विनय सिंह बैस, नई दिल्ली। अपवाद को छोड़ दे तो एयरफोर्स में वायु सैनिक के रूप में चयनित होने वाले अधिकतर वह लड़के हैं जो ग्रामीण पृष्ठभूमि से हैं, पढ़ने-लिखने में ठीक हैं। परंतु उनकी आर्थिक स्थिति उतनी ठीक नहीं है। उनके पेरेंट्स के पास अपने बेटे को कोचिंग करने या उच्च शिक्षा के लिए किसी बड़े शहर भेजने की क्षमता नहीं है।
वायु सेवा की लिखित परीक्षा में पेपर लीक नहीं होता, भाई भतीजा-वाद नहीं चलता है। परीक्षा लेने वाले बाहर से आते हैं, नकल नहीं होती है। उसी दिन रिजल्ट मिल जाता है, इसलिए कोई जुगाड़ या सिफारिश भी नहीं चलती है। सबसे बड़ी बात यह कि वायुसेना में किसी जाति और धर्म के लिए आरक्षण नहीं है। इसलिए जो बच्चे हाई स्कूल तक ठीक से पढ़ाई किए होते हैं, उनका चयन वायु सेवा में अमूमन हो जाता है।
तथ्य यह भी है कि अधिकतर मामलों में वायुसैनिकों की शादी शहर की पढ़ी लिखी और उनके परिवार की अपेक्षा आर्थिक रूप से समृद्ध परिवार में होती है। उस समय लड़की वाले यह सोचकर खुश होते हैं कि कुछ दिन के बाद लड़की गांव-घर मे चूल्हा-चक्की नहीं करेगी, किसी वायुसेना स्टेशन में अपनी मर्जी से लड़के के साथ अकेली रहेगी। सुबह जल्दी उठने और सास-ननद की किटकिट नहीं रहेगी। कई लोगों का भोजन बनाने तथा सिर ढकने, साड़ी पहनने का झंझट नहीं रहेगा। परिवार कैसा भी हो, लड़का ठीक है, उसकी नौकरी ठीक है, सबसे बड़ी बात फैमिली (पत्नी) को अपने साथ रखेगा।
लड़के के मां-बाप यह सोचकर खुश हो रहे होते हैं कि ठीक-ठाक दहेज मिला है। साथ ही पढ़ी-लिखी, समृद्ध परिवार की शहरी लड़की आने से परिवार का रहन-सहन और तौर तरीका बदल जाएगा। बच्चे होने पर उनकी प्रारंभिक शिक्षा दीक्षा की जिम्मेदारी भी लड़की खुद ही संभाल लेगी। गांव और रिश्तेदारों में रुआब रहेगा कि शहर की बहू लाये हैं जो अंग्रेजी पढ़, लिख और बोल लेती है।
आदर्श स्थिति तो यह कि लड़की ससुराल का रहन-सहन सुधारे। लड़के को मॉडर्न बनाये, उसे कपडे पहनने, सजने-संवरने का शऊर सिखाये। उसके मां-बाप को अपना मां-बाप माने, उनकी इज्जत करे, मान सम्मान करें। लड़का भी अपने गांव वाले घर में शहर की हरसंभव सुविधाएं उपलब्ध कराए। अपने मां-बाप को समझा दे कि उससे गाय दुहने और गोबर फेंकने की उम्मीद न करे। साड़ी पहनने और घूंघट में रहने का दबाव न डालें। ढ़ंग के कपड़े पहने, सिर ढका हो, आजकल यही बहुत है। लड़के के मां-बाप तभी उसे गांव में रहने को कहें यदि कोई बड़ी मजबूरी हो या लड़के की पोस्टिंग नॉन फैमिली स्टेशन में हो, अन्यथा वह अपने पति के साथ रहे।
लेकिन होता यह है कि लड़के के मां-बाप शहर से आने वाली लड़की को जबरन गांव के तौर तरीके अपनाने पर मजबूर करने लगते हैं। वह यह भी चाहते हैं कि बहू गांव में रहकर सास-ससुर की सेवा करे और लड़का नौकरी करे। छुट्टी आने पर ही दोनों मिलें।
जबकि लड़की और उसके परिवार वाले लड़के को उसके घर वालों से तुरत ही अलग कर देना चाहते हैं। उनकी किसी भी मजबूरी को वह बहाना समझते हैं। लड़की के मां-बाप को लगता है कि शादी लड़के से हुई है तो वह लड़के के साथ रहे, गांव में गंवारों के साथ रहकर हाथ काले क्यों करे? जब उन्होंने अपनी लड़की से कोई काम नहीं कराया, कोई बंधन नहीं रखा तो उसके परिवार वाले ऐसा करने वाले कौन होते हैं?? इतना दहेज उन्होंने गोबर-सानी करने के लिए तो नहीं दिया है।
पारिवारिक कलह के जिम्मेदार दोनों पक्ष हो सकते हैं, गलती किसी भी तरफ से हो सकती है। प्रत्येक पति भगवान राम नहीं है और जाहिर सी बात है हर पत्नी माता सीता भी नहीं है। मैं गांव और शहर दोनों में रहा हूँ। मेरे पास आंकड़े तो नहीं हैं लेकिन अपने अनुभव से कहता हूं कि ग्रामीण क्षेत्रों में पारिवारिक कलह होने में अधिकतर पुरुष दोषी होते हैं और शहरों में विशेषकर जहां एकल परिवार हैं, वायुसेना के कैंपस जैसी सुविधाएं हैं, वहां 80% मामलों में गलती पत्नियों की होती है।
लेकिन यह हमारे देश का दुर्भाग्य है कि पारिवारिक कलह के मामले में कानून दोनों के लिए बराबर नहीं है। दहेज संबंधी कानून, घरेलू हिंसा के मामले में पति ही दोषी माना जाता है, चाहे गलती सरासर पत्नी की ही क्यों न हो। महिलाओं की सुरक्षा के लिए बनाए गए कठोर कानून का अब ज्यादातर मामलों में दुरुपयोग होने लगा है।
(स्पष्टीकरण : इस आलेख में दिए गए विचार लेखक के हैं और इसे ज्यों का त्यों प्रस्तुत किया गया है।)
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