Kolkata Desk : आज आपको मिलवाते हैं गुरुकुल के गोपाल सर से जो कि बहुत ही विपरीत परिस्थितियों में भी मिर्जापुर के छोटे से गाँव में बच्चों को अपने गुरुकुल में निःशुल्क शिक्षा दे रहें हैं और न सिर्फ शिक्षा बल्कि कोरोना के इस दौर में गाँव के गरीबों को खाने के समान से लेकर कपड़ा तक बांट रहे हैं। अपने सभी शुभचिंतकों और मित्रों के सहयोग से, अपनी अपंगता को भी ठेंगा दिखाते हुए।
उनकी इन्हीं सब सेवाओं को ध्यान में रखकर बनारस की सुप्रसिद्ध संस्था “आल इंडिया रोटी बैंक” ने कोरोना वारियर्स सर्टिफिकेट प्रदान किया है। गोपाल सर का कहना है कि जिंदगी की व्यक्तिगत त्रासदीयों ने मुझे शिक्षक बना दिया, परंतु जीवन का सच्चा आनंद बच्चों को शिक्षित करके सामाजिक सफलता में बदल देना ही होता है। हमारी सारी गतिविधियां हमारी इच्छाओं से प्रेरित होती है। यदि एक आदमी हमें लोकतंत्र दे रहा है और दूसरा व्यक्ति अनाज का थैला तो भूखमरी के चरण में आप अनाज का थैला लेना ही पसंद करेंगे। ऐसे सवालों पर बहुत कम विचार किए जाते हैं।
कुछ नैतिकतावादी गलत सिद्धांत पेश कर देते हैं। कर्तव्य और नैतिक इंसानियत के बीच में इच्छाओं का विरोध करना संभव है? मैं इसे गलत मानता हूं। कोई भी व्यक्ति कर्तव्य की भावना से काम नहीं करता। मेरा सोचना है कि कोई भी व्यक्ति तब तक कर्तव्य निष्ठ नहीं हो सकता जब तक उसमें कर्तव्य परायण की इच्छा ना हो। अगर आप जानना चाहते हैं कि कोई बच्चा क्या कर सकता है तो आपको गुरुकुल आना पड़ेगा इन बच्चों के बीच, कुछ इच्छाएं हालांकि बहुत शक्तिशाली होती है लेकिन उनका कोई महान अर्थ नहीं होता है।
मसलन ज्यादातर लोग अपने जीवन में कभी ना कभी शादी की इच्छा रखते हैं। लेकिन यह शर्त दूसरी श्रेणी में आती है। भोजन, कपड़ा, आवास जैसी चीजें प्राथमिक श्रेणी में आती हैं। जब यह चीजें इनसे छीन ली जाती है, तब बड़े होकर यह हिंसा पर भी उतारू हो सकते हैं। इसलिए शिक्षा बहुत जरूरी है। जाहिर सी बात है अब भी भोजन और कपड़ा हमारे देश में राजनीतिक घटनाक्रम का मुख्य कारण होते हैं, पर हम मनुष्य एक मामले में अन्य प्राणियों से अलग हैं।
वह है उसकी अनंत इच्छाएं हमारी मनोकामना महत्वाकांक्षा, जिन्हें कभी पूरा नहीं किया जा सकता और वह मनुष्य को स्वर्ग जाने पर भी बेचैन बनाए रख सकती है। मगर वहीं जब हम देश और समाज के लिए अपना योगदान देते हैं, वह सबसे बेहतरीन पल होते हैं मेरे जैसे शिक्षक के लिए।