उत्तराखंड मेरी नजर से भाग- 1

अर्जुन तितौरिया खटीक, गाजियाबाद। उत्तराखंड प्राकृतिक सौंदर्य की अनुपम कृति है। सही कहा जाता है देवभूमि उत्तराखंड में इतना सौंदर्य समाया है की आपका जीवन कम पड़ जाएगा किंतु आप उत्तराखंड को पूर्ण समझ नहीं पाएंगे। मैं केवल इतना कह सकता हूं कि उत्तराखंड की संस्कृति सौंदर्य को शब्द रूपी धागे में पिरोना अत्यंत कठिन है। उत्तराखंड की बहुरंगी संस्कृति आपको अपनी ओर शीघ्र ही आकर्षित करती है। महादेव एवम श्रीहरि विष्णु के दो मुख्य धाम यहीं स्थित हैं केदारनाथ और बद्रीनाथ इसके अतिरिक्त हरिद्वार अर्थात हर का द्वार यहीं से पहाड़ों की चोटियां आरंभ हो जाती हैं जैसे ही आगे बढ़ते हैं प्राकृतिक सौंदर्य का अनुपम संगम अर्थात ऋषिकेश धाम आ जाता है जो इस समय पर्यटकों के लिए राफ्टिंग का प्रमुख केंद्र हैं। ऋषिकेश से आगे बढ़ते ही आ जाता है देव प्रयाग छोटा संगम इसको तीन धारा कहा जाता है जहां भागीरथी, अलकनंदा दो नदियां मिलती है। उत्तराखंड की संस्कृति के अनुसार अलकनंदा नदी को बहु कहा जाता है और भागीरथी को सास का दर्जा प्राप्त है।

अभी कुछ ही समय हुआ है उत्तराखंड के टिहरी गढ़वाल में मेरा जाना, एक मित्र के विवाह समारोह में। प्रोग्राम तो पहले से ही तय था बस उत्तराखंड की वादियों में जाने के लिए मन लालाइत था। रात्रि आठ बजे चल पड़े हम अपने मित्रों के साथ उत्तराखंड की यात्रा पर टैक्सी करके। हम लोग दिल्ली से उत्तराखंड के लिए निकले मेरठ, मुजफ्फरनगर, रुड़की को पार कर जैसे ही हमने हरिद्वार में कदम रखे तो कलकल बहती गंगा की धारा ने हमें अपनी और खींच लिया और हम कुछ समय गंगा के किनारे रुके समय अधिक हो चला था सो नहाना उचित नहीं समझा बस गंगा माता को निहार रहे थे अब हमें हल्का-हल्का ठंड का अहसास भी होने लगा था।

ऋषिकेश पहुंचते ही पर्यटकों का हुजूम हमें दिखाई पड़ा। जाम से जूझते हुए हमने ऋषिकेश पार किया और सुबह-सुबह हमलोग पहाड़ियों के दुर्गम रास्तों से होते हुए लगभग 5 बजे देव प्रयाग तीन धारा पहुंच चुके थे। कलकल बहती दो नदियों की धारा का भिन्न-भिन्न जल अलग-अलग दिखाई दे रहा था। हमने कुछ समय वहां बिताने का निश्चय किया और कुछ मनोरम दृश्य कैमरे में कैद किए। असल सफर तो अब तय होना था जिसकी हम कल्पना कर रहे थे उससे अधिक रोमांचित करने वाला था दुर्गम पहाड़ियों के रास्ते से गुजरता हुआ मन को रोमांचित करने एवम अभूतपूर्व आकर्षण पैदा करने वाला सफर।

तीन धारा से आगे जैसे ही पहुंचे तो एक रास्ता सीधा केदारनाथ जाता है तो दूसरा रास्ता था बाएं हाथ पर टिहरी गढ़वाल का गांवों की संस्कृति को सजाए हुए प्रभु की अनुपम कृति गढ़वाल का आरंभ होता है। कार का रास्ता यहीं तक था उसके आगे का सफर हमें पहाड़ों में चलने वाली टैक्सी से तय करना था। ये लिखने जितना आसान तो नहीं था, ऊंची ऊंची पहाड़ियां, पहाड़ी रास्ते और घास के जंगल से लबरेज पहाड़ एक अलग ही रोमांच पैदा कर रहे थे। टैक्सी में बैठ जमुनिखाल के बाजार में पहुंचे यहां से हमें जाना था हिंडोला खाल के लिए, जिला टिहरी के रास्ते में पड़ने वाला एक प्रमुख स्थान एवम आसपास के गांवों का मुख्य बाजार है।

यहां से हमने अगली टैक्सी पकड़ी और पहुंचे हिंडोला खाल। यह पहाड़ी पर बसा एक रमणीक स्थल है यह इस क्षेत्र का प्रमुख बाजार भी है। दूर दराज पहाड़ों पर बसे पहाड़ी गांव दूर से पास नजर आ रहे थे किंतु वो वास्तव में वहां से बहुत दूर थे कुछ कई किलोमीटर पहाड़ी के नीचे तो कुछ कई किलोमीटर पहाड़ी के ऊपर, उफ्फ क्या दृश्य था चारों ओर पहाड़ी पर बसा बाजार स्कूल मंदिर पर्यटकों के लिए ठहरने के लिए होटल मिठाई की दुकानें मेडिकल स्टोर से लेकर किराना स्टोर तक की सभी दुकानें यहां मौजूद थीं।

रुकिए अभी सफर समाप्त नहीं हुआ है….. अभी हमें यहां से आगे रोड़धार जाना है जो यहां से लगभग पंद्रह किलोमीटर की दूरी पर है। फिर से एक टैक्सी बदली और सफर फिर से शुरू हुआ रोडधार के लिए…..कुछ ही समय में हम फिर दुर्गम पहाड़ी सड़कों के रास्ते पर थे गाड़ी से चलते हुए यूं प्रतीत हो रहा था मानो एक पहिया हवा में है और नीचे कई किलोमीटर की गहरी खाई। रोड़धार से अब हमें अपने मित्र के गांव जाना था…..पौड़ी खाल, अब मात्र पांच किलोमीटर का रास्ता बचा था और उस रास्ते को हम दस से पन्द्रह मिनट में पार कर अपने मित्र के घर पहुंच चुके थे। अद्भुत अद्वितीय प्राकृतिक सौंदर्य से परिपूर्ण पौड़ी खाल बड़ी-बड़ी पहाड़ियां, बड़े-बड़े पहाड़ों पर घना जंगल और नीचे ऊपर पहाड़ी पर बसे घर नागफनी की तरह लहराते रास्ते उफ्फ अलग ही रोमांच मानो महादेव ने हमें यहां खुद बुलाया हो की आओ देखो…क्यों कहा जाता है उत्तराखंड को देवभूमि खुद देखो।

सूचना : इससे आगे के लिए पढ़ते रहिए उत्तराखंड मेरी नजर में भाग-2

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