कल हमारा है, ओलंपिक में बजेगा भारत का डंका 

किरण नांदगाँवकर, (मध्यप्रदेश) : भारत में खेलों का नाम लेते ही एक ही खेल आँखों के सामने दिखता है वह है क्रिकेट!! भारत में क्रिकेट कितना प्रसिद्ध है यह बताने की जरूरत नहीं है। आप किसी मोहल्ले, गली में बच्चों को स्टंम्प्स के लिए एक डब्बा या टायर लगाकर और बैट के रुप में एक चौडा फलिया, जो हाथ में ढंग से पकडा तक ना जा रहा हो, उससे क्रिकेट खेलते आसानी से देख सकते है। गेंद प्लास्टिक की पाँच रु. वाली होती है। यह जूनून है क्रिकेट का हिंदुस्तान में। इस दीवानगी की वजह साफ है। भारत की क्रिकेट टीम विश्व की सर्वश्रेष्ठ टीमों में से है और विश्व क्रिकेट में भारत की तूती बोलती है।

अब ऐसा नहीं है की सवा सौ करोड की आबादी वाले देश में लोग क्रिकेट के अलावा दूसरे खेलों के बारें में नहीं जानते। जानते है लेकिन वे अन्य खेल और खिलाडियों के बारे में अभी-अभी अर्थात पिछले एक दो दशकों में जानने लगे है। फिर भी उतना नहीं जानते जितना क्रिकेट के बारें में जानते है।

वजह यही है की अन्य खेल और उसके खिलाडी भी हमारे यहां प्रसिद्ध तो है लेकिन वो वैसी सफलताएं अब तक अर्जित नहीं कर सके थे जो क्रिकेट प्रेमियो़ का पूरा ध्यान आकर्षित कर उन्हें क्रिकेट से विमुख कर सके। इसमें कोई दो राय नहीं की क्रिकेट के आलावा हमारे देश में हॉकी खूब प्रसिद्ध रहा। लेकिन इस खेल में पिछले कुछ दशकों में विश्व स्तर पर हम जैसे-जैसे फिसड्डी हुए, लोगों ने इससे मुंह मोड लिया।

अन्य खेलों में निश्चित ही हम दयनीय ही रहे। एशियन गेम्स, कॉमनवेल्थ गेम्स में हांलाकि हमारे खिलाडियों ने हर बार अच्छा प्रदर्शन किया और देश का नाम भी रोशन किया लेकिन जब भी विश्व प्रतिष्ठित ओलंपिक हुआ हम यहां बौने ही नज़र आए।

दो दिन पूर्व ही प्रतिष्ठित ओलंपिक टोक्यों में संपन्न हुआ। इस बार भी इस ओलंपिक की शुरुआत से ही भारत भर के लोगों कि निगाहें अपने देश के खिलाडियों पर लगी रही और भारत इस बार एक गोल्ड, दो सिल्वर और चार ब्राँज के साथ कुल 7 मेडल जीतने में कामयाब रहा। इसके पूर्व हमारे खिलाडी एशियन गेम्स, कॉमनवेल्थ और विश्व चैम्पियनशिप में बढिया प्रदर्शन करते थे लेकिन यही मेडलिस्ट ओलंपिक में जाकर खाली हाथ लौटते थे।

ओलंपिक के इतिहास में हमारे पास पिछले ओलंपिक तक सिर्फ 28 मेडल थे। कई देश तो एक ओलंपिक में इतने गोल्ड ही अपने नाम कर लेते है। यह निश्चित ही शर्मनाक था। हॉकी में ढेर सारे गोल्ड (08) हमारे पास थे लेकिन अन्य मेडल का टोटा हमारे पास ओलंपिक में सदैव ही रहा।

सबसे पहले व्यक्तिगत मेडल के रुप में पूरे देश का ध्यान टेनिस में लिएंडर पेस ने आकर्षित किया जब वे टेनिस सिंगल्स के 1996 के ओलंपिक में ब्राँज जीत लाए। उसके बाद एक मिल्ट्री मेन राज्यवर्धन सिंह राठौर ने 2004 में शूटिंग में जब सिल्वर मेडल लाया तब ओलंपिक में लोगों का ध्यान और आकर्षित हुआ।

उसके अगले ही 2008 के बीजिंग ओलंपिक में जब अभिनव बिंद्रा जो राज्यवर्धन से प्रेरित थे सीधे गोल्ड ले आए और साथ में विजेंदर और सुशील के रजत जीतने के बाद तो फिर हर ओलंपिक में भारत भर के लोंगो ने ओलंपिक में यह उम्मीद लगानी शुरु कर दी की हम भी मेडल ला सकते है।

उसके बाद हमारे खिलडियों ने ओलंपिक में उम्मीद के मुताबिक निराश नहीं किया और 2012 के लंदन ओलंपिक में सीधे 06 मेडल आए। इस ओलंपिक में साइना नेहवाल और मेरी कॉम स्टार बन कर उभरें थे। 2016 के ओलंपिक में हांलाकि हम फिर सिर्फ दो मेडल जीत सके लेकिन पीवी सिंधू स्टार बन कर उभरी।

इस बार जब 2021 का टोक्यो ओलंपिक हुआ तो यह हमारे खेलों के लिए मिल का पत्थर बन गया। इस बार के ओलंपिक में हमारा 126 सदस्यीय दल था और हॉकी (पुरुष/महिला), आर्चरी, टेनिस, बैडमिंटन, टेबल टेनिस, शूटिंग, नौकायन, गोल्फ, बॉक्सिंग, रेस्टलिंग, वेटलिफ्टिंग और एथलेटिक्स (जैवलिन) में हमारे खिलाडी विश्व के बडे खिलाडियों को टक्कर देते नज़र आए। मिराबाई चानू, रवि दहिया ने सिल्वर तो लवलिना, बजरंग पूनिया, पी वी सिंधू ने ब्राँज लाए। लेकिन भारत का विश्व भर में तब नाम रोशन हो गया जब नीरज चोपडा ने एथलेटिक्स में गोल्ड मेडल जीत लिया।

इस ओलंपिक में हमारे मेडल जीते हुए खिलाडियो ने इस बार बता दिया की वे दुनिया के अन्य खिलाडियों के सामने किसी भी रुप से कम नहीं है। सिंधू चाहे गोल्ड ना ला सकी लेकिन ब्राँज के लिए खेलते वक्त पिछली हार का दबाव उन पर बिल्कुल नहीं दिखा और वे दृढ इच्छाशक्ति से खेलकर अपना दूसरा ओलंपिक मेडल ले आई।

बजरंग पुनिया हांलाकि ब्राँज ला पाए लेकिन उनसे जब भी पूछा गया वे हमेशा यह मलाल जताते नज़र आए की मैं गोल्ड नहीं ला सका। यह जताता है की आने वाला समय ओलंपिक में हमारे भी खिलाडिय़ों का है। हॉकी टीम ने जबरदस्त खेल दिखाया और मेडल का सूखा ब्राँज लाकर खत्म किया। ओलंपिक में भारत की हॉकी टीम में एक नई जान नज़र आई।

भारत में एथलेटिक्स में यदि किसी का नाम सबको याद है तो वह पीटी उषा का ही जुबान पर आता है। लेकिन इस बार के ओलंपिक में जैवलिन थ्रो करने वाले एक युवा नीरज चोपडा ने अपनी अदम्य इच्छाशक्ति से गोल्ड लाकर भारतीय एथलेटिक्स में एक नई जान फूंक दी है। और जिस तरह राज्यवर्धन के बाद शूटिंग, विजेंदर के बाद बॉक्सिंग और सुशील के बाद रेस्टलिंग में एक से बढकर मेडलिस्ट भारत के लिए तैयार हुए।

नीरज चोपडा को देख अब आने वाले समय में और एथलीट तैयार होकर देश के लिए मेडल लाऐंगे इसके पूरे आसार है। नीरज चोपडा के गोल्ड मेडल की तारीफ इसलिए बनती है क्योंकि नीरज ने जब फाइनल में जैवलिन फेंका तब उन्होंने सिधे पलटकर सैलिब्रेट किया, यह उनका आत्मविश्वास दर्शाता है और यह उन्हें गोल्ड मेडल दिला गया। सौ मिटर फर्राटा दौड में जब उसेन बोल्ट दौडते थे तब वे इतने आत्मविश्वासी थे की रेस खत्म होने के आखरी सेकंड्स में बाकायदा अपने साथ दौड रहे धावक की तरफ देखते थे की वह उनसे कितना दूर है।

दरअसल इस तरह देखने में कुछ speed कम होने का खतरा रहता है लेकिन उसेन बोल्ट के उस आसमान भरें आत्मविश्वास से आज तक कोई पार ना पा सका। ऐसा ही आत्मविश्वास मुझे नीरज चोपडा के उस थ्रो म़े नजर आया जो उन्होंने जैवलिन थ्रो कर फिर उसकी तरफ देखा भी नहीं और वहीं गोल्डन थ्रो साबित हुआ।

ऐसे अनेक खिलाडी अब विश्व पटल पर उभरने वालें हैं, यह तय है। अतनु दास, दीपिका कुमारी, अदिति अशोक, मनिका बत्रा, अविनाश साबले, मनू भाकर और महिला हॉकी टीम इस बार हारकर भी यह जता गए की आने वाला समय उनका और उनके जैसे नवोदितों का है जो भारत को ओलंपिक में मेडलों की कोई कमी नही रखने वाला है।

दरअसल भारत के लिए पिछले तीन-चार ओलंपिक से अच्छे मेडल आ रहे है। और यह तय है की आने वाले ओलंपिक में भारत के खिलाडी विश्व पटल पर भारत का परचम और इससे भी बेहतर प्रदर्शन कर लहराएंगे।हांलाकि अमेरिका, चीन, जापान, ग्रेट ब्रिटेन से हमारी तुलना करना बेमानी होंगा क्योंकी ये सभी देश ओलंपिक में सतत् सैकडों मेडल लाते रहते है।

लेकिन हम जो ओलंपिक में हमेशा खाली हाथ ही लौटते थे अब जाकर मेडल ही नहीं गोल्ड मेडल भी लाने लगे है। यह ओलंपिक में हमारे लिए “अभी तो यह अंगडाई है आगे और लडाई है” की तरह वाला पडाव है। जिसका भरपूर स्वागत है। भारत के लिए ओलंपिक में तिरंगे की शान बढाने वाले सभी विजेता खिलाडियों को ढेरों बधाईयां !! #जय हिंद !!

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