या देवी सर्वभूतेषु शक्ति रूपेण संस्थिता। नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः॥
2021 चैत्र नवरात्र का इस बार आरंभ दो विशेष शुभ योग के बीच होने जा रहा है। ज्योतिषशास्त्र के अनुसार इस बार अमृत सिद्धि और सर्वार्थ सिद्धि योग में चैत्र नवरात्र का आरंभ हो रहा है। 13 अप्रैल से विक्रम संवत् 2078 चैत्र शुक्ल प्रतिपदा तिथि लग रही है। इसी दिन नवरात्र का कलश स्थापना की जाएगी। इस दिन चंद्रमा मेष राशि में रहेंगे एवं देर रात सूर्य भी मेष राशि में आएंगे। ऐसे में यह अद्भूत संयोग है कि राशि चक्र की पहली राशि में चैत्र नवरात्र यानि संवत के पहले दिन ग्रहों के राजा और रानी स्थित होंगे।
नवरात्र का आरंभ अश्विनी नक्षत्र में होगा जिसके स्वामी ग्रह केतु और देवता अश्विनी कुमार है। जो आरोग्य के देवता माने जाते हैं। ऐसे माना जा रहा है कि माँ दुर्गा देश दुनिया में फैली कोरोना महामारी से राहत दिलाएंगी। इस बीच गुरु भी मकर राशि में कुंभ में आ चुके होंगे। गुरु का यह परिवर्तन भी कठिन समय से राहत दिलाएगा।
किस वाहन पर आएगी माँ की सवारी :-
मंगलवार 13 अप्रैल से चैत्र नवरात्रि की शुरुआत हो रही है। ऐसे में माँ की सवारी घोड़ा पर आएगी। घोड़े पर माँ का आना गंभीर माना जाता है। देवी भागवत पुराण के अनुसार, जब भी नवरात्रि पर माँ घोड़े की सवारी कर आती हैं तो प्रकृति, सत्ता आदि पर प्रभाव देखने को मिलते हैं। इसके कारण युद्ध, आंधी-तूफान जैसी प्राकृतिक आपदाएं आती हैं। ऐसे में इस दौरान कलश पूजा करने वालों को माता से रक्षा करने की भी प्रार्थना अवश्य करनी चाहिए।
मुहूर्त :- इस साल चैत्र नवरात्रि के प्रथम दिन ग्रहों के शुभ संयोग से विशेष योग का निर्माण हो रहा है। प्रतिपदा की तिथि में विष्कुंभ और प्रीति योग का निर्माण हो रहा है। इस दिन विष्कुंभ योग दोपहर 03 बजकर 16 मिनट तक रहेगा। प्रीति योग का आरंभ होगा। करण बव सुबह 10 बजकर 17 मिनट तक, उसके बाद बालव रात 11 बजकर 31 मिनट तक रहेगा।
- दिन- मंगलवार
- तिथि- 13 अप्रैल 2021
- शुभ मुहूर्त- सुबह 05 बजकर 28 मिनट से सुबह
- 10 बजकर 14 मिनट तक।
- अवधि- 04 घंटे 15 मिनट
- घटस्थापना का दूसरा शुभ मुहूर्त- सुबह 11 बजकर 56 मिनट से दोपहर 12 बजकर 47 मिनट तक।
नवरात्र के 9 दिनों में आदिशक्ति दुर्गा के 9 रूपों का पूजन किया जाता है। माता के इन 9 रूपों को ‘नवदुर्गा’ के नाम से जाना जाता है। नवरात्र के 9 दिनों में मां दुर्गा के जिन 9 रूपों का पूजन किया जाता है उनमें पहला शैलपुत्री, दूसरा ब्रह्मचारिणी, तीसरा चंद्रघंटा, चौथा कूष्मांडा, पांचवां स्कंदमाता, छठा कात्यायनी, सातवां कालरात्रि, आठवां महागौरी और नौवां सिद्धिदात्री की पूजन की जाती है।
प्रथमं शैलपुत्री च द्वितीयं ब्रह्मचारिणी। तृतीयं चन्द्रघण्टेति कूष्माण्डेति चतुर्थकम् ।। पंचमं स्कन्दमातेति षष्ठं कात्यायनीति च। सप्तमं कालरात्रीति महागौरीति चाष्टमम् ।।
देवी माँ स्वयं को सभी रूपों में प्रत्यक्ष करती है और सभी नाम ग्रहण करती है। माँ दुर्गा के नौ रूप और हर नाम में एक दैवीय शक्ति को पहचानना ही नवरात्रि मनाना है। असीम आनन्द और हर्षोल्लास के नौ दिनों का उचित समापन बुराई पर अच्छाई की विजय के प्रतीक पर्व दशहरा मनाने के साथ होता है।
नवरात्रि त्योहार की नौ रातें देवी माँ के नौ विभिन्न रूपों को समर्पित हैं जिसे नवदुर्गा भी कहा जाता है।