नई दिल्ली। मैं अकेले दिल्ली से महाकुंभ प्रयागराज जाने की सोच रहा हूं। योजना यह है कि घर से निकलूंगा, फिर बैटरी रिक्शा पकड़ कर मेट्रो स्टेशन तक जाऊंगा। वहाँ मेट्रो से रेलवे स्टेशन पहुंचूंगा। रेलवे स्टेशन से रेलगाड़ी द्वारा प्रयागराज जाऊंगा। फिर वहां से ऑटो, बाइक, बैटरी रिक्शा जो भी ठीक रहेगा पकड़कर महाकुंभ पहुंच जाऊंगा। वहां से नाव द्वारा संगम तट जाऊंगा। संगम में डुबकी लगाने के बाद टीका लगवाऊंगा।
संगम का जल एक बोतल या कैन में भर लूंगा। फिर लेटे हुए हनुमान जी के दर्शन करूंगा। वहां कुछ प्रसाद चढ़ाऊंगा, फिर कुंभ मेला घूमने जाऊंगा। मेले से कुछ खाने-पीने का सामान खरीदूंगा, कुछ चीजें घर के लिए भी खरीद कर लाऊंगा। ऐसे ही वापस आने की योजना है।
मुझे अर्थशास्त्र की समझ नहीं है। गणित भी ठीक से नहीं आती है। लेकिन इतना तो पता है कि अकेले मेरे कुंभ जाने से –
1) एक बैटरी रिक्शा वाले को
2) मेट्रो कर्मचारियों को
3) भारतीय रेलवे को
4) किसी ऑटो, बाइक वाले को
5) नाव वाले को
6) टीका लगाने वाले को
7) कैन, बोतल बेचने वाले को
8) मंदिर के बाहर फूल बेचने वाले को
9) प्रसाद बेचने वाले को
10) कुंभ मेले में खाने-पीने का सामान बेचने वालों को
11) माला , धार्मिक किताब, खिलौने बेचने वालों को
12) अगर प्रयागराज में रुका तो किसी होटल, धर्मशाला वाले को
13) किसी अन्य माध्यम से गया तो बस, टैक्सी के मालिक और ड्राइवर को
14) अपने साधन से गया तो पेट्रोल, डीजल, सीएनजी खरीदने पर पेट्रोलियम मंत्रालय को, पेट्रोल पंप को, उसके कर्मचारियों को
15) टोल टैक्स देने से परिवहन विभाग को, टोल प्लाजा पर कार्य करने वाले कर्मचारियों को
16) पूरी यात्रा के दौरान चाय, भोजन, पानी बेचने वाले को रोजगार मिलेगा। उनकी आय होगी तो उनके परिवार का भी पेट भरेगा।
फिर पता नहीं कौन हतभाग्य , मंदबुद्धि लोग हैं जो कहते हैं कि कुंभ में डुबकी लगाने से किसी का पेट भरेगा क्या?
(विनय सिंह बैस)
महाकुंभ का अर्थशास्त्र समझने वाले
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