राजनीतिक हिंसा रोकने को नई सरकार को दृढ़ इच्छाशक्ति से प्रशासनिक व पुलिस व्यवस्था में सुधार करना होगा

अरुण विश्वकर्मा

बंगाल में खूनी राजनीति की खेल की जडे़ इतनी मजबूत है कि यह खेल ख़त्म होने की संभावना कही दूर-दूर तक नहीं दीख रहा है और यह आज भी जारी है। जब बंगाल में कांग्रेस की सरकार सिद्धार्थ शंकर राय के नेतृत्व में बनी थी तो उस समय सामाजिक, आर्थिक विषमता के कारण नक्सलवाड़ी आंदोलन का उदय हुआ था और यह आंदोलन लम्बे समय तक चला, इस आंदोलन को कुचलने के लिए उस समय की सरकार ने अपनी क्रूरता का परिचय दिया।

इस आंदोलन में हजारों दोषियो के साथ निर्दोष लोग भी मारे गए थे। आपातकाल के बाद 1977 में वाममोर्चा की सरकार बनी लेकिन राजनीतिक हिंसा का दौर नियमित चलता रहा यदि सरकारी आंकड़े देखें तो 1977 से 2007 तक लगभग 28000 राजनीतिक कार्यकर्ताओं की हत्यायें हुई।

वामफ्रंट सरकार द्वारा जब सिंगुर और नंदीग्राम के किसानो की जमीन टाटा को दिया गया तो ममता बनर्जी किसानों के साथ मिलकर आंदोलन की इसमे भी 2001 से 2010 तक सियासी हिंसा में लगभग 256 लोग मारे गए, यह आंदोलन तृणमूल कांग्रेस को राज्य की सत्ता तक पहुँचा दिया।

लेकिन दुर्भाग्यवश राजनैतिक हत्याओं का खेल आज तक समाप्त नही हुआ और राजनीतिक कार्यकर्ताओं की हत्यायें आज भी जारी है। इस हिंसा को रोकना संभव हो सकता है यदि आने वाली सरकार दृढ़ इच्छा शक्ति से प्रशासनिक व पुलिस व्यवस्था में सुधार करे।

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