभ के सजा रहल बा II४II
बढ़ा के रफ़्तार ज़िन्दगी के, ना जाने कादुनि पा गईल बा,
जुनूं बा मन्ज़िल के छू लिही ऊ, खुद के माटी मिला रहल बा II५II
ऊ छन जे अब तक मिटा के गईल, रोआ के गईल हंसत जिन्दगी,
ख्याल परल तs आँखी आँसू, ओठे मुस्की ले आ रहल बा II६II
ना ऊ महफिल, ना कवनो स्वागत, ना सूने वाला, ना कहे वाला,
“ऋषि” गजल, नगमा अउर तराना, किताब में बस छट-पटा रहल बा II७II