डीपी सिंह की कुण्डलिया

*कुण्डलिया* राजनीति के ताल में, अगर ठोंकनी ताल। मगरमच्छ की ताल से, शीघ्र मिलाओ ताल।।

मनहरण घनाक्षरी छन्द : डीपी सिंह

मनहरण घनाक्षरी छन्द गंगा-जमुना भी देखी, और भाई-चारा देखा सदियों से भाइयों का चारा बनते

मनहरण घनाक्षरी छन्द : डीपी सिंह

*मनहरण घनाक्षरी छन्द* =============== अभी अभी सीमाओं से, लाए बतलाए गए कुछ हैं शहीद कुछ

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पारो शैवलिनी की गजल : तुम्हें जब से

तुम्हें जब से छाया है नशा मुझपे देखा है तुम्हें जबसे, काबू में नहीं दिल

फागुन की जीत से रंगे गोपाल चन्द्र मुखर्जी और डॉ. आशा गुप्ता ‘श्रेया’

-होली पर २८ वीं लेखन स्पर्धा:डॉ. पूनम अरोरा व बोधन राम निषाद राज ने मुकाबले

गोपाल नेवार, ‘गणेश’ सलुवा की कविता : कोरोना वायरस

कोरोना वायरस ************* क्या-क्या गज़ब का खेल दिखाया है तूने वो कोरोना वायरस, वर्षों से

दुर्गेश बाजपेयी की कविता : आकांक्षा

आकांक्षा तुम ही हो ज्वाला सी सघन, तुम में हैं मटमैली कलमें, तुम ही तेज

श्रीराम पुकार शर्मा का निबंध : गोबर संस्कृति

‘गुड़ गोबर करना’ क्या सचमुच ही किसी विशेष वस्तु को नष्ट करने के अर्थ में

वो जो कहते थे हमको कि सच बोलिये (ग़ज़ल) : डॉ लोक सेतिया “तनहा” 

 “तनहा” वो जो कहते थे हमको कि सच बोलिये  झूठ के साथ वो लोग खुद

डीपी सिंह की कुण्डलिया

सामयिक कुण्डलिया लंगोटी में एक ही, ढक लो तन श्रीमान। आह्वान पर चेलियाँ, लीं मन