पारो शैवलिनी, चित्तरंजन । इस बात में कोई किन्तु-परन्तु नहीं है कि महिलाएं त्याग, स्नेह और समर्पण की प्रतिमूर्ति है। लेकिन ऐसा क्यों है कि महिलाओं का यह रूप हमें केवल आज ही के दिन दिखलाई पड़ता है। आज के दिन हम पूरी तरह से गरिमामय उपस्थिति में महिलाओं का वंदन करते हैं, तहे दिल से अभिनन्दन करते हैं। यह भी सच है कि आज के दौर में महिलाएं हर क्षेत्र में अथाह उर्जा के साथ बढ़ रही हैं। आज महिलाओं के लिए कुछ भी नामुमकिन नहीं है। बावजूद, रात में कहीं भी अकेले आने-जाने में महिलाएं डरती हैं। स्कूल-काॅलेज से लौटने में देर होने पर आज भी लड़कियों के मां-बाप चिन्तित हो उठते हैं।
आज भी मां-बाप अपनी बेटियों को अकेले कहीं नहीं जाने देती। मैं समझता हूं कि जब तक मां-बाप को यह डर लगा रहेगा तब तक महिलाएं असुरक्षित रहेंगी और यह तब तक रहेगा जबतक महिलाओं के प्रति पुरूषों के स्वभाव में बदलाव नहीं आता। हम पुरूषों को महिलाओं के प्रति अपने द़ष्टिकोण को बदलना होगा। नहीं तो महिलाएं अपने विचार से जितना भी चाहें आधुनिक हो जाय, जीवन के हर क्षेत्र में चाहें जितना भी ऊर्जा के साथ आगे बढ़ते रहें, वो असुरक्षित ही रहेगी। इसमें कैसे सुधार लाया जा सकता है, हमें यह सोचना होगा।
तो, आइए इस महिला दिवस पर हम इसी बात पर चिन्तन करें।