लखनऊ के तीन युवा कलाकारों की कृतियों को सम्मान और प्रशंसा हुई रणथंभौर राजस्थान में
लखनऊ। हर वर्ष 29 जुलाई को दुनियाभर में अंतरराष्ट्रीय बाघ दिवस मनाया जाता है। भारत सरकार ने वर्ष 1973 में बाघों को संरक्षण प्रदान करने के मकसद से प्रोजेक्ट टाइगर की शुरुआत की थी। इसी के साथ कई सारे टाइगर रिजर्व स्थापित किए गए। कई तरह की नीतियां बनाई गईं, जिससे बाघों का शिकार रोका जा सके, उनकी संख्या बढ़ाने पर काम किया जा सके। जिसकी बदौलत अभी भारत में कुल 54 टाइगर रिजर्व हैं और यहां बाघों की संख्या बढ़ ही रही है, कम नहीं हो रही। बाघों की घटती संख्या के कारणों को जानने के साथ ही उनके संरक्षण के प्रति लोगों को जागरूक करने के मकसद से यह दिवस हर साल मनाया जाता है।
बाघ हमारे पारिस्थितिकी तंत्र को स्वस्थ रखने और उसकी विविधता को बनाए रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। इसी उपलक्ष्य में जयपुर आर्ट समिट, राजस्थान पर्यटन और एस्ट्रल पाइप के संयुक्त तत्वावधान में राजस्थान के सवाई माधोपुर के रणथंभौर राष्ट्रीय उद्यान मे चार दिवसीय प्रदर्शनी और चित्र कला शिविर का आयोजन किया गया था। इस शिविर मे देश के अलग अलग प्रदेशों से 21 चित्रकारों ने भाग लिया जिसमे से उत्तर प्रदेश लखनऊ के तीन युवा चित्रकार भूपेंद्र कुमार अस्थाना, संजय राज और दीपेन्द्र सिंह भी भाग लिया और अपने कला के प्रदर्शन के साथ चित्रों के माध्यम से बाघ संरक्षण के लिए लोगों को जागरूकता का संदेश दिया। सभी कलाकारों ने शिविर में दो-दो कृति का निर्माण किया।
शिविर के साथ लखनऊ के युवा क्यूरेटर भूपेंद्र अस्थाना ने देश भर के 18 कलाकारों की कृतियों की एक प्रदर्शनी भी लगाई जिसकी लोगों ने प्रसंशा भी की। सवाई माधोपुर रणथम्बौर के कलेक्टर डॉ. खुशाल यादव, मोहम्मद यूनुस (वैज्ञानिक – ई राजीव गांधी क्षेत्रीय प्राकृतिक इतिहास संग्रहालय वन एवं पर्यावरण रणथंभौर सवाई माधोपुर राजस्थान) और डॉ. धर्मेंद्र खांडल
कंजर्वेशन बायोलॉजिस्ट टाइगर वाच, सवाई माधोपुर की पुलिस अधीक्षक ममता गुप्ता, डीसीएफ रणथंभौर टाइगर रिजर्व रामानन्द भाकर, सहायक पर्यटन निदेशक मधुसूदन सिंह, एसडीएम लाखेरी कैलाश गुर्जर आदि सहित बड़ी संख्या में लोगों ने इस प्रदर्शनी का अवलोकन किया और तारीफ की। इस कार्यक्रम के दौरान लखनऊ से लखनऊ बुक फेयर के संयोजक मनोज एस चंदेल, संपादक अलोक पराड़कर, जयपुर आर्ट समिट के संस्थापक शैलेन्द्र भट्ट, शिविर क्यूरेटर विजय कुमावत, अमित कल्ला सहित सभी कलाकार उपस्थित रहे।
रणथम्भौर राष्ट्रिय उद्यान कला शिविर में बनाये कृति के बारे में भूपेंद्र कुमार अस्थाना (चित्रकार, क्यूरेटर व कला लेखक) ने कहा कि यदि हम प्रकृति का सम्मान नहीं करेंगे तो प्रकृति हमें नष्ट कर देगी। यह केवल एक बात नहीं बल्कि सच्चाई है। जिसका नतीजा आए दिन हम सब देखते भी हैं लेकिन हम सब विकास की अंधी दौड़ में इतने लिप्त हैं कि हमें प्रकृति और प्रकृति में रहने वाले जीवों की आवाज तक नहीं सुनाई पड़ती। पर्यावरण में लगातार बिगाड़ पैदा करने की कीमत पर विकास भविष्य की पीढ़ियों को प्रभावित करेगा। यह केवल एक भविष्यवाणी नहीं बल्कि एक क्षण-क्षण होने वाली घटनायेँ है जिन्हें हम प्राकृतिक आपदाएँ कह कर किनारे हो जाते हैं।
कल्पना कीजिये एक ऐसे दुनिया की एक ऐसे समाज की जहाँ केवल सीमेंट, पत्थरों की बड़ी बड़ी गगनचुंबी इमारतें हो और कहीं दूर-दूर तक कोई पेड़ पौधा, पशु पक्षी न दिखे। केवल आदमी और इमारतें ही हो तथा पेड़, पौधों, पशु, पक्षियों के चित्र, मूर्ति के द्वारा एक कृत्रिम दुनिया बना कर अपने आने वाले भविष्य को दिखाये, तो वह कैसा समय होगा और वह कैसी दुनिया होगी, होगी भी या नहीं ऐसी दुनिया। क्या हमारा अस्तित्व भी होगा या नहीं। कोई प्राकृतिक दृश्य न दिखाई दे। प्रगति और विकास की अंधी दौड़ से थोड़ा ठहरना होगा और एहसास करना होगा कि कर क्या रहे हैं। कुछ इन्ही विचारों को लेकर मैंने पेन और इंक में 2×2 फीट के कैनवस पर रेखांकन किया है। इसमे लोक व समकालीन का एक फ्यूजन है। साथ ही इसमे जो वन्यजीव है वह हर वन्यजीवों को प्रतिनिधित्व कर रहा है। साथ ही पेड़ पानी हवा मिट्टी इत्यादि को भी बचाने का एक संदेश है यदि प्रकृति बचेगी तो ही जीव बचेंगे और जीव बचेंगे तो हम इंसान बचेंगे। सब एक दूसरे पर निर्भर हैं।
लखनऊ के ही युवा चित्रकार संजय राज ने बताया कि मैं बुंदेलखंड हमीरपुर उत्तर प्रदेश से हूं, वर्तमान समय में लखनऊ में स्वतंत्र रूप में कार्य करता हूं। मैं पिछले कई वर्षों से बढ़ते शहरीकरण व लगातार प्रभावित हो रही प्रकृति तथा शहर में विकाशील की भागदौड़ में भागता मानव व बदलते नेचर को बहुत करीब से देखता और महसूस करता रहा हूं। जिस कारण मनुष्य न ही अपने आप को और न ही प्रकृति को समय दे पा रहा है इसका परिणाम यह है कि वह अपने वास्तविक प्रकृति को भूल चुका है। आज के समय में भागदौड़ भरी जिंदगी में मनुष्य को प्रकृति के लिए समय केवल स्क्रीन और सोशल मीडिया, मोबाइल पर ही दे पा रहा है, प्रकृति को महसूस व उसके साथ जीने के लिए बिल्कुल भी समय नहीं है।
आज कल मानव पेड़ पौधे मंगाते हैं ताकि तो उसकी ईमेज सोशल मीडिया पर अपलोड हो जाए लेकिन कुछ दिनों के बाद ही वही पेड़ सूख जाता हैं क्योंकि की उसकी देखरेख व उसको समझने के लिए किसी के पास अब समय नही है, परिणाम ये है कि वातावरण तेजी से बदल रहा है। इसलिए मानव को चाहिए कि प्रकृति को समझे उसके करीब कुछ समय बयतीत करे और उसको समय दे। मैंने चित्रों में कलर के माध्यम से प्रकृति की ऊर्जा व समकालीन वातारण को लाने का प्रयास किया है।
लखनऊ के ही तीसरे कलाकार दीपेंद्र सिंह ने बताया कि मैंने टाईगर के साथ उस अथॉरिटी को कैलीग्राफी के माध्यम से दर्शाया है जो हमारे बाघों को संरक्षित करने के लिए अपनी जिम्मेदारी को निभा रही है और हमारे बाघों की संख्या में बढ़ोतरी हो रही है। जिसकी वजह से हमारे बाघ सुरक्षित है। दूसरे कृति में इसमें रणथंभौर के प्रकृति और वहां के परिवेश, वास्तुकला को विजुअल और कैलीग्राफी के माध्यम से दर्शाया है, मैं लिपी को लेकर काम करता हूं और उसके माध्यम से अपनी कलाकृति की संरचना करता हूं। इस कार्यक्रम के दौरान कलाकारों को रणथम्भौर किला, सफारी सहित अन्य महत्त्वपूर्ण स्थानों का भ्रमण भी कराया गया।
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