नई दिल्ली। ज्ञात हुआ है कि यह फिरोजाबाद की रामवती जी हैं जो अपनी 85 वर्षीया सास फूलकली जी को लेकर संगम की ओर जा रही हैं। अपनी सासू मां को पीठ पर बैठाए रामवती जी के मन मे कृतज्ञता का भाव देखिये, इनके चेहरे की दिव्य मुस्कान देखिये। मानो कह रही हों कि मन में अगर प्रेम हो, अपने बुजुर्गों के प्रति श्रद्धा हो तो कितना भी बोझ हल्का हो जाता है बल्कि बोझ रह ही नहीं जाता है। रह जाता है तो बस आत्मसंतुष्टि का भाव और अपने दायित्वों को पूरा करने की असीम प्रसन्नता।
सास-बहू के झगडों की, एक दूसरे के प्रति दुर्भावना की आपने सैकड़ों कहानियां सुनी होंगी, पढ़ी होंगी, देखी होंगी। कीचड़ जैसी उन तमाम कहानियों पर रामवती जी का यह समर्पण भाव खिले हुए कमल की तरह है। सास-बहू के मलिन होते, टूटते संबंधो पर रामवती जी की यह श्रद्धा पवित्र, धवल आभा जैसी है। उनका यह एक सुकर्म सास-बहू के टूटते संबंधों के मोतियों को एक धागे में पिरोने का कार्य करेगा।
रामवती जी, आप जैसी तमाम बहुएं सनातन धर्म की, भारतीय संस्कृति की, हमारी समृद्ध पारिवारिक परंपरा की सच्ची प्रतिनिधि हैं। तीर्थराज प्रयागराज दर्शन के पुण्य की, इस महाकुंभ के अमृत की आप सच्ची अधिकारिणी हैं। मनुस्मृति में-
“यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवताः।
यत्रैतास्तु न पूज्यन्ते सर्वास्तत्राफलाः क्रियाः”
नारी के प्रति देवी जैसे भाव आप जैसी ही किसी सद्गुणी महिला को देखकर प्रस्फुटित हुए होंगे।
जयशंकर प्रसाद जी आप जैसी किसी कर्तव्यनिष्ठ स्त्री को देखकर ही अपने को “नारी तुम केवल श्रद्धा हो” कहने से न रोक पाए होंगे।
रामवती जी, आप इस घोर कलयुग में आदर्श बहुओं की ब्रांड एंबेसडर हैं। आप जैसी तमाम बहुओं को सादर नमन।
(विनय सिंह बैस)
रामवती जी जैसी तमाम बहुओं में देवी की छवि देखने वाले
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