जैसे जैसे बंगाल विधानसभा चुनाव का आखरी चरण नजदीक आ रहा है बंगाल समेत पूरे देश में चर्चा जोर पकड़ती जा रही है कि, भाजपा सत्ता में आई तो कौन होगा मुख्यमंत्री? प्रधानमंत्री मोदी एवं अमित शाह 200 प्लस सीटों का दावा कर रहे हैं और पांचवें चरण के चुनाव तक सभी चरणों में बम्पर वोटिंग हुई है अतः यह चर्चा अब जोर पकड़ने लगी है कि भाजपा आई तो किस नेता के हाथ बंगाल की कमान सौपी जाएगी? ग्रामीण क्षेत्र के नेता या फिर शहरी क्षेत्र के नेता को सौंपी जाएगी बंगाल की कमान!
लंबे अरसे से संगठन का काम देख रहे ग्रामीण पृष्ठभूमि के प्रदेश अध्यक्ष दिलीप घोष के हाथ या फिर मुख्यमंत्री ममता बनर्जी को नन्दीग्राम में सीधी टक्कर देने वाले सुवेंदु अधिकारी या फिर अपनी विद्वता से पहचान बनाने वाले व केंद्रीय नेतृत्व के खास रहे स्वपनदास गुप्ता सरीखे नेता के हाथ या फिर इन सबसे अलग चौथा कोई और, हालांकि चौथे की संभावना नहीं के बराबर ही है फिर भी राजनीति में असंभव कुछ भी नहीं होता है।
अगर पश्चिम बंगाल में भाजपा की सरकार बनती है, जो कि असंभव नहीं लग रहा है तो कौन बनेगा मुख्यमंत्री इसका निर्णय भाजपा के नवनिर्वाचित विधायकगण तथा संसदीय बोर्ड करेगा। लेकिन इस पर चर्चा पार्टी नेताओं, कार्यकर्ताओं एवं आम नागरिकों में रोचकता के साथ शरू हो चुकी है।
जब सुवेंदु ममता का साथ छोड़कर भाजपा में आए थे तो यह अटकल तेज हो गई थी कि उन्हें ही ममता के मुकाबले खड़ा किया जाएगा। परंतु सुवेंदु और ज्यादा हाईलाइट तब हो गए जब ममता को उन्होंने नंदीग्राम से ही चुनाव लड़ने का चैलेन्ज दिया और ममता ने भी नंदीग्राम से ही लड़ना स्वीकार लिया।
नंदीग्राम एक तरह से मुख्यमंत्री की कसौटी बन गया है। जिस तरह से पूरे चुनाव अभियान में सुवेंदु को पूरे बंगाल में घुमाया जा रहा है, उससे यह स्पष्ट हो गया है कि सुवेंदु भाजपा के लिए एक खास चेहरा हैं। दस साल तक ममता सरकार में रहते हुए उन्हें प्रशासनिक अनुभव भी है तथा मुख्यमंत्री को अगर हरा देते हैं तो उनका कद खुद ही विराट हो जाएगा व स्वतः ही मुख्यमंत्री के दावेदार हो जायेगें।
दूसरी ओर राज्यसभा से इस्तीफा देकर बुद्धिजीवी स्वपनदास गुप्ता को बंगाल विधानसभा चुनाव में उतारना भी केंद्र का एक संदेश था क्योंकि वह राज्य के साथ-साथ राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय राजनीति पर भी नजर रखते रहे हैं।
परंतु प्रदेश भाजपा अध्यक्ष दिलीप घोष को भी नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है कारण गांव की नब्ज को वो बखूबी समझते हैं। वैसे भी पूरे देश मे शहरों की पार्टी के रूप में जानी जाने वाली भाजपा ने बंगाल में गांव के रास्ते से ही अपनी पैठ बनाई है।
भाजपा को इसका भी अहसास है कि वाममोर्चा ने साढ़े तीन दशक तक राज किया तो इसी गांव की बदौलत और ममता इस बार अगर हटीं तो वह भी गांव के कारण ही होगा, अर्थात मुख्यमंत्री चुनाव की बात आई तो गांव की पसंद का ही ख्याल रखा जा सकता है।