आखिर क्यों करते हैं मौत का नाटक

विनय शुक्ला, कोलकाता। अभी पिछले हफ्ते एक सनसनीखेज खबर ने सोशल मीडिया की दुनिया में भूचाल ला दिया था। वह खबर थी सोशल मीडिया सेंसेशन पूनम पांडे के मौत की खबर। खबरों की मानें तो उस खबर के अनुसार अल्पायु में ही पूनम पांडे का सर्विकल कैंसर से निधन हो गया था। उनके चाहने वाले सन्नाटे में थे। अभी लोगों के इस आह की सिसकी समाप्त भी न हुई थी कि अगले दिन फिर से एक चौंकाने वाली खबर आई। अचानक एक वीडियो आया जिसमें पूनम ने कहा कि वह मरी नहीं है, अभी जिंदा है।

उनके चाहने वालों ने इस विडियो पर क्या प्रतिक्रिया दी होगी पता नहीं पर इससे एक विवाद का तूफान उठ खड़ा हुआ कि क्या इस प्रकार से अपनी मौत का तमाशा कर अपने चाहने वालों के दिलों पर नश्तर चलाना नैतिक है?
लोगों के अपने अपने मतामत थे। अब लोग हैं तो स्वाभाविक है ‘मुंडे मुंडे मतिर्भिन्ना’। हालांकि इन अदाकारा ने यह कहते हुए विवाद की हवा रोकने का प्रयास किया कि सर्वाइकल कैंसर के प्रति जागरूकता फैलाने के लिए उन्होंने ऐसा किया था।

अब वह बेचारी नादान क्या जाने कि किसी अपने के मौत का एहसास ही दिल में कितनी सिहरन पैदा कर देती है और यह तो उनके मौत की खबर थी। जिन मरीजों के लिए वे जागरूकता फैलाने की बात कह रही थीं उनमें भी तो कइयों के मन में अनजाना भय कौंधा होगा। कि अरे! यदि अल्पायु में पूनम जैसी सक्षम हस्ती चली गई तो हमारा क्या होगा?

गीता के दूसरे अध्याय में विषाद योग के संबंध में भगवान श्री कृष्ण ने अर्जुन को समझाया है कि :
अव्यक्तादीनि भूतानि व्यक्तमध्यानि भारत।
अव्यक्तनिधनान्येव तत्र का परिदेवना।।28।।
यह शरीर ऐसे ही अवस्थाओं से गुजरते हुए एक न एक दिन नष्ट होता ही है। उसके अंदर की आत्मा ही नश्वर नहीं है ऐसे में शरीर समाप्त होने पर विषाद करने का कोई अभिप्राय ही नहीं है।

गीता के दूसरे अध्याय में विषाद योग के संबंध में भगवान श्री कृष्ण ने अर्जुन को समझाया है कि :
अव्यक्तादीनि भूतानि व्यक्तमध्यानि भारत।
अव्यक्तनिधनान्येव तत्र का परिदेवना।। 28।।
यह शरीर ऐसे ही अवस्थाओं से गुजरते हुए एक न एक दिन नष्ट होता ही है। उसके अंदर की आत्मा ही नश्वर नहीं है ऐसे में शरीर समाप्त होने पर विषाद करने का कोई अभिप्राय ही नहीं है।

पर इस भूलोक में ऐसा कहां हो पाता है कि जो चीज प्रत्यक्ष दिख रही हो उसके उसके नष्ट हो जाने का दुख हो ही न और वह भी जब आप उसे प्रत्यक्ष देख रहे हों। अब हर कोई राजा परीक्षित तो नहीं हो सकता जिन्हें पता था कि सातवें दिन उनकी मृत्य होनी है तो इन सात दिनों का सदुपयोग करते हुए उन्होंने श्रीमद्भागवत गीता का पाठ सुना, चिंतन मनन किया और फिर सातवें दिन मृत्यु को वरण करने के लिए बिना किसी राग द्वेष के तैयार खड़े हो गए।

पूनम पांडे के इस कृत्य में कहीं न कहीं नैतिकता की बात तो आती है। लोग उनसे सीधे भले न पूछें पर नेपथ्य में बात आएगी ही। हालांकि मौत का स्वांग रचने वाली वे दुनिया की पहली शक्सियत नहीं हैं। यदि विकिपीडिया की मानें तो अब तक 41 से अधिक ऐसे लोग हुए हैं जिन्होंने अपनी मौत का नाटक किया है।

देहिनोऽस्मिन्यथा देहे कौमारं यौवनं जरा।
तथा देहान्तरप्राप्तिर्षीरस्तत्र न मुह्यति॥13॥
जैसे देहधारी आत्मा इस शरीर में बाल्यावस्था से तरुणावस्था और वृद्धावस्था की ओर निरन्तर अग्रसर होती है, वैसे ही मृत्यु के समय आत्मा दूसरे शरीर में चली जाती है। बुद्धिमान मनुष्य ऐसे परिवर्तन से मोहित नहीं होते।

और फिर भगवान ने अगले खंड में इस विवाद को शांत करने का उपदेश देता हुआ कहा है कि
देही नित्यमवध्योऽयं देहे सर्वस्य भारत।
तस्मात्सर्वाणि भूतानि न त्वं शोचितुमर्हसि॥30॥
BG 2.30: हे अर्जुन! शरीर में निवास करने वाली आत्मा अविनाशी है इसलिए तुम्हें किसी प्राणी के लिए शोक नहीं करना चाहिए।

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