महिलाओं के लिए पीरियड आना एक नेचुरल प्रोसेस है- केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय द्वारा जागरूकता फैलाने वाली दिशा निर्देश जारी किए हैं
माहवारी के दौरान की गई गलतियां सेहत को गंभीर नुकसान पहुंचा सकती है- जागरूकता फैलाने के लिए 28 मई 2024 को विश्व मासिक धर्म स्वच्छता दिवस मनाया गया- एडवोकेट किशन सनमुखदास भावनानी गोंदिया
एडवोकेट किशन सनमुखदास भावनानी, गोंदिया, महाराष्ट्र। वैश्विक स्तर पर दुनियां के हर मानवीय जीव के लिए अपने दैनिक जीवन का संचालन करने के लिए अपने शरीर को स्वस्थ रखना अति आवश्यक है, क्योंकि स्वस्थ काया सुखी जीवन की कुंजी है।हालांकि स्वस्थ शरीर की प्रतिबद्धता स्त्री व पुरुष लिंग दोनों के लिए समानांतर जरूरी है। परंतु चूंकि 28 मई 2024 को पूरी दुनियां के कई देशों से विश्व मासिक धर्म स्वच्छता दिवस मनाने की खबरें आई, ऐसे ही कार्यक्रम कुछ चैनलों व रेडियो के सखी सहेली कार्यक्रम में दोपहर 3 बजे से 4 बजे तक सुनाया गया तो मेरा ध्यान इस विषय की ओर गया। परंतु चूंकि मैं मेडिकल एक्सपर्ट या जानकार नहीं हूं, इसीलिए मीडिया व रेडियो में बताई गई जानकारी के आधार पर यह आलेख तैयार किया हूं। एक महिला को अपने जीवन में कई तरह के पड़ावों से गुजरना पड़ता है। पीरियड्स इन्हीं में से एक है जो एक प्राकृतिक पढ़ती है। यह महिलाओं के लिए बेहद जरूरी माना जाता है। हालांकि इस दौरान सफाई की कमी की वजह से कई समस्याओं का सामना भी करना पड़ता।
ऐसे में इसके लिए जागरूकता फैलाने के लिए हर साल विश्व मासिक धर्म स्वच्छता दिवस मनाया जाता है। एक महिला को हर महीने इससे गुजरना पड़ता है। यह महिलाओं के लिए काफी जरूरी माना जाता है। यही वजह है कि इसे लेकर सभी को जागरूक करने की कोशिश की जाती है। माहवारी यानी पीरियड्स के दौरान की गई गलतियां सेहत को गंभीर नुकसान पहुंचा सकती हैं। ऐसे में इसे लेकर जागरूकता फैलाने के मकसद से हर साल 28 मई को मासिक धर्म स्वच्छता दिवस यानी, वर्ल्ड मेंस्ट्रुअल हाइजीन डे मनाया जाता। इस दिन को मनाने का मकसद पीरियड्स के दौरान महिलाओं को हाइजीन मैनेजमेंट के बारे में जागरूक करना है। साथ ही इस दिन का उद्देश्य चुप्पी को तोड़ना और पीरियड्स से जुड़े मिथकों को दूर करना है। पीरियड्स के दौरान स्वच्छता बेहद जरूरी है, क्योंकि इसमें कमी होने की वजह से अकसर स्वास्थ्य को गंभीर नुकसान पहुंचता है। ऐसे में पीरियड्स के दौरान खराब हाईजीन के क्या जोखिम कारक हो सकते हैं।महिलाओं के लिए पीरियड एक नेचुरल प्रोसेस है इसलिए माहवारी में के दौरान की गई गलतियां सेहत के लिए गंभीर नुकसान पहुंचा सकती है। हालांकि केंद्र सरकार के स्वास्थ्य मंत्रालय द्वारा इस संबंध में दिशा निर्देश भी जारी किए गए हैं। इसलिए आज हम मीडिया में उपलब्ध जानकारी के सहयोग से इस आलेख के माध्यम से चर्चा करेंगे महिलाओं का मासिक धर्म पौराणिक मान्यताएं बनाम आधुनिक वैज्ञानिक तथ्य।
साथियों बात अगर हम महिलाओं के मासिक धर्म के संबंध में पौराणिक मान्यताओं बनाम आधुनिक वैज्ञानिक तथ्यों की करें तो
(1) पीरियड्स में महिलाएं न तो बाल धो सकती हैं और न ही नहा सकती हैं- शरीर की सफाई यानी हाइजीन को बरकरार रखने के लिए रोजाना नहाना जरूरी है। फिर चाहे उन दिनों आपके पीरियड्स ही क्यों न चल रहे हों। बाल धुलने से ब्लीडिंग पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता है। पीरियड्स के दिनों में साफ सफाई का खास खयाल रखा जाना चाहिए वरना इंफेक्शन का खतरा बढ़ सकता है।
(2) ज्यादा भागदौड़ या व्यायाम न करना- मासिक धर्म केदौरान लड़कियों को दौड़ने-भागने, खेलने-कूदने नाचने और एक्सरसाइज करने से मना किया जाता है। इसके पीछे तर्क दिया जाता है कि उन्हें दर्द कम होगा और आराम भी मिलेगा लेकिन यह सोच बिल्कुल गलत है। ज्यादा आराम करने से शरीर का ब्लड सर्कुलेशन ठीक ढंग से नहीं हो पाता और दर्द भी ज्यादा महसूस होता है। खेलते-कूदते रहने और व्यायाम करने से ब्लड और ऑक्सीजन का प्रवाह सुचारू रूप से चलता रहेगा जिससे पेट दर्द या एंठन जैसी समस्याएं भी नहीं होंगी।
(3) पीरियड्स में खट्टी चीजों को खाने से मना करना- इन दिनों में खट्टी चीजें खाने से मना किया जाता है। हालांकि इन चीजों से परहेज जैसी कोई बात नहीं है। खट्टी चीजें विटामिन सी से भरपूर होती हैं जो इम्युनिटी बढ़ाने में मदद करती है तो फिर ये कैसे नुकसानदेह साबित हो सकती हैं। बस, एक चीज का ध्यान रखें कि अति हर चीज की बुरी होती है। खट्टा खाएं लेकिन सीमित मात्रा में।
(4) पीरियड्स के दौरान निकलने वाला खून गंदा होता है- आज भी हमारी दादी-नानी इस बात पर कठोरता से यकीन करती हैं कि पीरियड्स का खून गंदा होता है। लेकिन ऐसा बिल्कुल नहीं है। इस भ्रम को तोड़ने की जरूरत है। पीरियड का खून गंदा नहीं होता है और ना ही शरीर के किसी भी तरह के टॉक्सिन्स को बाहर निकालता है। जो लोग इसे गंदा कहते हैं उन्हें समझना चाहिए कि यह एक शारीरिक प्रक्रिया है जिसके बारे में बात करने में किसी को शर्म नहीं आनी चाहिए।
(5) पीरियड्स के दौरान आप प्रेग्नेंट नहीं हो सकते- यह पूरी तरह से सच नहीं है। संभोग के दौरान अगर स्पर्म वजाइना के अंदर रह जाए तो सात दिनों तक जिंदा रहता है। यानी अगले सात दिनों तक प्रेग्नेंसी की संभावना बनी रहेगी। इसलिए पीरियड्स के दौरान भी सेफ तरीकों का इस्तेमाल करें।
(6) पीरियड एक हफ्ते चलने ही चाहिए- ये धारणा भी मेडिकल नजरिए से सही नहीं है। पीरियड्स की अवधि वैसे तो सात दिनों तक मानी जाती है लेकिन कुछ महिलाओं को ये सिर्फ दो तीन दिनों तक ही रहता है और यह बिल्कुल सामान्य है। पीरियड का साइकिल समय कम से कम 5 दिन और ज्यादा से ज्यादा 7 दिन तक का हो सकता है।
(7) पीरियड्स के दौरान स्विमिंग न करना – पीरियड्स के दौरान स्विमिंग करना बिल्कुल सुरक्षित होता है। यह मिथक उस समय का था जब टैम्पोन या मेंस्ट्रुअल कप का विकल्प हमारे पास नहीं था।
साथियों बात अगर हम प्रतिवर्ष 28 मई 2024 को मासिक धर्म स्वच्छता दिवस मनाने की करें तो, मासिक धर्म स्वच्छता दिवस के अवसर पर हम कई पहलों और जागरूकता सत्रों का आयोजन करते हैं, ऐसे में इस बात पर विचार करना जरूरी है : जब सुर्खियाँ खत्म हो जाती हैं तो क्या होता है? यह सवाल महत्वपूर्ण है, लेकिन जश्न मनाने और गर्व करने के लिए भी बहुत कुछ है। हमारे सांस्कृतिक रूप से समृद्ध राष्ट्र में मासिक धर्म स्वच्छता प्रबंधन (एमएचएम) के बारे में बढ़ती जागरूकता एक उल्लेखनीय यात्रा का संकेत देती है। जो विषय कभी वर्जित था, उस पर अब खुलकर चर्चा की जाती है, जो भारतीयों की सामूहिक प्रगति को दर्शाता है, जो नई पहलों को समझने, तलाशने और शुरू करने की दिशा में है। मासिक धर्म अपशिष्ट प्रबंधन के लिए स्थायी समाधानों पर शोध करने में महत्वपूर्ण प्रगति हुई है, जो इसके पर्यावरणीय प्रभाव और प्रत्यक्ष कार्रवाई के प्रति हमारी प्रतिबद्धता पर प्रकाश डालती है। जैसा कि हम एक और महत्वपूर्ण दिन मना रहे हैं, यह समय उत्पाद-केंद्रित रणनीतियों से आगे बढ़ने और एमएचएम को इस तरह से फिर से कल्पना करके एक व्यापक दृष्टिकोण अपनाने का है जो व्यक्तियों को सशक्त बनाता है, लैंगिक समानता को बढ़ावा देता है और खुलेपन और स्वीकृति की संस्कृति को विकसित करता है। अब हमारे कार्य केवल इस बारे में नहीं हैं कि हम क्या करते हैं, बल्कि हम इसे कैसे करते हैं, समावेशी संवादों को बढ़ावा देना, सहानुभूति और गरिमा में निहित प्रयासों के माध्यम से हाशिए पर पड़ी आवाज़ों को बढ़ाना।
साथियों बात अगर हम केंद्र सरकार द्वारा मासिक धर्म स्वास्थ्य के प्रति प्रतिबद्धता की करें तो, केंद्रीय स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय मासिक धर्म स्वास्थ्य नीति निर्माण के लिए प्रमुख इकाई के रूप में कार्य करता है, जो सर्वोत्तम प्रथाओं के प्रभावी कार्यान्वयन को सुनिश्चित करने के लिए व्यापक दिशा निर्देशों और मानकों का मसौदा तैयार करने के लिए जिम्मेदार है। 2011 में, मंत्रालय ने मासिक धर्म स्वच्छता योजना शुरू की, जिसमें सैनिटरी नैपकिन के कम लागत वाले वितरण पर ध्यान केंद्रित किया गया। 2014 में जल शक्ति मंत्रालय द्वारा स्वच्छ भारत मिशन (एसबीएम) ग्रामीण पहलों में मासिक धर्म स्वास्थ्य को शामिल करना और 2015 में शिक्षा मंत्रालय द्वारा मासिक धर्म स्वास्थ्य के लिए दिशा-निर्देशों का शुभारंभ करना सरकार की मासिक धर्म स्वास्थ्य के प्रति प्रतिबद्धता को और अधिक रेखांकित करता है।
साथियों बात अगर हम मासिक धर्म के बारे में जानने की करें तो, मासिक धर्म एक ऐसी घटना है जो सिर्फ़ महिलाओं तक सीमित है। हालाँकि, यह हमेशा से ही वर्जनाओं और मिथकों से घिरा रहा है जो महिलाओं को सामाजिक सांस्कृतिक जीवन के कई पहलुओं से अलग रखते हैं। भारत में, यह विषय आज तक वर्जित रहा है। कई समाजों में मौजूद मासिक धर्म के बारे में ऐसी वर्जनाएँ लड़कियों और महिलाओं की भावनात्मक स्थिति, मानसिकता और जीवनशैली और सबसे महत्वपूर्ण रूप से स्वास्थ्य पर प्रभाव डालती हैं। मासिक धर्म में सामाजिक सांस्कृतिक वर्जनाओं और मान्यताओं को संबोधित करने की चुनौती, यौवन मासिक धर्म और प्रजनन स्वास्थ्य के बारे में लड़कियों के कम ज्ञान और समझ के स्तर से और भी जटिल हो जाती है। इसलिए, इन मुद्दों से निपटने के लिए एक रणनीतिक दृष्टिकोण अपनाने की आवश्यकता है। वर्तमान आर्टिकल का उद्देश्य भारत में प्रचलित मासिक धर्म से संबंधित मिथकों, महिलाओं के जीवन पर उनके प्रभाव, प्राथमिक देखभाल में इन मुद्दों को संबोधित करने की प्रासंगिकता और उनसे निपटने के लिए विभिन्न रणनीतियों के बारे में संक्षिप्त विवरण पर चर्चा करना है।
भारत में इस विषय का उल्लेख भी अतीत में वर्जित था और आज भी सांस्कृतिक और सामाजिक प्रभाव इस विषय पर ज्ञान की उन्नति में बाधा बनते हैं। सांस्कृतिक रूप से भारत के कई हिस्सों में, मासिक धर्म को अभी भी गंदा और अशुद्ध माना जाता है। इस मिथक की उत्पत्ति वैदिक काल से होती है और इसे अक्सर इंद्र द्वारा वृत्रों के वध से जोड़ा जाता है। क्योंकि, वेद में घोषित किया गया है कि ब्राह्मण-हत्या का अपराध हर महीने मासिक धर्म के रूप में प्रकट होता है क्योंकि महिलाओं ने इंद्र के अपराध का एक हिस्सा अपने ऊपर ले लिया था इसके अलावा, हिंदू धर्म में, मासिक धर्म के दौरान महिलाओं को सामान्य जीवन में भाग लेने से प्रतिबंधित किया जाता है। उसे अपने परिवार और जीवन के दिन-प्रतिदिन के कामों में लौटने से पहले शुद्ध होना चाहिए। इसलिए, इस धारणा के बने रहने का कोई कारण नहीं लगता कि मासिक धर्म वाली महिलाएं अशुद्ध होती हैं। कई लड़कियों और महिलाओं को अपने दैनिक जीवन में प्रतिबंधों का सामना करना पड़ता है, सिर्फ इसलिए कि वे मासिक धर्म से गुजर रही हैं।
शहरी लड़कियों के बीच पूजा कक्ष में प्रवेश न करना प्रमुख प्रतिबंध है, जबकि मासिक धर्म के दौरान ग्रामीण लड़कियों के बीच रसोई में प्रवेश नहीं करना मुख्य प्रतिबंध है। मासिक धर्म वाली लड़कियों और महिलाओं को प्रार्थना करने और पवित्र पुस्तकों को छूने से भी प्रतिबंधित किया है। इस मिथक का अंतर्निहित आधार मासिक धर्म से जुड़ी अशुद्धता की सांस्कृतिक मान्यताएं भी हैं। यह भी माना जाता है कि मासिक धर्म वाली महिलाएं अस्वास्थ्यकर और अशुद्ध होती हैं और इसलिए उनके द्वारा तैयार या संभाले जाने वाला भोजन दूषित हो सकता है। हालांकि यह सराहनीय है कि वर्तमान सर्वेक्षण मासिक धर्म स्वच्छता और सुरक्षा को संबोधित करता है। इसके अतिरिक्त एमएचएम के आसपास वैश्विक मान्यता और कार्रवाई दुनिया भर में मासिक धर्म स्वास्थ्य और गरिमा को बढ़ावा देने की दिशा में सामूहिक प्रतिबद्धता को रेखांकित करती है।
अतः अगर हम उपरोक्त पूरे विवरण का अध्ययन कर इसका विश्लेषण करें तो हम पाएंगे कि महिलाओं का मासिक धर्म-पौराणिक मान्यताएं बनाम आधुनिक वैज्ञानिक तथ्य महिलाओं के लिए पीरियड आना एक नेचुरल प्रोसेस है- केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय द्वारा जागरूकता फैलने दिशा निर्देश जारी किए हैं। माहवारी के दौरान की गई गलतियां सेहत को गंभीर नुकसान पहुंचा सकती है- जागरूकता फैलाने 28 मई 2024 को विश्व मासिक धर्म स्वच्छता दिवस मनाया गया।
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