दायित्व निभाते हुए अधिकारों के प्रति भी सचेतन हो स्त्री : डॉ. राजश्री शुक्ला

कोलकाता : घर और स्त्री एक दूसरे से जुड़े हुए हैं मगर घर सिर्फ स्त्री का ही नहीं बल्कि पुरुष का भी है। घर को संजोने और सहेजने की प्रक्रिया में भी स्त्री और पुरुष को समान दायित्व निभाना चाहिए। धानी आंचल की तरफ से आयोजित स्त्री और घर विषय पर इस संगोष्ठी में यह बात निकलकर सामने आई। विषय की प्रस्तावना करते हुए कलकत्ता विश्वविद्यालय की हिन्दी विभागाध्यक्ष डॉ. राजश्री शुक्ला ने स्त्री एवं पुरुष के बीच दायिव्व एवं अधिकारों के विभाजन की असमानता को चिंताजनक बताया। उन्होंने कहा कि कुछ सकारात्मक सामाजिक परिवर्तन होने पर भी स्थिति पूरी तरह बदली नहीं है। शिक्षा, स्वास्थ्य, सुरक्षा, आर्थिक स्वावलम्बन और घरेलू जिम्मेदारियों तक में समाज ने स्त्री के लिए तमाम दायित्व रखे मगर सारे अधिकार पुरुषों को दिए।

इस तरह की असमानता बनी रही तो समाज एवं देश, दोनों का ही विकास बाधित होगा। उन्होंने कहा कि परिवार को जोड़ने का दायित्व स्त्री एवं पुरुष, दोनों का होना चाहिए। डॉ. शुक्ला ने एकल स्त्री के अधिकारों एवं स्त्री के आर्थिक स्वालम्बन के साथ आर्थिक निर्णयों में स्त्री की भागीदारी के पक्ष में बात कही। शिशु के व्यक्तित्व का विकास, स्त्री या पुरुष की तरह नहीं अपितु मनुष्य की तरह करने की आवश्यकता है। पितृसत्तात्मक समाज में स्त्रियाँ सचेतन रहकर ही अपने अधिकार प्राप्त कर सकती हैं एवं घर के साथ समाज को भी आगे ले जा सकती हैं।

प्रो. लाल बहादुर शास्त्री राजकीय संस्कृत विश्व विद्यालय की प्राध्यापिका सुजाता त्रिपाठी ने कहा कि स्त्री अपनी शक्ति को पहचाने. यह आवश्यक है। वह याचिका नहीं बल्कि सृष्टि को सचालित करने वाली शक्ति है। उसे खुद अपना सम्मान करना सीखना होगा।विद्यासागर कॉलेज की प्राध्यापिका डॉ. सूफिया यास्मीन ने कहा कि परम्परा और समाज ने स्त्री पर बहुत कुछ थोपा है। स्त्री को इससे आगे निकलने की आवश्यकता है। उसे शिक्षित होने के साथ आर्थिक स्वावलम्बी बनने की जरूरत है।

झारखंड की सामाजिक कार्यकर्ता सरिता कुमारी ने कहा कि स्त्री को अपने साथ दूसरी स्त्रियों को आगे बढ़ाने के लिए भी काम करना होगा। आँकड़ों पर बात करते हुए उन्होंने कहा कि विश्व की 35 प्रतिशत महिलाएं घरेलू हिंसा की शिकार है। स्त्री को सहना नहीं कहना सीखना होगा। मन को शिक्षित करना आवश्यक हैं। चित्रकार मधु धानुका जैन ने कहा कि कई बार स्त्रियाँ ही एक दूसरे को प्रताड़ित करती हैं। स्त्री को सहयोग मिले तो कुछ भी कर सकती है। कार्यक्रम की शुरुआत श्रुति तिवारी द्वारा सरस्वती वन्दना से हुई। स्वागत भाषण धानी आंचल की संस्थापक सदस्य डॉ. सत्या उपाध्याय ने दिया।

इस अवसर पर रविशंकर एवं कार्यक्रम संचालक स्कॉटिश चर्च कॉलेज की हिन्दी विभागाध्यक्ष प्रो. गीता दूबे ने लोकगीत सुनाया। धन्यवाद ज्ञापन प्रो. शुभ्रा उपाध्याय ने दिया। कार्यक्रम का संयोजन प्रीति साव एवं पार्वती रघुनंदन ने किया। गूगल मीट पर आयोजित इस आभासी राष्ट्रीय संगोष्ठी को कई शिक्षा एवं साहित्यप्रेमियों ने दिखा एवं विचार भी रखे। दर्शकों में डॉ. मंजुरानी सिंह, प्रो. सत्य प्रकाश तिवारी, वरिष्ठ रंगकर्मी उमा झुनझुनवाला, प्रो. संजय जायसवाल समेत कई अन्य प्रबुद्ध अतिथि उपस्थित थे।

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