वाराणसी। माघ महीने की शुरुआत हो चुकी है। इस माह का विशेष महत्व है और इस खास महीने में कई त्योहार पड़ते हैं इसी में वरद तिल चतुर्थी भी है। माघ महीने के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि को तिल कुंद चतुर्थी या वरद तिल चतुर्थी के रूप में मनाया जाता है। वरद तिल चतुर्थी व्रत भगवान गणेश को समर्पित है। इस दिन गणेश जी की पूजा तिल और कुंद के फूलों से किए जाने का विधान है। वरद तिल चतुर्थी 1 फरवरी 2025 को मनाया जाएगा। तिल और कुंद के फूल श्रीगणेश को अतिप्रिय है। कुछ लोग इस दिन गणेश जी को भोग के रूप में लड्डू भी अर्पित करते हैं।
वरद तिल चतुर्थी तिथि : माघ माह के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि आरंभ : 01 फरवरी 2025, प्रातः11:38 से
माघ माह के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि समाप्त: 02 फरवरी 2025,प्रातः 09:14 पर
वरद तिल चतुर्थी का पूजा मुहूर्त :-
01 फरवरी 2025, प्रातः 11:38 से दोपहर 01:40 तक
इस तरह वरद तिल चतुर्थी का व्रत 1 फरवरी को रखा जाएगा। शास्त्र विहित मत मानें तो जिस दिन चतुर्थी तिथि लगी है चतुर्थी का व्रत भी उसी दिन से शुरू होगा।
वरद तिल चतुर्थी पर गणेश जी की पूजा का महत्व : माघ तिलकुंद चतुर्थी पर भगवान गणेश और चंद्र देव की पूजा से मन को शांति और सुख मिलता है। इस दिन व्रत रखने से गणेश जी अपने भक्तों के सभी कष्ट दूर करते हैं और धन, विद्या, बुद्धि और ऐश्वर्य का आशीर्वाद देते हैं। रिद्धि-सिद्धि की भी प्राप्ति होती है और जीवन के सभी संकट दूर होते हैं।
गणेश जी की पूजा से होती है हर मनोकामना पूरी : पंडित जी के अनुसार संकष्टी चतुर्थी निकल चुकी है। संकष्टी चतुर्थी को भगवान श्री गणेश का प्राकट्य दिवस माना जाता है। इसके बाद आने वाली वरद तिल कुंड चतुर्थी भी अपना विशेष महत्व रखती है। आगामी शुक्रवार को भगवान श्री गणेश की पूजा का विशेष महत्व रहेगा। इस दिन पूजा करने से भक्तों की मनोकामना पूरी होगी।
ये भी रहेगा विशेष : माघ मास में शुक्ल पक्ष की गुप्त नवरात्रि चल रही है। वर्तमान समय गुप्त नवरात्रि के साथ वरद तिल कुंड चतुर्थी का योग बनने से एक अद्भुत संयोग उत्पन्न हुआ है। इस दौरान गुप्त साधक श्री गणेश के मंत्रों के साथ-साथ आदि शक्ति के मंत्रों से संपुटिक अनुष्ठान करते हैं। अर्थात एक मंत्र भगवान श्री गणेश का उच्चारण किया जाता है। इसके बाद एक मंत्र माता जी का पढ़ा जाता है। इस प्रकार संपूटिक अनुष्ठान संपन्न होता है।
वरद तिल चतुर्थी की पूजा विधि : वरद तिल चतुर्थी गणेश जी की पूजा को समर्पित है।
वरद तिल चतुर्थी की पूजा ब्रह्म मुहूर्त और गोधूलि मुहूर्त में की जाती है।
वरद तिल चतुर्थी के दिन सुबह स्नानादि से निवृत्त होकर साफ-स्वच्छ वस्त्र पहनें।
इसके बाद आसन पर बैठकर भगवान श्रीगणेश का पूजन करें।
पूजा के दौरान भगवान श्रीगणेश को धूप-दीप दिखाएं।
अब श्री गणेश को फल, फूल, चावल, रौली, मौली चढ़ाएं।
पंचामृत से स्नान कराने के बाद तिल अथवा तिल-गुड़ से बनी वस्तुओं व लड्डुओं का भोग लगाएं।
जब श्रीगणेश की पूजा करें तो अपना मुख पूर्व या उत्तर दिशा की ओर रखें।
पूजा के बाद ‘ॐ श्रीगणेशाय नम:’ का जाप 108 बार करें।
शाम के समय कथा सुनें व भगवान की आरती उतारें।
शास्त्रों के अनुसार इस दिन गर्म कपड़े, कंबल, कपड़े व तिल आदि का दान करें।
ज्योतिर्विद रत्न वास्तु दैवज्ञ
पंडित मनोज कृष्ण शास्त्री
मो. 99938 74848
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