कालिदास संस्कृत अकादमी, उज्जैन में तृतीय अंक संचेतना समाचार पत्र लोकार्पण सम्पन्न

उज्जैन : राष्ट्रीय शिक्षक संचेतना के मुख पत्र संचेतना समाचार के तृतीय अंक का लोकार्पण अखिल भारतीय शोध संगोष्ठी कालिदास समारोह में विक्रम विश्वविद्यालय उज्जैन के कुलपति प्रो. अखिलेश पाण्डेय, पूर्व कुलपति डॉ. बालकृष्ण शर्मा, पूर्व कुलपति प्रो. मिथिलाप्रसाद त्रिपाठी, कुलसचिव डॉ. प्रशांत पुराणिक, अहमदाबाद के विद्वान डॉ. अशोक भट्ट, कुलानुशासक डॉ. शैलेन्द्रकुमार शर्मा, कालिदास अकादमी निदेशक डॉ. संतोष पंड्या, शिक्षक संचेतना राष्ट्रीय अध्यक्ष श्री ब्रजकिशोर शर्मा, महासचिव डॉ. प्रभु चौधरी, सचिव प्रगति बैरागी जयपुर, प्रो. सरोज कुमारी, डॉ. सदानंद त्रिपाठी ने किया। इस अवसर पर कालिदास समिति की चतुर्थ शोध संगोष्ठी में विद्वतजनों प्राध्यापिकाओं ने शोध पत्र प्रस्तुत किये। डॉ. प्रभु चौधरी ने अपने शोधपत्र ‘अभिज्ञान शकुन्तलम् का बिदाई प्रसंग‘ में बताया कि महाकवि कालिदास विश्व साहित्य के दैदीप्यमान रत्न है। आज तक इनके समान अन्य कोई महाकवि नहीं हुआ।

रघुवंशम्, कुमारसम्भवम् महाकाव्य, अभिज्ञानशाकुन्तलम्, मालविकाग्निमित्रम्, विक्रमोर्वशीयम् नाटक, मेघदूतम्, ऋतुसंहार गीतिकाव्य भी कालिदास की संस्कृत साहित्य को अनुपम देन है। अभिज्ञानशाकुन्तलम् विश्व का प्रसिद्ध नाटक है जिसका अनुवाद विश्व की प्रत्येक भाषा में हो चुका है। विश्व के आलोचको द्वारा इसे अमूल्य रत्न माना गया है। जर्मन के प्रसिद्ध कवि गेटे ने कालिदास के नाटक की प्रशंसा इन शब्दों में की है-‘यदि यौवन वसन्त का पुष्प सौरभ और प्रौढत्व ग्रीष्म का मधुर फल परिपाक एकत्र देखना चाहते हो तो मन का रसायन व तृप्ति या मन को मोहित करने वाली मोहिनी अथवा स्वर्गीय एवं पार्थिव ऐश्वर्य इन दोनो के अभूतपूर्व सम्मिलन की अपूर्व झाँकी देखना चाहते हो तो एक बार अभिज्ञानशाकुन्तलम् अवश्य पढ़े।‘

रस की दृष्टि से वे रससिद्ध कवि थे अभिज्ञानशाकुन्तलम् का अंगरस श्रृंगार है। इनमें सीमित व पवित्र श्रृंगार के दोनो पक्ष विप्रलम्भ एवं संयोग दोनो की अवतारणा हुई है, जिसमें यह बहुत सी सुरूचिपूर्ण बन पड़ा है। श्रृंगार के अतिरिक्त इसमें करूण रस की अभिव्यंजना है। करूण रस बड़ा ही मार्मिक है। कहीं-कहीं हास्य व वात्सल्य की अवतारणा के साथ भयानक वीर व अद्भुत रस का भी चित्रण हुआ है। उनकी वैदर्भी शैली बड़ी ही लालित्यपूर्ण है। उपमा के बारे में तो इनका स्थान ही विशिष्ट है। इसी सन्दर्भ में यह उक्ति प्रसिद्ध है-‘उपमा कालिदासस्य-भारवेरर्थ गौरवम्।‘

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

five × 5 =