भारत जैसे विकासशील और विशाल लोकतांत्रिक देश में विधायिका बनाम कार्यपालिका का टकराव किसी भी परिस्थिति में उचित नहीं कहा जा सकता । क्योंकि यह तय है कि जनादेश से सरकारें बदलती रहती है । लेकिन न्यायपालिका और कार्यपालिका यथावत रहती है । कुल मिला कर कहें तो यही सम्मिलित शक्ति देश और समाज को दिशा देती है।
इस प्रसंग में एक डीएम द्वारा पत्नी से छेड़छाड़ के आरोपी को लॉक अप में घुस कर पीटने या त्रिपुरा में डीएम द्वारा विवाह समारोह में घुस कर किया गया तांडव किसी भी रूप में समर्थन योग्य नहीं कहा जा सकता लेकिन यह भी सच है कि अपवाद स्वरूप हुई इन घटनाओं से इतर वरीय प्रशासनिक अधिकारी ही देश चलाने का काम प्रत्यक्ष रूप से करते हैं।
कलाईकुंडा में मुख्य सचिव को लेकर केंद्र और राज्य के बीच शुरू हुई तनातनी किसी भी स्तर पर गरिमा के अनुकूल नहीं कहा जा सकता है । इस टकराव से बचने का प्रयास दोनों खेमों को करना चाहिए।
(नोट : इस आलेख में व्यक्त किए गए विचार लेखक के निजी व व्यक्तिगत है। इस आलेख में दी गई सभी सूचनाएं ज्यों की त्यों प्रस्तुत की गई है।)