भारत के सभी क्षेत्रों में मानव विकास सूचकांकों की रैंकिंग में सुधार के बावजूद हम काफी पीछे हैं
विकसित भारत की ओर बढ़ने के बावजूद 193 देशों के संयुक्त राष्ट्र मानव विकास सूचकांक में भारत का 134वां स्थान, रेखांकित करने व सोचनीय स्थिति में है- एडवोकेट किशन सनमुखदास भावनानी गोंदिया
एडवोकेट किशन सनमुखदास भावनानी, गोंदिया, महाराष्ट्र। वैश्विक स्तर पर भारत एक उभरता हुआ तेजी से विकास करने वाला देश और उसकी अर्थव्यवस्था विश्व के टॉप फाइव से सीधे टॉप थ्री नंबर पर पहुंचने को आतुर है। दुनियां की अनेक रैंकिंग एजेंटीयों ने इस स्तर पर काफी सकारात्मक अनुमान लगा रही है कि भारत तेजी से विकसित देश होने की ओर बढ़ रहा है।
रिकॉर्ड स्तर पर भारत में गरीबी स्तर से नीचे से ऊपर उठने वाले आंकड़े आ रहे हैं जो अपने आप में इसका सटीक उदाहरण है। परंतु एक बात गंभीरता से रेखांकित करने वाली है कि हम सब भारत के नागरिकों, बुद्धिजीवियों, नेताओं, नीति निर्धारकों, शासन प्रशासन व सरकार को इस बात को गंभीरता से सोचना चाहिए होगा कि विश्व की में भारत का डंका बजाने के बावजूद वैश्विक रेटिंग एजेंसियों के सूचकांकों में आखिर भारत पिछड़ा हुआ क्यों है?
अगर हम इन सूचकांको की रिपोर्ट्स को देखें तो भारत सवा पार है। यानें हम अगर 200 देशों को देखें तो भारत की रैंकिंग बहुत नीचे आती है। आखिरकार ऐसा क्यों? हमें जरूरत है इन रेटिंग मानदंडों मानको की आवश्यकताओं पर विचार करने की, कि आखिर हम क्यों नहीं पहुंच पाए उन मानकों पर जिनकी गणना सूचकांकों को ऊपर उठाने में होती है?
इसका मतलब यह हुआ कि या तो हमारे विकास के दावे खोखले हैं या फिर किसी साजिश के चलते भारत को कम आंका जाता है। कई बार हमने देखे हैं कि अनेकों रेटिंग एजेंसियों के सूचकांकों पर भारत ने आक्षेप भी उठाया है कि उम्मीद से कम रैंकिंग कैसे मिला? इसका सटीक उदाहरण हम दिनांक 14 मार्च 2024 को देर शाम संयुक्त राष्ट्र की मानव विकास रिपोर्ट 2023-2024 में देखने को मिला कि भारत की रैंकिंग 193 देश में 134 वें स्थान पर आई है।
जबकि 2021 में 191 देश के 135 में स्थान पर थी। यानें अगर हम पिछले 10 वर्षों में मानव संसाधन विकास के दावे कर रहे हैं तो फिर इस एचडीआई रिपोर्ट में अभी तक 134 वें स्थान पर इतनी दूर क्यों है? जो सोचनीय व रेखांकित करने वाला मुद्दा है, इसलिए आज हम मीडिया में उपलब्ध जानकारी के सहयोग से इस आलेख के माध्यम से चर्चा करेंगे, भारत के सभी मानव विकास सूचकांकों की रैंकिंग में सुधार के बावजूद हम काफी पीछे क्यों हैं?
साथियों बात अगर हम 14 मार्च 2024 को देर शाम संयुक्त राष्ट्र द्वारा जारी मानव विकास रिपोर्ट 2023-2024 की करें तो, संयुक्त राष्ट्र के मानव विकास सूचकांक (एचडीआइ) पर भारत की रैंकिंग 2022 में एक स्थान सुधरकर 193 देशों में 134वें स्थान पर पहुंच गई, जबकि 2021 में 191 देशों में से यह 135वें स्थान पर थी। लैंगिक असमानता सूचकांक (जीआई आई), 2022 में भारत 0.437 स्कोर के साथ 193 देशों में 108वें स्थान पर है।
जीआईआई -2021 में 0.490 स्कोर के साथ 191 देशों में भारत 122वें पायदान पर था। महिला एवं बाल विकास मंत्रालय ने कहा कि जीजीआई- 2021 की तुलना में भारत ने जीजीआई-2022 में 14 पायदान का सुधार किया है। हालांकि, देश की श्रम बल भागीदारी दर में सबसे बड़ा लैंगिक अंतर भी है, जो कि महिलाओं (28.3 प्रतिशत) और पुरुषों (76.1 प्रतिशत) के बीच 47.8 प्रतिशत है।
हाल में जारी मानव विकास रिपोर्ट (एचडीआर) 2023-24 में कहा गया है कि एचडीआई में सुधार के बाद 2022 में भारत 193 देशों में 134वें स्थान पर रहा है। 2022 में भारत का एचडीआई स्तर सुधरकर 0.644 रहा जबकि 2021 में यह 0.633 था। यह आंकड़ा संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम (यूएनडीपी) की रिपोर्ट ‘ब्रेकिंग द ग्रिडलॉक: रीइमेजिनिंग कोऑपरेशन इन ए पोलराइज्ड वर्ल्ड’ में प्रकाशित किया गया है। वर्ष 2022 में, भारत ने सभी एचडीआई संकेतकों में सुधार देखा, जिनमें जीवन प्रत्याशा, शिक्षा और प्रति व्यक्ति सकल राष्ट्रीय आय (जीएनआई) में सुधार दर्ज किया गया।
इसी के तहत, जीवन प्रत्याशा 67.2 से बढ़कर 67.7 वर्ष हो गई जबकि प्रति व्यक्ति जीएनआई 6,542 अमेरिकी डॉलर से बढ़कर 6,951 अमेरिकी डॉलर हो गई। रिपोर्ट में कहा गया, भारत में पिछले कुछ वर्षों में मानव विकास में उल्लेखनीय प्रगति देखी गई है। 1990 के बाद से, जन्म के समय जीवन प्रत्याशा 9.1 वर्ष बढ़ गई है, स्कूली शिक्षा के अपेक्षित वर्ष में 4.6 वर्ष का जबकि स्कूली शिक्षा के औसत वर्ष में 3.8 वर्ष का इजाफा हुआ है।
भारत की प्रति व्यक्ति जीएनआई लगभग 287 प्रतिशत बढ़ी है। इसमें कहा गया, प्रजनन स्वास्थ्य में भारत का प्रदर्शन मध्यम मानव विकास समूह या दक्षिण एशिया के अन्य देशों की तुलना में बेहतर है। मंत्रालय ने कहा कि पिछले 10 वर्षों में, जीआईआई में भारत की रैंक लगातार बेहतर हुई है, जो देश में लैंगिक समानता हासिल करने में प्रगतिशील सुधार का संकेत देती है। 2014 में यह रैंक 127 थी, जो अब 108 हो गई है।
श्रम बल भागीदारी दर में सबसे बड़ा लैंगिक अंतर। संयुक्त राष्ट्र के इस सूचकांक के बारे में महिला एवं बाल विकास मंत्रालय ने कहा, जीआईआई-2021 की तुलना में जीआईआई-2022 में 14 रैंक की छलांग महत्वपूर्ण उपलब्धि दर्शाता है। हालांकि, अलग-अलग पैमानों पर हुए अध्ययन में श्रमिकों से जुड़ा चौंकाने वाला तथ्य सामने आया है। 2022 के सूचकांक के मुताबिक देश की श्रम बल भागीदारी दर में सबसे बड़ा लैंगिक अंतर भी सामने आया है। महिलाओं (28.3 प्रतिशत) और पुरुषों (76.1 प्रतिशत) के बीच 47.8 प्रतिशत का बड़ा अंतर देखा गया है।
शिक्षा और जीने की आयु में भी उल्लेखनीय सुधार रिपोर्ट के मुताबिक अमीर देशों में रिकॉर्ड मानव विकास देखा गया, जबकि आधे गरीब देशों की प्रगति ‘संकट-पूर्व स्तर’ से नीचे बनी हुई है। 2022 की रैंकिंग में, भारत के सभी एचडीआई संकेतकों में सुधार देखा गया है। जीवन प्रत्याशा, शिक्षा और प्रति व्यक्ति सकल राष्ट्रीय आय (जीएनआई) पहले से बेहतर स्थिति में हैं। जीवन प्रत्याशा 67.2 से बढ़कर 67.7 वर्ष हो गई, स्कूली शिक्षा के अपेक्षित वर्ष 12.6 तक पहुंच गए, जबकि स्कूली शिक्षा के औसत वर्ष बढ़कर 6.57 हो गए।
देश में नागरिकों की औसत कमाई बढ़कर 5.75 लाख रुपये पहुंचा साल 2022 की एचडीआई के मुताबिक प्रति व्यक्ति सकल राष्ट्रीय आय 6,542 अमेरिकी डॉलर से बढ़कर 6,951अमेरिकी डॉलर हो गई। भारतीय करेंसी में यह राशि लगभग 5.75 लाख रुपये होती है। इसके अलावा, भारत ने लैंगिक असमानता को कम करने में भी कामयाबी पाई है। रिपोर्ट के अनुसार, देश का जीआईआई मान 0.437 है। यह वैश्विक और दक्षिण एशियाई औसत से बेहतर है।
साथियों बात अगर हम संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम के प्रशासक की करें तो उन्होंने कहा- सकल राष्ट्रीय आय, शिक्षा और जीवन प्रत्याशा जैसे पहलुओं की समीक्षा सूचकांक जारी होने से पहले संयुक्त राष्ट्र ने बुधवार को मानव विकास रिपोर्ट (एचडीआर) ‘ब्रेकिंग द ग्रिडलॉक : रीइमेजिंग कोऑपरेशन इन ए पॉलराइज्ड वर्ल्ड टाइटल के साथ प्रकाशित की। इसमें प्रति व्यक्ति सकल राष्ट्रीय आय, शिक्षा, और जीवन प्रत्याशा के आधार पर देशों का विश्लेषण किया गया है। यूएन विकास कार्यक्रम के प्रशासक ने कहा कि, मानव विकास की चौड़ी होती खाई इस रिपोर्ट से उजागर हुई है।
इससे पता चलता है कि संपन्न और निर्धन देशों के बीच स्थिर गति से घटती असमानता का दो दशकों पुराना रुझान पलट चुका है।उन्होंने कहा, वैश्विक समाज आपस में गहराई तक जुड़े हैं, इसके बावजूद असमानता की खाई पाटने की दिशा में हमारे प्रयास नाकाफी साबित हो रहे हैं। प्रशासक के मुताबिक हमारी आत्मनिर्भरता और क्षमताओं का लाभ उठाकर, साझा व अस्तित्व से जुड़ी चुनौतियों से निपटना होगा, ताकि लोगों की आकांक्षाओं को पूरा किया जा सके।
लोकतंत्र व्यवस्था के लिए एक विरोधाभास भी नजर आयायूएन विकास कार्यक्रम की रिपोर्ट में लोकतंत्र व्यवस्था के लिए एक विरोधाभास उभरता भी नजर आया है। सर्वेक्षण में हिस्सा लेने वाले 90 प्रतिशत प्रतिभागियों ने लोकतंत्र के लिए समर्थन व्यक्त किया, मगर साथ ही उन नेताओं का भी पक्ष लिया, जिनसे लोकतांत्रिक सिद्धान्त कमजोर हो सकते हैं।
अतः अगर हम उपरोक्त पूरे विवरण का अध्ययन कर इसका विश्लेषण करें तो हम पाएंगे कि संयुक्त राष्ट्र की मानव विकास रिपोर्ट 2023-2024 जारी भारतीय रैंकिंग में सुधार। भारत के सभी क्षेत्रों में मानव विकास सूचकांकों की रैंकिंग में सुधार के बावजूद हम काफी पीछे हैं। विकसित भारत की ओर बढ़ने के बावजूद 193 देशों के संयुक्त राष्ट्र मानव विकास सूचकांक में भारत का 134वां स्थान रेखांकित करने व सोचनीय स्थिति में है।
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