डीपी सिंह की कुण्डलिया

कुण्डलिया ————– जनता के दुख-दर्द को, खूँटी पर दो टाँग। वोट चोट पर माँग लो,

अर्जुन तितौरिया की कविता : चरण वंदन श्री रघुनंदन जी की

चरण वंदन श्री रघुनंदन जी की चरण वंदन श्री रघुनंदन जी की कौशल्या दशरथ नंदन

डीपी सिंह की कुण्डलिया

पर उपकारी अङ्ग है, कान बहुत ही नेक। आँखें जब कमज़ोर हों, दे ऐनक को

डीपी सिंह की कुण्डलिया

कुण्डलिया ————– विकृत होता है कभी, जब मानव का जीन। फटने लगती है तभी, कहीं-कहीं

राष्ट्रीय कवि संगम बंगाल का होली काव्य संगम सम्पन्न

प्राइमरी से विश्वविद्यालय तक के विद्यार्थियों ने राष्ट्रीय कवि संगम बंगाल के मंच पर काव्यपाठ

डीपी सिंह की कुण्डलिया

*होली है* 🔫🔫🔫🔫🔫🔫 सब कड़वाहट भूली सारी मैल दिलों की धो ली है सब पर

डीपी सिंह की कुण्डलिया

कुण्डलिया पानी की फिर कब मिले, पता नहीं इक घूँट। पीता कुछ, कुछ “डील” में,

श्रीराम पुकार शर्मा का निबंध : सत्यानाशी

‘सत्यानाशी’ यह भी कोई नाम हुआ? बड़ा ही अजीब नाम है इसकाI फिर जिसका नाम

जलधारा का द्वितीय वार्षिकोत्सव एवं होली मिलन समारोह सम्पन्न

कोलकाता : जलधारा हिंदी साहित्यिक संस्था की पश्चिम बंगाल इकाई द्वारा संस्था के द्वितीय वार्षिकोत्सव

पारो शैवलिनी की कविता : फागुन में

फागुन में उनकी यादें सताने लगे फागुन में। कोयलिया कूकी डारी पे, लगा मुझे तुम