डॉ. विक्रम चौरसिया । एक 8 साल का लड़का सिनेमाघर मे राजा हरिशचन्द्र फिल्म देखने गया और फिल्म से प्रेरित होकर उसने सत्य का मार्ग चुना और वो बडा होकर महान व्यक्तित्व के रूप में जाना गया। परन्तु आज 8 साल का लडका टीवी पर क्या देखता है? अधिकांश नंगापन और अश्लील वीडियो और फोटो, मैग्जीन में अर्धनग्न फोटो, आज देखे तो खुलेआम टीवी और फिल्म वाले आपके बच्चों को बलात्कारी बनाते है, उनके कोमल मन मे जहर घोलते जा रहे। वैसे तो देखे तो देश में बहुत से चीजों को बढ़ावा दिया जा रहा है जो हमारे देश की संस्कृति, देश का इतिहास जिसके लिए हम दुनिया भर में जाने जाते हैं, लेकिन आज हमारी उस पहचान को कुछ लोग धुंधली कर रहे है।
अगर हम बात करे फिल्मों में बढ़ती अश्लीलता की तो, फिल्मों में अश्लीलता किस हद तक होनी चाहिए, मेरे आत्मिय साथियों मेरे हिसाब से तो फिल्मों में अश्लीलता या वल्गैरिटी होनी ही नहीं चाहिए, क्योंकि फिल्में ही हमारी समाज की दर्पण होती है। कुछ समय पहले ही चाइल्ड एक्टिविस्ट वालों ने धरने देकर चाइल्ड पोर्न और बच्चो को पोर्न देखने पर पाबंदी के कानून बनाव दिए है, लेकिन जमीन पर कितना लागू हुआ होगा ये तो आप भी समझ सकते है। अब एफबी पर भी गंदी-गंदी वीडियो चलने लगी है। सर्वे के अनुसार, ‘लगभग 386 पोर्न साइटें अश्लीलता को बढ़ावा दे रही हैं, जिस पर करोड़ों लोग प्रतिदिन सर्च करते हैं।’
वहीं टी.वी की बात क्या करें? विज्ञापन और खबरों की आड़ में मानों पोर्न परोस रहे हो, क्योंकि यह अश्लीलता बिन बुलाए मेहमान की तरह सीधे हमारे घरों में प्रवेश कर चुका है। चाहे कंडोम का प्रचार हो या फिर बलात्कार की खबरें। अश्लीलता इतनी भर दी जाती है जिसे देखकर हर कोई शर्मसार हो न हो पर, घर में सबकी निगाहें यह बताने का भरसक प्रयास करती हैं, कि हमने कुछ नहीं देखा। वहीं कुछ पत्रिकाएं तो इस पर अपना विशेषांक भी अब निकाल रही हैं। चाहे इसका समाज पर नकारात्मक प्रभाव ही क्यों न पड़ें? क्योंकि जो चीज लगातार हमे परोसी जाती है उसके प्रति मनुष्य की मानसिकता बन ही जाती है।
इस मानसिक बदलाव के चलते लोगो में कामुकता बढ़ना स्वाभिक है, बढ़ती कामुकता के कारण, समाज में अश्लील हरकतें, बलात्कार, प्यार के नाम पर धोखा देना, फिर उसकी अंतरंग तस्वीरों को खीचना, उसको ब्लैकमेल करना, उससे पैसे की मांग करना, उसक एम.एम.एस. बनाकर सार्वजनिक करना आम हो जाता है और समाज में महिलाओं के साथ ही पुरुषों के प्रति भी अपराध में इजाफा होने लगता है। मै यहां केवल पुरूषों की मानसिकता पर इल्जाम नहीं लगा रहा हूं, इस अश्लीलता के वातावरण ने पुरूष हो या स्त्री, सभी को अपनी चपेट में ले लिया है। वहीं कुछ लोग अपने आपको उच्च स्तर पर पहुंचाने के लिए इसका सहारा लेने से भी नहीं चुकते है। आज यही समाज में बहुत हो रहा है। समाज में व्याप्त इस अश्लीलता का कौन जिम्मेदार है? यह कहना तो मुश्किल है।
आज अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की आड़ में क्या कुछ भी परोस देने की स्वंत्रता है? इससे तो हमारे संस्कार व सभ्यता पर चोट लगती ही है साथ ही युवाओं के साथ ही सभी लोगो के जीवन में जहर बोया जा रहा है। ध्यान रहे समाज और मीडिया को बदले बिना आप कठोर सख्त कानून कितने ही बना लीजिए बढ़ती यौन हिंसा की घटनाएं नही रुकने वाली है। अगर अब भी आप बदलने की शुरुआत नही करते हैं तो समझिए कि फिर कोई निर्भया, हाथरस जैसी घटना का शिकार होने वाला है या इंतज़ार कीजिये बहुत जल्द आपको फिर कैंडल मार्च निकालने का अवसर हमारा स्वछंद समाज, बाजारू मीडिया और गंदगी से भरा सोशल मीडिया देने वाला है। यदि यौन अपराध की घटनाओं को रोकना है तो सरकार, कानून, पुलिस के भरोसे बैठने से बेहतर बाहर निकलकर समाज, मीडिया और सोशल मीडिया की गंदगी को साफ करने की आवश्यकता है।
चिंतक/आईएएस मेंटर/पत्रकार/ दिल्ली विश्वविद्यालय/इंटरनेशनल यूनिसेफ काउंसिल दिल्ली डॉयरेक्टर