श्रीलंकाई चित्रकार के. मैथिस कुमार की दो दिवसीय एकल प्रदर्शनी “पावर्टी एंड प्रोस्पेरिटी” राज्य ललित कला अकादमी में लगाई गयी
लखनऊ। “वातावरण सभी के लिए समान है, यह सभी के साथ एक जैसा व्यवहार करता है, इसलिए हम सभी एक खुशहाल जीवन जीने के हकदार हैं लेकिन गरीबी कुछ मनुष्यों के लिए इसमें बाधा बनती है।” ऐसे ही ज्वलंत और सम्मोहक दृश्य कथा के माध्यम से गरीबी और समृद्धि के विषयों की पड़ताल करती हुई श्रीलंका के मूल निवासी और कला एवं शिल्प महाविद्यालय लखनऊ से दृश्यकला में हालही में मास्टर्स पूर्ण किये चित्रकार के. मैथिस कुमार के कलाकृतियों की एक चित्रकला प्रदर्शनी बुधवार को लगाई गयी। यह प्रदर्शनी उत्तर प्रदेश राज्य ललित कला अकादमी, कैशरबाग, लखनऊ में श्रीलंकाई कलाकार के. मैथिस कुमार द्वारा एकल दृश्य कला प्रदर्शनी “पावर्टी एंड प्रोस्पेरिटी” लगाई गयी। प्रदर्शनी का उद्घाटन मुख्य अतिथि, कॉलेज ऑफ आर्ट एंड क्राफ्ट, लखनऊ विश्वविद्यालय के प्राचार्य प्रोफेसर रतन कुमार और विशिष्ट आमंत्रित अतिथियों में कला एवं शिल्प महाविद्यालय के प्रो. आलोक कुमार, रविकांत पांडे और चित्रकार, क्यूरेटर व कला लेखक भूपेन्द्र कुमार अस्थाना ने दीप जलाकर शुभारंभ किया।
इस अवसर पर प्रोफेसर रतन कुमार ने कहा कि, “मैथिस कुमार ने न केवल काम को लगातार किया है बल्कि दोनों देशों, भारत और श्रीलंका के बीच संबंधों को भी मजबूत किया है।” प्रोफेसर आलोक कुमार ने कहा, “मैं छात्रों से सांस्कृतिक आदान-प्रदान और कलात्मक सहयोग को बढ़ावा देने के लिए अपने देशों में भी इसी तरह की प्रदर्शनियां आयोजित करने का आग्रह करता हूं।” कलाकार व कला लेखक भूपेन्द्र अस्थाना ने भी मैथिस कुमार को उनके शो के लिए बधाई देते हुए कहा, “आपका काम युवा पीढ़ी के लिए वास्तव में प्रेरणादायक है और हम सभी को अपनी कलात्मक गतिविधियों में गहराई से उतरने के लिए प्रोत्साहित करता है।”
के. मैथिस कुमार का काम एक ज्वलंत और सम्मोहक दृश्य कथा के माध्यम से गरीबी और समृद्धि के विषयों की पड़ताल करता है। उनकी कला मानव अस्तित्व के द्वंद्व और हमारी दुनिया को आकार देने वाले सामाजिक-आर्थिक विभाजन को दर्शाती है। यह प्रदर्शनी इन विषयों के भीतर विरोधाभासों और जटिलताओं की गहन खोज है, जो मैथिस कुमार के अद्वितीय दृष्टिकोण और कलात्मक कौशल को प्रदर्शित करती है। अपने कृतियों पर चर्चा करते हुए के. मैथिस कुमार ने बताया कि विषय मेरे अपने जीवन के अनुभव से प्रेरित हैं। यह एक अनोखी आत्म-अभिव्यक्ति और व्यक्तिगत है। एक कलाकार के रूप में मेरे लिए अपनी आंतरिक भावना को व्यक्त करना अत्यंत महत्वपूर्ण रहा है। एक कलाकार के रूप में मेरे लिए मेरी रचनात्मकता की पूरी प्रक्रिया और उद्देश्य खुद को अभिव्यक्त करना है।
मेरे कला कार्य के माध्यम से दो मुख्य विषय उभर कर सामने आते हैं, वे हैं समाज और पर्यावरण, जो हवाई दृश्य और ज्यामितीय अमूर्त रूपों में लैंडस्केप पेंटिंग के विचार से जुड़े हुए हैं। वे मलिन बस्तियों में गरीब लोगों की जीवन स्थितियों पर आधारित हैं और गरीबी से संबंधित कुछ अन्य मुद्दों का भी पता लगाया जा रहा है जैसे पर्यावरण प्रदूषण और उसी प्रदूषित गंदे वातावरण में रहने की स्थिति, लंबे समय तक चलने वाली गरीबी का जीवन जो पीढ़ियों तक चलती है, की कठोरता जीवन, सामाजिक अलगाव और असमानता, सामाजिक संरचना और इसके पीछे की राजनीति, उत्सव जिनमें बहुत पैसा खर्च होता है और समाज इस पर निर्भर करता है। इसके अलावा, मैंने प्रतीकात्मक रूप से कुछ वस्तुओं का उपयोग किया जो उत्सवों में प्रतिष्ठा को प्रतिबिंबित कर रही हैं और शहरीकरण, विकास को भी चित्रित किया है जो गरीबों की उपेक्षा करता है।
‘गरीबी और समृद्धि’, उस जबरदस्त करुणा के बाद जब मैंने कुछ ऐसा देखा जो मैंने पहले कभी नहीं देखा था, झुग्गियों में पूरी तरह से गरीबी। मैं कहता हूं कि लखनऊ की मलिन बस्तियों की क्रूर, अपरिहार्य गरीबी ने मेरे भीतर एक अपरिवर्तनीय परिवर्तन किया। गरीबों की पीड़ा और इस गरीबी के भीतर के धैर्य ने मुझे प्रभावित किया। मैंने सड़क पर रहने वाले कुछ गरीब बच्चों को पुराने पैबन्द लगे, गंदे कपड़े पहने हुए और बिखरे, लंबे, गंदे बालों में देखा। मैंने इन अनाथ बच्चों को पॉलिथीन बैग में अपशिष्ट पदार्थ इकट्ठा करते हुए देखा, जो भी छोटी-मोटी चीजें उन्हें मिल जाती थी, बेच देते थे। यह मेरी पेंटिंग श्रृंखला के लिए निर्णायक कारक था। जो लोग झुग्गियों में रहते हैं वे अपना घर बनाने के लिए पुराने कपड़े, प्लास्टिक बैग, पॉली बैग, पुराने बैनर आदि का उपयोग करते हैं, इसलिए मैंने अपनी कलाकृति के माध्यम के रूप में कपड़े और ऐक्रेलिक को चुना है जो सीधे झुग्गी और उनके विषय से जुड़ा है। पोशाक मैं कपड़े को छोटे-छोटे टुकड़ों में काटता हूं, फिर झोपड़ियों के आकार में कैनवास पर चिपकाता हूं और झोपड़ियों के रूप में उपयुक्त रंग के धागे से सिलाई करता हूं, झोपड़ियों के बीच निरंतरता होती है और साथ ही आप मेरे कला कार्य में कपड़े के पैच, जुड़ना और धागे का प्रवाह देख सकते हैं। मलिन बस्तियों के निर्माण में देखा गया।
के. मैथिस कुमार श्रीलंका के पूर्वी तट अक्करैपट्टू के आई. कोपाल पिल्लई मैथिस कुमार ने 2015 में प्रथम श्रेणी सम्मान के साथ ईस्टर्न यूनिवर्सिटी (एसवीआईएएस) से दृश्य और तकनीकी कला में स्नातक की डिग्री पूरी की। इसके बाद इन्हे 2016 से 2017 तक SVIAS में अस्थायी व्याख्याता के रूप में नियुक्त किया गया। उसके बाद अभी 2024 में कॉलेज ऑफ आर्ट्स एंड क्राफ्ट्स, लखनऊ विश्वविद्यालय, भारत से विजुअल आर्ट में अपनी मास्टर डिग्री पूरी की।
के. मैथिस कुमार ने ‘नॉन-वायलेंट लिविंग आर्टिस्ट्स’ समूह द्वारा 2017 के बाद से नौ समूह कला प्रदर्शनियों में भाग लिया है, जिसमें सार्वजनिक स्थान पर कला कार्यों का प्रदर्शन साथ ही कलात्मक अभिव्यक्ति के माध्यम से सामुदायिक सहभागिता के लिए जनता के साथ बातचीत भी की है। पूर्वी और उत्तरी प्रांतों के साथ-साथ कोलंबो, श्रीलंका में भी। प्रतिष्ठित वास्तुकार सी. अंजलेंद्रन के लिए कमीशन पर भी काम किया है। एक आयुर्वेदिक स्पा सहित वास्तुकला परियोजनाओं, इसके अलावा इनकी पेंटिंग श्रीलंकाई अग्रणी कला पत्रिका “एआरटीआरए” के संग्रह में हैं, इसने कोलंबो और गैलेरी में इनकी पेंटिंग प्रदर्शित की और “क्यूराडो आर्ट स्पेस” (श्रीलंका) में भी पेंटिंग्स का संग्रह है। के. मैथिस कुमार ने भारत में राज्य ललित कला अकादमी (दिल्ली, लखनऊ), पंजाब कला भवन (चंडीगढ़), रोएरिच रूसी आर्ट गैलरी (हिमाचल), लोकायत आर्ट गैलरी (दिल्ली), और कल्याणी आर्ट गैलरी (पंजाब) में कई समूह कला प्रदर्शनियों में भाग लिया है। साथ ही नेपाल में एक समूह प्रदर्शनी (क्लासिक आर्ट गैलरी) इसके अलावा कई कला कार्यशालाओं, कला शिविर (राजस्थान), कला महोत्सव (पंजाब, उज्जैन) में भाग लिया है। इनके अलावा 1 को कैमलिन आर्ट फाउंडेशन और कलावर्त न्यास आर्ट ट्रस्ट द्वारा दो पुरस्कारों से सम्मानित किया गया।
इस कार्यक्रम का संचालन आंचल पटेल ने की, कार्यक्रम के समन्वयक महेश चतुरंगा थे और डिजाइन अरविंद सिंह (संस्थापक स्विस डिजाइन स्टूडियो) द्वारा किया गया। इस अवसर पर संजय राज, अजय यादव, प्रशांत चौधरी, राहुल रॉय सहित बड़ी संख्या में कलाकार व छात्र उपस्थित रहे।
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