मन व शरीर में एकता होनी चाहिए, योगाचार्य डॉ. जोशी

डॉ. प्रभु चौधरी, उज्जैन : प्रतिष्ठित संस्था राष्ट्रीय शिक्षक संचेतना द्वारा आयोजित अंतरर्राष्ट्रीय आभासी गोष्ठी का आयोजन किया गया। जिसका विषय “योग, प्राणायाम और स्वास्थ एवं शरीर को लाभ” था। मुख्य अतिथि के रूप में योगाचार्य डॉ. निशा जोशी, इंदौर ने कहा कि जब हम प्राणायाम करते हैं तो सहजता से हर क्रिया होती हैं श्वास लेना और छोड़ना यह क्रिया सहज रूप से करनी चाहिए।

पतंजलि मुनि कहते हैं कि आसन जो होते हैं ध्यान के लिए होते हैं। मन व शरीर में एकता होनी चाहिए। प्राणायाम अपने फेफड़ों की क्षमता को बढ़ाता है। व्यक्तियों को योग प्राणायाम और स्वस्थ शरीर के लिए सजग होना आवश्यक है। योग के समय में चेहरे पर मुस्कुराहट होनी चाहिए। मन की सुदृढता प्राणायाम के लिये आवश्यक है। उम्र के साथ आने वाली समस्यायें योग से नियंत्रित की जाती हैं।

विशेष अतिथि सुवर्णा जाधव, मुख्य राष्ट्रीय कार्यकारी अध्यक्ष ने कहा कि प्राण वायु को संतुलित रूप से लेना, नियमित रूप से गहरी और लंबी सांस लेना, योग के द्वारा विभिन्न दिशाओं को पार करना यही योग और प्राणायाम है। विशेष अतिथि एकता डंग ने कहा कि योग हमेशा सकारात्मक सोच देता है। प्राणायाम में लंबी व गहरी सांसे लेने की आवश्यकता है।दिमाग की शांति के लिए भ्रमरी प्राणायाम करें। योग और प्राणायाम के समय हमारा ध्यान केंद्रित होना चाहिए।

विशिष्ट अतिथि विपिन राठौर, हरिद्वार ने कहा कि वेदों और उपनिषदों मे योग का वर्णन है। प्राण जो जीवन हैं। योग मे उन्नति चाहते हैं तो आहार की भूमिका महत्वपूर्ण होती है। प्राणायाम हमारे शरीर मे प्राण की उर्जा को बढाता है। प्राणायाम जीवन जीने की कला है। विशिष्ट अतिथि शुभम पाठक ने कहा कि योग शब्द युज धातु से बना जिसका अर्थ होता है जोड़ना, जीवात्मा का परमात्मा से मिल जाना, एक हो जाना योग है योगाचार्य महर्षि पतंजलि ने संपूर्ण योग के रहस्य को अपने योग दर्शन में सूत्रों के रूप में उपदेश किया है। चित्त को एक जगह स्थापित करना योग है।

विशिष्ट अतिथि डॉ. मुक्ता कान्हा कौशिक राष्ट्रीय मुख्य प्रवक्ता रायपुर, छत्तीसगढ़ ने कहा कि प्राणायाम का योग में बहुत महत्व है। जीवधारी के शरीर की रचना पंचमहाभूतो आकाश, वायु, अग्नि, जल एवं पृथ्वी से हुई है। इन पांच तत्वों का प्रतिनिधित्व हमारे शरीर की पांच ज्ञानेंद्रियां करती है। पांच ज्ञानेंद्रियां पांच कर्मेन्द्रियां शरीर के संस्थान ग्रंथियां आदि 24 तत्वों से हमारे शरीर का संचालन होता है। योगासन एवं प्राणायाम की पूरी व्यवस्था मस्तिष्क तथा नाड़ी मंडल को स्वस्थ व शांत करती है, साथ ही शरीर में अनेक क्रियाएं चलती रहती है।

विशिष्ट अतिथि डॉ. शहाबुद्दीन नियाज मोहम्मद शेख मुख्य राष्ट्रीय संयोजन, महाराष्ट्र, पुणे ने कहा कि महर्षि पतंजलि को योग दर्शन का प्रवर्तक भी कहा जाता है। योग पूर्ण रूप से प्राकृतिक और वैज्ञानिक भी है। योग हमारे शरीर मन और आत्मा के बीच संयम व संतुलन स्थापित करता है।असाध्य और जटिल रोगों में भी योग कारगर है। योग हमारी रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाकर सकारात्मक ऊर्जा प्रदान करता है। परिणामतः योग स्वयं के माध्यम से स्वयं की यात्रा है। डॉ. शिवा लोहारिया महिला इकाई अध्यक्ष जयपुर ने कहा कि फेफड़े के शुद्धिकरण के लिए प्राणायाम बहुत ही आवश्यक है।

अध्यक्षीय भाषण मे सुरेश चंद्र शुक्ला, ओस्लो, नार्वे ने कहा कि आसन शरीर की वह स्थिति है, जिसमें आप अपने शरीर और मन के साथ शांत स्थिर एवं सुख से रह सके।प्रातः योगासन करना अधिक लाभकारी है। आसन करते समय शरीर के साथ जबरदस्ती ना करें।
गोष्ठी का प्रारंभ सुनीता गर्ग के सरस्वती वंदना से हुआ स्वागत उद्बोधन राष्ट्रीय शिक्षक संचेतना के मार्गदर्शक हरेराम वाजपेई ने दिया।

प्रस्तावना राष्ट्रीय शिक्षक संचेतना के राष्ट्रीय सचिव डॉ. प्रभु चौधरी जी ने कहा की प्राणायाम करते समय हमारे शरीर में कहीं भी किसी भी प्रकार का तनाव नहीं होना चाहिए। यदि तनाव में प्राणायाम करेंगे तो उसका लाभ नहीं मिलेगा। प्राणायाम शरीर के लिए बहुत ही आवश्यक है। राष्ट्रीय शिक्षक संचेतना की उप महासचिव डॉ. रश्मि चौबे ने आभार व्यक्त किया। कार्यक्रम का संचालन श्रीमती पूर्णिमा कौशिक, रायपुर छत्तीसगढ़ ने किया।

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