सत्संग स्थलों पर अफरातफरी व हादसों की जवाबदेही किसकी? संगत को रोकने भारतीय न्याय प्रणाली में कोई नियम विनियम व कानून नहीं!

सत्संग में भगदड़-सत्संगों, धार्मिक सामाजिक उत्सवों के लिए सख्त मानदंडों के साथ स्टैंडर्ड ऑपरेटिंग प्रोसीजर (एसओपी) बनाना अत्यंत जरूरी
सत्संगों, धार्मिक सामाजिक आयोजनों पर मानदंडों एसओपी का सख़्ती से पालन करानें की जवाबदेही जिला प्रशासन पर सुनिश्चित करना समय की मांग- एडवोकेट के.एस. भावनानी

एडवोकेट किशन सनमुखदास भावनानी, गोंदिया, महाराष्ट्र। वैश्विक स्तर पर सर्वविदित है कि 142 करोड़ की विश्व में सबसे अधिक जनसंख्या वाला देश भारत एक ऐसा अकेला देश है जहां की अधिकतम जनसंख्या आस्था, श्रद्धा, धार्मिक उत्सवों, रीति रिवाजों, मान्यताओं से सराबोर है, जो आदि अनादि काल से चल रहा है तथा उस आस्था में पीढ़ी दर पीढ़ी जुड़ाव होते जा रहा है। परंतु इस आधुनिक प्रौद्योगिकी डिजिटल युग में सत्संग, आस्था, धार्मिक विश्वास, उत्सवों के कुछ परिवर्तन देखने को मिल रहें है, क्योंकि जहां एक ओर हमारे पूर्वज हजारों वर्षों से प्रचलित देवी देवताओं के स्वरूपों, मंदिरों में जाकर पूजा पाठ करते थे, वो अब कुछ अपवादों को छोड़कर अनेक श्रद्धालु अब आधुनिक बाबाओ की ओर रुझान कर गए हैं जो अपने आपको अपनें परिवार को उन पौराणिक देवी देवताओं के तुल्य मनवाने के लिए ब्रेनवाश बुजुर्गों, युवाओं, बच्चों और खास तौर पर महिलाओं में कर रहे हैं, जिनकी संख्या दिनों दिन बढ़ती जा रही है।

यह अलग बात है कि प्रशासन ने भी इस और संज्ञान ले लिया है और शिकायतों के आधार पर अनेक बाबाओं को काल कोठरी में डाल दिया है। परंतु उससे अधिक तादाद में नए बाबाओं का उदय होते जा रहा है। भारत में समस्या यह है की किन्हीं वर्ग की आस्था धार्मिक विश्वास व सत्संग में जानें को रोकने का कोई नियम विनियम कानून या फिर संविधान में कोई आर्टिकल नहीं है और न ही संगत को सत्संग स्थानों पर जाने से रोकने का कोई नियम कानून है, इनको छूट मिली हुई है। हालांकि शासन प्रशासन को इस धार्मिक आस्था या सत्संगों से कोई परहेज नहीं है, परंतु इन आयोजनों को सुव्यवस्थित रूप से चलाने, हादसों अफरातफरी व अनैतिक आचरण को रोकने के लिए केंद्रीय व राज्य स्तर पर सरकारों द्वारा नियम कानून स्टैंडर्ड ऑपरेटिंग प्रोसीजर को बनाना अब अत्यंत जरूरी है, जिसमें ऐसे हादसों की जवाबदेही का प्रोविजन भी डालना होगा, तो मेरा सुझाव है कि जिला प्रशासन प्रमुख उस हादसे अफरातफरी का जवाबदेह होगा क्योंकि, अभी प्रोसीजर या प्रक्रिया केवल परमिशन लेने तक सीमित है।

चूंकि मैं भी एक धार्मिक आयोजन समिति से जुड़ा हुआ हूं, तो देखा हूं कि प्रशासकीय अनुमति लेटर में कुछ सख्त पाबंदियां लिखी होती है और धार्मिक आयोजन, सत्संग में आयोजको द्वारा उन पाबंदियों की सीधे तौर पर धज्जियां उड़ाई जाती है जिसका सर्वेक्षण व निरीक्षण करने कोई प्रशासकीय जवाबदेह अधिकारी कर्मचारी नहीं आता और हादसे की संभावना बनी रहती है। स्कूटर, कार इत्यादि रैली की परमिशन भी नाममात्र की होती है, उनका पालन रैलियों में होता नहीं दिखता। यानें सब कुछ गुड फेथ पर चलता है। कुछ होने पर स्थानीय नेता या जनप्रतिनिधि की फोन चली जाती है! सत्संग में परमिशन हजारों के लिए ली जाती है लेकिन आते श्रद्धालु लाखों में है तो अफरातफरी और हादसों की संभावना तो बनी ही रहती है। सबसे बड़ी बात इन आयोजनों के आर्थिक संसाधनों पर आर्थिक एजेंसियों का ध्यान नहीं रहता कि जो लाखों करोड़ों खर्च होते हैं उनका जरिया या संसाधन क्या है?

मैंने अभी अपनी राइस सिटी गोंदिया नगरी में देखा एक छोटे से रजिस्टर्ड कदमों वाली सेवा समिति ने छोटे से आयोजन में शायद लाखों खर्च किए तो वह आए कहां से इसका प्रशासन को संज्ञान लेना होगा। आज यह बात हम इसलिए कर रहे हैं क्योंकि 2 जून 2024 को यूपी के हाथरस में सत्संग स्थल पर हुई भगदड़ में 121 लोगों की मृत्यु हो गई है जिसमें अधिकतम महिलाए एवं बच्चे हैं। उनका आखिर जवाबदेह कौन है। हालांकि इसकी रिपोर्ट एसडीएम ने सौंप दी गई है, व इसकी जांच जुडिशल कमेटी को दी गई है जो दो माह में अपनी सिफारिशे देगी। सीबीआई जांच की पीआईएल भी हाईकोर्ट तक पहुंच चुकी है। चूंकि अब प्रश्न उठता है कि सत्संग स्थलों पर अफरातफरी हादसों की जवाबदेही किसकी है? इसलिए आज हम मीडिया में उपलब्ध जानकारी के सहयोग से इस आलेख के माध्यम से चर्चा करेंगे, सत्संग में भगदड़-सत्संग धार्मिक सामाजिक उत्सवों के लिए सख्त मानदंडों के साथ स्टैंडर्ड ऑपरेटिंग प्रोसीजर बनाना अत्यंत जरूरी है, सत्संगों धार्मिक सामाजिक आयोजनों पर मानदंडों एसओपी का सख़्ती से पालन की जवाबदेही जिला प्रशासन प्रमुख पर सुनिश्चित करना समय की मांग है।

साथियों बात अगर हम धार्मिक सामाजिक उत्सवों सत्संगों की परमिशन देने की प्रक्रिया को जानने की करें तो धार्मिक सत्संग की परमिशन कौन देता है? अगर सत्संग किसी घर या निजी स्थान पर आयोजित किया जा रहा है और इसमें केवल कुछ लोग शामिल हैं, तो आमतौर पर किसी औपचारिक परमिशन की आवश्यकता नहीं होती है। लेकिन अगर सत्संग किसी सार्वजनिक स्थान, जैसे कि पार्क या सामुदायिक केंद्र में आयोजित किया जा रहा है, तो आयोजकों को उस स्थान के प्रबंधन से अनुमति प्राप्त करनी होती है। जिला प्रशासन और स्थानीय पुलिस को इसकी जानकारी देकर परमिशन लेना जरूरी होता है। जिस जिले में सत्संग हो रहा है उस जिले के डीएम या एसडीएम की परमिशन जरूरी है। साथ ही स्थानीय थाने में इसकी सूचना देनी पड़ती है। आयोजकों को सत्संग के लिए आवेदन करना होता है। कुछ राज्यों और क्षेत्रों में धार्मिक आयोजनों-सभाओं के लिए विशेष नियम होते हैं।

साथियों बात अगर हम सत्संगों व धार्मिक सामाजिक आयोजनों उत्सवों को आयोजित करने की प्रक्रिया को जानने की करें तो, सत्संग का पूरा प्रोसेस क्या है? सत्संग धार्मिक और सामाजिक आयोजन है जिनका उद्देश्य आस्था, भक्ति और उत्सव को व्यक्त करना होता है। इसकी सामान्य प्रक्रिया की अगर बात की जाए तो कुछ इस प्रकार होती है-
योजना बनाना : आयोजकों की एक टीम बनाई जाती है जो आयोजन की योजना बनाती है, इसमें तारीख, समय, स्थान, कार्यक्रम, बजट, सुरक्षा, और अन्य आवश्यकताओं को शामिल करना होता है।
स्थान का चयन : सत्संग, जुलूस या शोभायात्रा के लिए एक उपयुक्त स्थान का चयन किया जाता है। यह स्थान आयोजन के आकार और प्रकृति के अनुसार हो सकता है।
परमिशन लेना : आयोजकों को स्थानीय प्रशासन, पुलिस और अन्य संबंधित अधिकारियों से अनुमति प्राप्त करनी होती है।
प्रचार : आयोजन का प्रचार विभिन्न माध्यमों से किया जाता है, जैसे कि सोशल मीडिया, पोस्टर, बैनर और मुख-प्रचार।

साथियों बात अगर हम 2 जुलाई 2024 को हाथरस में सत्संग स्थल पर हुए हादसे की करें तो पश्चिमी उत्तर प्रदेश के हाथरस में भोले बाबा के सत्संग में मची भगदड़ में 121 लोगों की मौत हो गई, जबकि कई लोग घायल हैं। इस मामले में सिकंदराराऊ थाने में दरोगा ने एफआईआर दर्ज कराई है। ये आयोजन सवालों के घेर में आ गया है। परमिशन 80 हजार लोगों की थी तो इससे ज्यादा लोगों को कैसे आने दिया गया? परमिशन किसने दी? इस तरह के आयोजनों की परमिशन कौन देता है? इसका क्या प्रोसेस होता है? जीवन की सीख देने वाले सत्संग 121 लोगों की मौत का कारण कैसे बन गया? हाथरस में बड़ी संख्या में लोगों की मौत के पीछे सबसे बड़ा कारण अव्यवस्था रही है। संगत को व्यवस्थित करने वाले इंतजामों की विफलता ही है जिसने इतने बड़े हादसे को जन्म दिया। यह पहली बार नहीं है, इससे पहले भी कई बार इस तरह के आयोजन, उत्सव, मेलों और धार्मिक स्थलों पर हादसे होते रहे हैं। जनवरी 2022 में बिहार के गया में एक सत्संग के दौरान भगदड़ मचने से 15 लोग घायल हो गए थे। अक्टूबर 2021 में महाराष्ट्र के ठाणे में एक सत्संग के दौरान मंच ढहने से 20 लोग घायल हो गए थे। इसलिए यह जानना बहुत जरूरी हो जाता है कि इस तरह के आयोजनों की परमिशन कौन देता है और देखरेख का जिम्मा किसका होता है।

साथियों बातें कर हम 3 फरवरी 1954 के कुंभ मेले से लेकर 2 जुलाई 2024 तक प्रमुख हादसों घटनाओं की करें तो, यह पहली बार नहीं है कि देश में ऐसा हादसा हुआ है। मंदिरों में भीड़ या अन्य वजहों से पहले भी कई घटनाएं हुई हैं, जिनमें कईयों को अपनी जान गंवानी पड़ी है। एक नजर ऐसे ही 6 बड़े दर्दनाक हादसों पर जिसने देश को झकझोर कर रख दिया था।
(1) 3 फरवरी 1954 को जब पहली बार आजाद भारत में कुंभ मेले का आयोजन किया गया, तो यह एक दर्दनाक हादसा में बदल गया था। मौनी अमावस्या के दिन हुई घटना में 800 से ज्यादा लोगों को अपनी जान गंवानी पड़ी, जबकि 2000 से अधिक घायल हुए थे। कुछ रिपोर्ट्स की मानें, तो इस हादसे में 300 से अधिक मौतें कुचले जाने से हुई, जबकि 200 से अधिक लापता हो गए थे।

(2) महाराष्ट्र के सतारा जिले में स्थित मंधारदेवी मंदिर में मची भगदड़ को भी नहीं भुलाया जा सकता है। 25 जनवरी 2005 को मंदिर में हुए हादसे में करीब 350 लोगों की मौत हो गई थी। मंदिर में भगदड़ उस वक्त मची, जब श्रद्धालु नारियल तोड़ने के लिए सीढ़ियों पर चढ़ रहे थे और उसी दौरान फिसलन की वजह से कुछ लोग सीढ़ियों से गिर गए, जिसके बाद वहां अचानक से हालात खराब हो गए।
(3) हिमाचल प्रदेश का नैना देवी मंदिर भी एक हादसे का शिकार बना था। यहां माता के दर्शन के लिए भारी संख्या में भीड़ जुटती है। 3 अगस्त 2008 को माता के दर्शन की लालसा में हजारों की तादाद में लोग नैना देवी मंदिर पहुंचे। इसी दौरान बारिश की वजह से मंदिर में लैंडस्लाइड हुआ और भगदड़ मचने से करीब 150 भक्तों की मौत हो गई।

(4) ऐसा ही एक हादसा 30 सितंबर 2008 को राजस्थान के जोधपुर के चामुंडा देवी मंदिर में हुआ था, जहां शारदीय नवरात्र के दौरान बम विस्फोट की अफवाह फैली और इसके तुरंत बाद वहां अफरातफरी मच गई। नतीजा यह हुआ कि भगदड़ में करीब 250 श्रद्धालुओं की मौत हो गई, जबकि 50 से ज्यादा जख्मी हो गए थे।
(5) मार्च, 2010: उत्तर प्रदेश के प्रतापगढ़ में कृपालुजी महाराज के आश्रम का गेट गिरने से मची भगदड़ में 63 लोगों की मौत हो गई और 100 से अधिक लोग घायल हो गए। मरने वालों में 37 बच्चे और 26 महिलाएं थे। उत्तर प्रदेश के तत्कालीन अतिरिक्त पुलिस महानिदेशक बृजलाल ने बताया था कि मौतें आश्रम का गेट गिरने से मची भगदड़ से हुईं थीं।
(6) 7 मार्च 2023: मध्य प्रदेश के इंदौर स्थित बेलेश्वर महादेव झूलेलाल मंदिर का स्लैब टूट गया था। स्लैब टूटने से मंदिर में मौजूद श्रद्धालुओं में भगदड़ मच गई और 36 लोगों की मौत हो गई। बताया गया कि हादसे के समय बावड़ी पर जो स्लैब डाला गया था, उस पर करीब 60 श्रद्धालु मौजूद थे।

एडवोकेट किशन सनमुखदास भावनानी : संकलनकर्ता, लेखक, कवि, स्तंभकार, चिंतक, कानून लेखक, कर विशेषज्ञ

अतः अगर हम उपरोक्त पूरे विवरण का अध्ययन कर इसका विश्लेषण करें तो हम पाएंगे कि सत्संग स्थलों पर अफरातफरी व हादसों की जवाबदेही किसकी? संगत को रोकने भारतीय न्याय प्रणाली में कोई नियम विनियम व कानून नहीं! सत्संग में भगदड़ सत्संगों, धार्मिक सामाजिक उत्सवों के लिए सख्त मानदंडों के साथ स्टैंडर्ड ऑपरेटिंग प्रोसीजर (एसओपी) बनाना अत्यंत जरूरी सत्संगों, धार्मिक, सामाजिक आयोजनों पर मानदंडों एसओपी का सख़्ती से पालन करानें की जवाबदेही जिला प्रशासन पर सुनिश्चित करना समय की मांग हैं।

(स्पष्टीकरण : इस आलेख में दिए गए विचार लेखक के हैं और इसे ज्यों का त्यों प्रस्तुत किया गया है।)

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