विज्ञापन का श्रेणीवार 8 लाख प्रतिमाह तक भुगतान की भी व्यवस्था
यूपी डिजिटल मीडिया नीति 2024 मॉडल के अनुकरण का स्वतः संज्ञान सभी राज्यों को लेना समय की मांग
आपत्तिजनक सामग्री पोस्ट करने पर लगाम, नकेल कसने व शासकीय योजनाओं को जन-जन तक पहुंचने में यूपी डिजिटल मीडिया नीति 2024 मील का पत्थर साबित होगी- एड. के.एस. भावनानी
एडवोकेट किशन सनमुखदास भावनानी, गोंदिया, महाराष्ट्र। वैश्विक स्तर पर दुनियां का हर देश आज डिजिटल हो गया है, तो कुछ देश होने की राह पर हैं। इस डिजिटाइजेशन ने हमारे जीवन को अति आसान व सुलभ बना दिया है। महीनों का काम मिनटों में हो जाता है। बटन दबाते ही डीबीटी से हितधारकों के पास रुपया पहुंच जाता है। सात समंदर पार बैठे व्यक्ति से भी यूं सेकंडों में व्हाट्सएप कॉलिंग से फेस टू फेस बात की जा सकती है तो, डिजिटल मीडिया की तो बात ही कुछ और है। हर मोबाइल यूजर व्यक्ति को आज सोशल मीडिया जैसे फेसबुक व्हाट्सएप इंस्टाग्राम युटुब सहित अनेकों प्लेटफॉर्म्स उपलब्ध है, परंतु उनके पास वक्त बहुत कम हो गया है, अर्थात आज डिजिटल युग में मानवीय जीव को 24 घंटे भी कम पड़ रहे हैं। परंतु इस सरलीकरण और कनेक्टिविटी ने अनेक दोष भी उत्पन्न किए हैं। जिसका सटीक उदाहरण तुरंत दंगों की गति पकड़ना, आज हम घरेलू रूप से बंगाल, बिहार, राजस्थान सहित एब्रॉड देशों में भी देखते हैं कि थोड़ा सा माहौल बिगड़ता है और इंटरनेट को उन क्षेत्रों में बंद कर दिया जाता है, ताकि सोशल मीडिया का उपयोग न कर सके। क्योंकि एक पोस्ट से माहौल विपरीत दिशा में पलट जाता है। ठीक उसी प्रकार आज अनेक अश्लील, अभद्र व आपत्तिजनक पोस्ट कुछ खुरापाती लोगों द्वारा डाले जाते हैं, जिससे राष्ट्र का सौहार्दपूर्ण माहौल बिगड़ जाता है।
वहीं कुछ ऐसे महान शिक्षाविद मानवीय जीव भी हैं जो व्हाट्सएप पोस्ट ऐसा करते हैं कि सांप भी मरे और लाठी बिना टूटे या हींग लगे ना फिटकरी रंग चोखा आए, यानी उस पोस्ट से अपने विरोधी पर छींटाकशी भी हो जाए और कानूनी रूप से बचे भी रहे। आज हम इस विषय पर बात इसलिए कर रहे हैं क्योंकि मैं एक अति हाई प्रोफाइल शिक्षाविद व्हाट्सएप ग्रुप का सदस्य हूं जिसमें दिनांक 28 अगस्त 2024 को देर शाम एक समिति के एक पक्ष ने तीन पोस्ट डाले तो इस समिति के दूसरे पक्ष ने भी काउंटर जवाब में शानदार तीन पोस्ट डालें जो बिल्कुल कानून के दायरे में थे, इसी वजह से मुझे प्रौद्योगिकी अधिनियम 2009 व प्रौद्योगिकी आचार संहिता (संशोधित) नियम 2023 की याद आई फिर मैंने देर रात्रि इस पर रिसर्च शुरू की और उत्तर प्रदेश डिजिटल नीति 2024 सहित सबका आकलन कर आलेख तैयार किया। चुंकि यूपी डिजिटल मीडिया नीति 2024 में, आपत्तिजनक पोस्ट डालने पर उम्र कैद तक की सजा व विज्ञापन का श्रेणीवार 8 प्रतिमाह तक भुगतान की भी योजना बनाई गई है। इसलिए आज हम मीडिया में उपलब्ध जानकारी के सहयोग से इस आलेख के माध्यम से चर्चा करेंगे, आपत्तिजनक सामग्री पोस्ट पर लगाम व नकेल कसने व शासकीय योजनाओं को जन-जन तक पहुंचने में यह नीति मील का पत्थर साबित होगी तथा यूपी डिजिटल मीडिया नीति 2024 मॉडल के अनुकरण का स्वतः संज्ञान सभी राज्यों को लेना समय की मांग है।
साथियों बात अगर हम यूपी डिजिटल मीडिया नीति 2024 को समझने की करें तो, सोशल मीडिया पर कई तरह के पोस्ट वायरल होते रहते हैं, चाहे वो सही हों या गलत लेकिन, अब उत्तर प्रदेश में सोशल मीडिया पर आपत्तिजनक पोस्ट डालने वालों की खैर नहीं है, क्योंकि सीएम की अध्यक्षता में हुई कैबिनेट की बैठक में यूपी डिजिटल मीडिया नीति- 2024 को 27 अगस्त 2024 को मंजूरी दी गई है। इस नीति में सोशल मीडिया पर काम करने वाली एजेंसी और फर्म को विज्ञापन की व्यवस्था की गई है। इसके साथ ही अभद्र या राष्ट्र विरोधी पोस्ट डालने वालों पर सख्त कानूनी कार्रवाई के प्रावधान भी किए गए हैं। अभी सोशल मीडिया पर आपत्तिजनक पोस्ट डालने पर पुलिस द्वारा आईटी एक्ट की धारा 66 (ई) और (एफ) के तहत कार्रवाई की जाती है। अब प्रदेश सरकार पहली बार ऐसे मामलों पर नियंत्रण के लिए नीति ला रही है। इसके तहत दोषी पाए जाने पर तीन साल से लेकर उम्र कैद (राष्ट्रविरोधी गतिविधियों में) तक की सजा का प्रावधान है। इसके अलावा अभद्र और अश्लील सामग्री पोस्ट करने पर आपराधिक मानहानि के मुकदमे का सामना भी करना पड़ सकता है। केंद्र सरकार ने ऐसी हरकतों पर अंकुश लगाने के लिए इंटरमीडियरी गाइडलाइंस एंड डिजिटल मीडिया एथिक्स कोड (संशोधित) 2023 जारी किए थे। इसके साथ ही सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म जैसे एक्स, फेसबुक, इंस्टाग्राम और यूट्यूब पर डिजिटल एजेंसी और फर्म के लिए विज्ञापन की व्यवस्था भी की गई है।
पॉलिसी के अनुसार, यूपी सरकार की कल्याणकारी और लाभकारी योजनाओं और उपलब्धियों के बारे में सामग्री/ट्वीट/वीडियो/पोस्ट/रील बनाने और शेयर करने पर एजेंसियों/फर्मों को विज्ञापन देकर प्रोत्साहित किया जाएगा। नीति को मंजूरी मिलने से देश के अन्य हिस्सों और यहां तक कि विदेशों में रहने वाले उत्तर प्रदेश के निवासियों को रोजगार उपलब्ध कराने में मदद मिलेगी। विभाग ने सब्सक्राइबर/फॉलोअर्स के आधार पर इन्फ्लुएंसर्स एजेंसियों/फर्मों को चार श्रेणियों में वर्गीकृत किया है।नीति में कहा गया है कि श्रेणी के अनुसार, एक्स, फेसबुक और इंस्टाग्राम पर इन्फ्लुएंसर्स/अकाउंट होल्डर्स/ऑपरेटरों को अधिकतम क्रमश: 5 लाख रुपये, 4 लाख रुपये, 3 लाख रुपये और 2 लाख रुपये प्रति माह का भुगतान किया जाएगा।
बयान में कहा गया है कि नीति के अनुसार, सब्सक्राइबर फॉलोअर्स के आधार पर परिभाषित श्रेणी के अनुसार यूट्यूब पर वीडियो/शॉर्ट्स/पॉडकास्ट के लिए भुगतान क्रमशः 8 लाख रुपये, 7 लाख रुपये, 6 लाख रुपये और 4 लाख रुपये प्रति माह होगा। इसके अलावा, सरकार ने अपने कार्यों और नीतियों के प्रचार के लिए एक नई सोशल मीडिया पॉलिसी भी लागू की है, इस पॉलिसी के अनुसार सोशल मीडिया इनफ्लुएंसर को भुगतान किया जाएगा। लेकिन इस नीति के अंतर्गत इनफ्लूएंसर्स को सूचना विभाग में पंजीकरण कराना अनिवार्य होगा। इस पॉलिसी के तहत एक्स जिसे पहले ट्विटर के नाम से जाना जाता था, फेसबुक और इंस्टाग्राम जैसे प्लेटफार्म के इनफ्लुएंसर के लिए समान श्रेणियां निर्धारित की गई है। जिन्हें उनके फॉलोअर्स की संख्या के आधार पर 4 अलग-अलग ग्रुप में बांटा गया है। प्रदेश सरकार की जन कल्याणकारी लाभकारी योजनाओं और उपलब्धियों की जानकारी और उसके लाभ को लोगों तक डिजिटल व सोशल मीडिया के माध्यम से पहुंचाने के लिए यह नीति लाई गई है।
साथियों बात अगर हम भारत सरकार के सूचना प्रौद्योगिकी (मध्यवर्ती संस्थाओं के लिए दिशा निर्देश व डिजिटल मीडिया आचार संहिता) संशोधित नियम 2023 की करें तो, नियमों की मुख्य विशेषताएं भारत में अधिसूचित सीमा से ऊपर पंजीकृत उपयोगकर्ताओं वाले सोशल मीडिया मध्यस्थो को महत्वपूर्ण सोशल मीडिया मध्यस्थो के रूप में वर्गीकृत किया गया है। इनको कुछ अतिरिक्त सावधानी बरतने की आवश्यकता होती है जैसे अनुपालन के लिए कुछ कर्मियों की नियुक्ति करना, कुछ शर्तों के तहत अपने प्लेटफ़ॉर्म पर सूचना के पहले स्रोत की पहचान करने में सक्षम बनाना और कुछ प्रकार की सामग्री की पहचान करने के लिए सर्वोत्तम प्रयास के आधार पर प्रौद्योगिकी-आधारित उपायों को लागू करना। नियमावली में समाचार और समसामयिक विषयों की सामग्री तथा संपादित दृश्य-श्रव्य सामग्री के ऑनलाइन प्रकाशकों द्वारा सामग्री के विनियमन के लिए रूपरेखा निर्धारित की गई है। सभी मध्यस्थों को उपयोगकर्ताओं या पीड़ितों की शिकायतों के समाधान के लिए शिकायत निवारण तंत्र प्रदान करना आवश्यक है।
प्रकाशकों के लिए स्व-नियमन के विभिन्न स्तरों के साथ एक त्रि-स्तरीय शिकायत निवारण तंत्र निर्धारित किया गया है। प्रमुख मुद्दे और विश्लेषण ये नियम कुछ मामलों में अधिनियम के तहत प्रदत्त शक्तियों से परे जा सकते हैं, जैसे कि वे महत्वपूर्ण सोशल मीडिया मध्यस्थों और ऑनलाइन प्रकाशकों के विनियमन का प्रावधान करते हैं और कुछ मध्यस्थों को सूचना के प्रथम स्रोत की पहचान करने की आवश्यकता होती है। ऑनलाइन सामग्री को प्रतिबंधित करने के आधार बहुत व्यापक हैं और इससे अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता प्रभावित हो सकती है।मध्यस्थों के कब्जे में मौजूद सूचना के लिए कानून प्रवर्तन एजेंसियों द्वारा किए गए अनुरोधों के लिए कोई प्रक्रियात्मक सुरक्षा उपाय नहीं हैं। मैसेजिंग सेवाओं के लिए अपने प्लेटफॉर्म पर सूचना के प्रथम स्रोत की पहचान सुनिश्चित करना, व्यक्तियों की गोपनीयता पर प्रतिकूल प्रभाव डाल सकता है। मध्यस्थ ऐसी संस्थाएं हैं जो अन्य व्यक्तियों की ओर से डेटा संग्रहीत या संचारित करती हैं और इसमें दूरसंचार और इंटरनेट सेवा प्रदाता, ऑनलाइन बाज़ार, खोज इंजन और सोशल मीडिया साइटें शामिल हैं।
[1] सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम, 2000 (आईटी अधिनियम) को किसी तीसरे पक्ष की जानकारी के लिए मध्यस्थों को दायित्व से छूट प्रदान करने के लिए 2008 में संशोधित किया गया था।[2] इसके बाद, आईटी (मध्यस्थ दिशानिर्देश) नियम, 2011 को आईटी अधिनियम के तहत तैयार किया गया ताकि मध्यस्थों को ऐसी छूट का दावा करने के लिए उचित परिश्रम की आवश्यकताओं को निर्दिष्ट किया जा सके।
[3] सूचना प्रौद्योगिकी (मध्यस्थ दिशानिर्देश और डिजिटल मीडिया आचार संहिता) नियम, 2021 को 2011 के नियमों को बदलने के लिए 25 फरवरी, 2021 को अधिसूचित किया गया था। [4] 2021 के नियमों के तहत प्रमुख परिवर्धन में कुछ सोशल मीडिया मध्यस्थों के लिए अतिरिक्त उचित परिश्रम की आवश्यकताएं और समाचार और समसामयिक मामलों के ऑनलाइन प्रकाशकों की सामग्री को विनियमित करने के लिए एक ढांचा और क्यूरेटेड ऑडियो-विजुअल सामग्री शामिल हैं।
इलेक्ट्रॉनिक्स और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय ने उल्लेख किया कि व्यापक चिंताओं के कारण ये बदलाव आवश्यक थे: (i) बाल पोर्नोग्राफ़ी और यौन हिंसा को दर्शाने वाली सामग्री का प्रचलन, (ii) फर्जी खबरों का प्रसार, (iii) सोशल मीडिया का दुरुपयोग, (iv) ओटीटी प्लेटफार्मों और समाचार पोर्टलों सहित ऑनलाइन प्रकाशकों के मामले में सामग्री विनियमन, (v) डिजिटल प्लेटफार्मों से पारदर्शिता और जवाबदेही की कमी और (vi) डिजिटल मीडिया प्लेटफार्मों के उपयोगकर्ताओं के अधिकार।
2011 के नियमों के तहत, आवश्यकताओं में शामिल हैं : (i) सेवा समझौतों में, उन सामग्री की श्रेणियों को निर्दिष्ट करना जिन्हें उपयोगकर्ताओं को अपलोड या साझा करने की अनुमति नहीं है, (ii) न्यायालय या सरकारी आदेश प्राप्त करने के 36 घंटों के भीतर सामग्री को हटाना, (iii) कानून प्रवर्तन एजेंसियों की सहायता करना, (iv) अवरुद्ध सामग्री और संबंधित रिकॉर्ड को 90 दिनों तक बनाए रखना, और (v) उपयोगकर्ताओं और प्रभावित व्यक्तियों के लिए शिकायत निवारण तंत्र प्रदान करना, और एक शिकायत अधिकारी को नामित करना। 2021 के नियम इन आवश्यकताओं को बरकरार रखते हैं, जबकि : (i) सामग्री की श्रेणियों को संशोधित करना जिन्हें उपयोगकर्ताओं को अपलोड या साझा करने की अनुमति नहीं है और (ii) उपरोक्त आवश्यकताओं के लिए सख्त समयसीमा निर्धारित करना।
अतः अगर हम उपरोक्त पूरे विवरण का अध्ययन कर इसका विश्लेषण करें तो हम पाएंगे कि डिजिटल मीडिया नीति 2024- आपत्तिजनक पोस्ट डालने पर उम्र कैद तक की सजा- विज्ञापन का श्रेणीवार 8 लाख प्रतिमाह तक भुगतान की भी व्यवस्था। यूपी डिजिटल मीडिया नीति 2024 मॉडल के अनुकरण का स्वतः संज्ञान, सभी राज्यों को लेना समय की मांग। आपत्तिजनक सामग्री पोस्ट करने पर लगाम नकेल कसने व शासकीय योजनाओं को जन-जन तक पहुंचने में यूपी डिजिटल मीडिया नीति 2024 मील का पत्थर साबित होगी।
(स्पष्टीकरण : इस आलेख में दिए गए विचार लेखक के हैं और इसे ज्यों का त्यों प्रस्तुत किया गया है।)
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