कुछ राज्य सरकारों का उद्योगपतियों के प्रति सकारात्मक तो कुछ का नकारात्मक सोच क्यों?

राज कुमार गुप्त

राज कुमार गुप्त : पिछले दिनों केरल से एक खबर आई थी कि बच्चों के कपड़े बनाने वाली मशहूर कंपनी Kitex ने 26 साल बाद केरल को कहा- Bye, परंतु कम्पनी को ऐसा क्यों करना पड़ रहा है? हालाकि, तेलंगाना के लिए यही गुड न्यूज है, कारण कंपनी केरल से अपना बोरिया बिस्तर समेट कर तेलंगाना में लगाने जा रही है। 60 के दशक में स्वर्गीय एम.सी. जैकब द्वारा स्थापित काइटेक्स समूह, दुनिया में बच्चों के कपड़ों का दूसरा सबसे बड़ा उत्पादक है। कंपनी एल्युमीनियम उत्पाद, सब्जी मसाले और स्कूल बैग भी बनाती है।

​किसी भी राज्य के लिए देसी-विदेशी कंपनियों को अपने यहां निवेश करने के लिए आमंत्रित करना एक बड़ी चुनौती होती है और वहीं वर्षों से जमी-जमाई कंपनी जब अपना कारोबार समेट कर किसी राज्य से चल दे तो यह एक तरह से राज्य के लिए बड़ा घाटा माना जाता है। कुछ ऐसा ही हो रहा है केरल में।
दूसरी ओर तेलंगाना के लिए यही अच्छी खबर है। कारण कि कंपनी ने केरल छोड़ तेलंगाना में निवेश करने की घोषणा की है। कंपनी ने कहा है कि वह तेलंगाना में 1000 करोड़ रुपए का निवेश करेगी। उल्लेखनीय है कि बच्चों के कपड़े बनाने वाली दुनिया की सबसे बड़ी कंपनियों में से एक काइटेक्स भी है।

केरल से विवाद पर सूत्रों के मुताबिक कंपनी का कहना था कि राज्य के अधिकारी कंपनी का शोषण कर रहे हैं। विवाद का कारण एर्नाकुलम जिले के कोच्चि के पास किजक्कम्बलम में काइटेक्स निर्माण इकाई और कंपनी परिसर में श्रम और स्वास्थ्य सहित विभिन्न सरकारी विभागों द्वारा एक महीने के भीतर कई बार जांच करना माना जा रहा है। काइटेक्स गारमेंट्स के चेयरमैन और प्रबंध निदेशक साबू एम जैकब ने आरोप लगाया कि उनके जैसे उद्यमियों को परेशान करने और उन्हें दबाने के लिए ऐसा किया गया। उन्होंने आरोप लगाया कि कंपनी का निरीक्षण करने आए अधिकारियों ने ऐसा व्यवहार किया जैसे वे चोरों और लुटेरों को पकड़ने आए हों। जबकि केरल के उद्योग मंत्री पी राजीव ने कार्रवाई को हाईकोर्ट के निर्देश का पालन बताया था।

जैकब ने जनवरी 2020 में ASCEND शिखर सम्मेलन में घोषित किए गए 3,500 करोड़ रुपये के केरल में निवेश को वापस लेने की घोषणा करके सबको चौका दिया था। निवेश का उद्देश्य 2025 तक प्रस्तावित आर्थिक गलियारे के साथ कोच्चि, तिरुवनंतपुरम और पलक्कड़ में एक टेक्सटाइल पार्क और औद्योगिक पार्क स्थापित करना था, जिससे हजारों नौकरियां पैदा होने की संभावना थी।
राज्य सरकार में सीधे तौर पर किसी का नाम लिए बिना, जैकब ने आरोप लगाया कि केरल में व्यापार के विकास के लिए अनुकूल माहौल का अभाव है।

उन्होंने कहा कि वह केरल में प्रस्तावित निवेश को छोड़ना नहीं चाहते थे, लेकिन राजनीतिक और नौकरशाही उत्पीड़न के चलते उन्हें ऐसा करने के लिए मजबूर होना पड़ा। उन्होंने आगे कहा कि जहां देश के अन्य राज्य बड़े व्यवसाय के लिए अपने इको-सिस्टम को अपग्रेड कर रहे हैं, वहीं केरल आज भी 50 साल पीछे है।

हालाकि, केरल के उद्योग मंत्री पी. राजीव ने कहा कि कंपनी की तरफ से अभी तक आधिकारिक सूचना उन्हें नहीं मिली है। उन्होंने आगे कहा कि सरकार हर तरह से बातचीत और विवाद सुलझाने के लिए तैयार है।
पिछले हफ्ते, जैकब, काइटेक्स के कुछ अधिकारियों के साथ, तेलंगाना सरकार द्वारा भेजे गए एक निजी विमान से हैदराबाद गए, जहां वे राज्य के उद्योग मंत्री के टी रामा राव के नेतृत्व में एक प्रतिनिधिमंडल से मिले। दो दिनों की चर्चा के बाद, कंपनी ने वारंगल के काकतीय मेगा टेक्सटाइल पार्क में 1,000 करोड़ रुपये निवेश करने की घोषणा की। कंपनी के राज्य से पैर पीछे खींचने पर यह केरल के लिए चिंता का विषय जरूर है।

अब आते हैं कुछ राज्य सरकारों की कारोबारियों के प्रति नकारात्मक मानसिकता पर और वहीं कुछ राज्य सरकारों की सकारात्मक मानसिकता पर, Kitex कंपनी ने केरल से बोरिया बिस्तर समेटकर तेलंगाना में फैक्ट्री लगाने का निर्णय लिया, तेलंगाना में सरकार के प्रतिनिधियों ने पारंपरिक शाल उढाकार कंपनी के प्रतिनिधियों का स्वागत किया। केरल में तथाकथित सेक्युलर और ऊपर से कम्युनिस्ट सोच का प्रभाव, मतलब यही होना था। बंगाल ने भी टाटा के साथ यही किया था, गुजरात ने शाल उढाई थी। खाते रहिए राशन का मुफ्त का सरकारी माल, लगे रहिए चावल के लिए लाइन में।

सोमालिया के लोग जापान से कहीं ज्यादा हट्टे कट्टे, लंबे चौड़े होते हैं। वहां प्राकृतिक संसाधन भी बेहतर होंगे लेकिन जापान और सोमालिया में बहुत अंतर है, और यह अंतर उद्योगों के कारण है। अमेरिका, इंग्लैंड, जर्मनी, फ्रांस, जापान गेंहू दाल के सहारे आर्थिक शक्ति नहीं बने हैं। पचास साल पहले का भूखा नंगा चीन गेहूं पैदा करके ताकतवर नहीं बन गया। इन देशों ने अपने देश के टाटा, बिड़ला, अंबानी, अडानी जैसों को सम्मान दिया, शालें ओढ़ाई यानी सुविधाएं दी तब जा कर ये देश आज महाशक्ति और आर्थिक रूप से संपन्न हैं।

आपके घर में भी जो एक बच्चा खेत जोतता है और दूसरा पढ़ता है तो पढ़ने वाले को वरीयता देते हैं। फैक्ट्री लगाना, चलाना खेत में गेहूं की फसल उगाने जैसा नहीं होता। एक Kitex जैसी फैक्ट्री लगने पर दो, चार हजार लोगों को सीधे नौकरी मिलेगी, अगर घर में चार सदस्य भी मानों तो 15 से 16 हजार लोगों का जीवन सीधे प्रभावित होगा। इन हजारों लोगों के लिए सब्जी, राशन, नाई, रिक्शा, कापी, किताबें, नये स्कूल, कपड़े, चाय वाला, अखबार वाला, इनके मकान बनने पर राज मिस्त्री, प्लंबर, पेंटर, इलेक्ट्रिशियन कितने लोगों की मांग अचानक से बढ़ जाएगी।

एक फैक्ट्री एक पूरा इकोसिस्टम बनाती है। हमारे यहां जो अपनी राजनैतिक महत्वाकांक्षा के लिए अडानी, अंबानी को रोज गाली दे रहे हैं, वही लोग या दल क्रांतिकारी माना जाता है। जबकि सच पूछिए तो यह सोच या दिशा घातक है। ये High energy, High potential के लोग हैं, इन्हे शाल ओढ़ाइए, सम्मान कीजिए इनमें कायाकल्प करने की क्षमता है। यही लोग हैं जो रोजगार भी पैदा करेंगे और देश को आर्थिक रूप से संपन्न भी बनाएंगे बाकी देते रहिए इन्हें अपनी मार्क्सवादी सोच के तहत रोज गालियां, नए कल कारखाने खुलने से रहे, उल्टे जो भी है वह भी एक-एक कर बंद होते रहेंगे करते रहिए खेती और मांगते रहिए सरकार से सब्सिडी। बंगाल का उदाहरण आपके सामने है, एक एक कल कारखाने बंद होते चले गए और आज बचे खुचे इनके हेड ऑफिस भी कोलकाता से बोरिया बिस्तर समेटने की तैयारियों में है।

(नोट : इस आलेख में व्यक्त किए गए विचार लेखक के निजी व व्यक्तिगत है। इस आलेख में दी गई सभी सूचनाएं ज्यों की त्यों प्रस्तुत की गई है।)

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