किसान होना क्या होता है

डॉ. लोक सेतिया, स्वतंत्र लेखक और चिंतक

मोदी जी उनके दल के विधायक सांसद अन्य दलों के नेताओं कुछ पढ़े लिखे कुछ नासमझ धन दौलत के पुजारी अधिकारी उद्योगपति देश के बीस फीसदी सुख सुविधा संम्पन लोगों से कड़वी मगर सच्ची बात खरी खरी कहनी है।  आप अभी नहीं हमेशा चैन से सोते हैं किसान कभी भी गर्मी बारिश आंधी तूफ़ान सर्दी तपती लू जो भी हो मौसम खड़ा रहता है अपनी खेती की खातिर जान हथेली पर रख कर। आप को नासमझ लगते हैं गुमराह हो जाते हैं और आप उनको अब समझाने चले हैं क्या अच्छा है क्या खराब है। उनको सदियां बीती हैं खुद खाली पेट रह कर भी अनाज उगाते हैं मगर आप लोगों ने झूठे वादे खोखली बातें छोड़ देश को दिया कुछ नहीं पाया बहुत है फिर भी आप लोगों की हवस कम नहीं हुई है।

भाषण देना आसान है मेरे लिखने की तरह दफ्तर की फाइल के कागज़ पर लिखना कोई मुश्किल बात नहीं है। किसान को उपदेश देने से पहले किसान क्या है ये समझना ज़रूरी है। आप में है साहस तो सामने आओ अपना सभी कुछ जहां है वहीँ रख कर छोड़ दो। नहीं किसी को कुछ देना आपकी बस की बात नहीं है बस कुछ समय इक साल उन सभी का उपयोग नहीं कर किसान की तरह रहकर दिखाना है ताकि समझ सकें जिनको समझाना है उनकी वास्तविकता क्या है। साल की बात छोडो आप महीना भी किसान की तरह नहीं रह सकोगे।
भगवान से आपको डर नहीं लगता आप आडंबर करते हैं देशभक्त या धार्मिक होने का।  अन्यथा आपकी इंसानियत आपका ज़मीर कभी तो आपको कचोटते और अपने कर्मों पर शर्मसार होते। ये जीत हार का सवाल नहीं है ये सवाल है कि सत्ता ताकत दौलत पाने के बाद किस किस में इंसानियत बची रहती है। इंसानियत को खोकर हैवानियत पाकर समझते हैं बड़े ऊंचे हो गए हैं। कितना नीचे गिर सकता है इंसान यही पता चलना है। किसान ज़मीन पर है था रहेगा। आपको आसमान की चाहत है जगह आपको पाताल में भी मिलेगी नहीं। ऊपरवाले की लाठी में आवाज़ नहीं होती है। ज़रा सा कुदरत ने क्या नवाज़ा कि आ के बैठे हो पहली सफ  में अभी से उड़ने लगे हवा में अभी तो शोहरत नई नई है।
Note : ये लेखक के निजी विचार है।

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