संसद का विशेष सत्र ऐतिहासिक फैसलों का यादगार सत्र होगा – 33 प्रतिशत महिला आरक्षण बिल कैबिनेट में पारित

भारत ने 75 वर्षों की यात्रा में अनेक लोकतांत्रिक परंपराओं प्रक्रियाओं का उत्तम सृजन किया है
लोकतंत्र की सफ़लता के लिए स्वस्थ बहस होना ज़रूरी – नए संसद भवन से नए भारत के स्वर्णिम काल की यात्रा शुरू करने का संकल्प करना समय की मांग – एडवोकेट किशन भावनानी गोंदिया

किशन सनमुखदास भावनानी, गोंदिया, महाराष्ट्र। वैश्विक स्तर पर पूरी दुनियां की नजरें भारत के 18-22 सितंबर 2023 से शुरू हुए विशेष सत्र पर लगी हुई है कि किस तरह यह सत्र सफलताओं के नए-नए आयामों की रूपरेखा पर मोहर लगती है। क्योंकि 142 करोड़ भारतवासियों की बौद्धिक क्षमता से पूरी दुनियां वाकिब है कि किस तरह प्रौद्योगिकी, तकनीकी विज्ञान से लैस यह अभूतपूर्व जनसंख्याकियतंत्र की विशाल शक्ति पूरी दुनियां को हैरत अंगेज करने वाली सफलताओं के झंडे चुटकियों में गाढ़ सकते हैं। क्योंकि आज भारत की विकास यात्रा के कुशल नेतृत्व के हाथों से नीतियों रणनीतियों और विजन 2047 के रास्ते पर चल पड़ा है। जिसने अपने स्वर्ण काल की यात्रा में विश्वगुरु बनने का एजेंडा सेट किया हुआ है। ऐसे भारत का यह विशेष सत्र छोटा परंतु ऐतिहासिक फैसलों का यादगार सत्र होगा।

क्योंकि दिनांक 18 सितंबर 2023 को देर रात केंद्रीय कैबिनेट मंत्रियों की बैठक में महिला आरक्षण बिल 33 परसेंट पारित किया गया है। उम्मीद है यह बुधवार 20 सितंबर 2023 को पेश होगा। नए आयामों की शुरुआत नए संसद भवन की विकास की नई गाथाएं लिखने के साथ शुरू होगी। बता दें इस सत्र का प्रथम दिवस भारत के 75 वर्षों की यात्रा के लोकतांत्रिक परंपराओं प्रक्रियाओं के उत्तम सृजन के यादगार पलों को याद किया गया और 19 से 22 सितंबर 2023 को अधिसूचित चार विधेयकों पर चर्चा होगी जिसमें इतिहास रचा जाएगा। क्योंकि इस विशेष सत्र में महिला आरक्षण बिल सहित कुछ महत्वपूर्ण विधेयकों को पारित होने की अभूतपूर्व संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता। इसलिए आज हम मीडिया में उपलब्ध जानकारी के सहयोग से इस आलेख के माध्यम से चर्चा करेंगे लोकतंत्र की सफलता के लिए स्वस्थ बहस होना जरूरी है। नए संसद भवन से नए भारत के स्वर्णिम काल की यात्रा शुरू करने का संकल्प लेना समय की मांग है।

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एडवोकेट किशन सनमुखदास भावनानी : संकलनकर्ता, लेखक, कवि, स्तंभकार, चिंतक, कानून लेखक, कर विशेषज्ञ

साथियों बात अगर हम दिनांक 18 सितंबर 2023 को देर रात कैबिनेट में पारित 33 प्रतिशत महिला आरक्षण विधेयक की करें तो, बैठक में महिला आरक्षण बिल को मंजूरी मिल गई है। हालांकि अभी इसका अधिकारिक ऐलान होना बाकी है। संसदीय कार्य मंत्री के ट्विटर हैंडल से जानकारी आ गई है। मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक इस बिल को लेकर कई तरह के कयास लगाए जा रहे थे। लेकिन तमाम कयासों को दरकिनार करते हुए केंद्रीय कैबिनेट ने आखिरकार 33 फीसदी महिला आरक्षण को मंजूरी दे दी। अब इस मंजूरी के बाद महिला आरक्षण बिल को लोकसभा में पेश किया जाएगा। बता दें कि करीब 27 सालों से महिला आरक्षण बिल लंबित है, इस मुद्दे पर आखिरी बार कदम 2010 में उठाया गया था, मौजूदा लोकसभा में 78 महिला सांसद हैं, जो कुल संख्या 543 का 15 प्रतिशत से भी कम हैं। अगर ऐसा हुआ तो इससे पुरुषों राजनीतिज्ञों के सियासी हितों पर बड़ा कुठाराघात होगा। विपक्ष इस विधेयक को पारित कराने की दिशा में अपनी प्रतिबद्धता जाहिर कर सकता है।

साथियों बात अगर हम पुरानें संसद भवन से विदाई की करें तो 17 सितंबर 2023 को राज्यसभा बुलेटिन के अनुसार लोकसभा में अध्यक्ष की सभी सदस्यों को जानकारी के अनुसार मंगलवार को सुबह सभी सदस्यों की पुरानी संसद के सामने ग्रुप फोटो ली गई। राज्यसभा में भी इसे लेकर बुलेटिन जारी किया गया। इसमें बताया गया था और मंगलवार (19 सितंबर) को सुबह 9:30 बजे से पार्लियामेंट हाउस के गेट नंबर 1 और सेंट्रल हॉल के बीच कोर्टयार्ड 1 (आंगन) में राज्यसभा और लोकसभा के सदस्यों की ज्वाइंट फोटोग्राफ ली गई। वहीं, राज्यसभा सदस्यों की भी ज्वाइंट फोटोग्राफ ली गई। इसके लिए सभी सदस्य सुबह 9.15 बजे मौके पर पहुंचे थे। राज्यसभा के महासचिव ने भी दोनों सदनों के सदस्यों से अनुरोध किया था कि वे भारतीय संसद की समृद्ध विरासत को मनाने के लिए एकजुट हों। उन्होंने कहा था कि सभी सदस्य 2047 तक देश को एक विकसित राष्ट्र बनाने का संकल्प लें।

साथियों बात अगर हम 18 सितंबर 2023 को राज्यसभा के सभापति माननीय उपराष्ट्रपति के संबोधन की करें तो उन्होंने भारतीय संसद की 75 साल की अनवरत यात्रा के महत्व पर बल दिया और उन उपलब्धियों, अनुभवों, यादों और शिक्षण पर प्रकाश डाला जिन्होंने भारतीय लोकतंत्र को स्वरूप प्रदान किया है। संसदीय लोकतंत्र में जनता की अटूट आस्था और अटूट विश्वास को रेखांकित करते हुए, जोर देकर कहा, हमारे लोकतंत्र की सफलता हम भारत के लोगों का एक सामूहिक, ठोस प्रयास है। आज राज्यसभा के 261वें सत्र की शुरुआत में प्रारंभिक टिप्पणी देते हुए, श्री धनखड़ ने कहा कि राज्यसभा के पवित्र परिसर ने 15 अगस्त, 1947 को मध्यरात्रि में ट्रिस्ट विद डेस्टिनी (नियति से वादा) के भाषण से लेकर 30 जून, 2017 की मध्यरात्रि में अभिनव अग्रगामी जीएसटी व्यवस्था के अनावरण तक कई ऐतिहासिक क्षण देखे हैं। संविधान सभा में तीन वर्षों तक चले विभिन्न सत्रों में हुए विचार-विमर्श ने मर्यादा और स्वस्थ बहस का उदाहरण प्रस्तुत किया है।

इसका स्मरण करने हुए सभापति ने कहा कि विवादास्पद और अत्यधिक विभाजनकारी मुद्दों पर सर्वसम्मति की भावना से विचार विमर्श हुआ। स्वस्थ बहस को एक पुष्पित पल्लवित लोकतंत्र का प्रतीक बताते हुए, उन्होंने टकरावपूर्ण स्थिति और व्यवधान और अशांति को हथियार के रूप में प्रयोग किए जाने के विरूद्ध आगाह किया। उन्होंने जोर देकर कहा, हम सभी को संवैधानिक रूप से लोकतांत्रिक मूल्यों का पोषण करने के लिए नियुक्त किया गया है। इसलिए हमें लोगों के विश्वास पर खरा उतरना चाहिए और उसकी पुष्टि करनी चाहिए। संसद के अंदर विवेक, हास्य और व्यंग्य के महत्व पर प्रकाश डालते हुए, उन्होंने उन्हें एक सशक्त लोकतंत्र का अभिन्न पहलू बताया और आशा व्यक्त की कि इस तरह की हल्की-फुल्की और विद्वतापूर्ण बहस फिर से दिखाई देगी। उन्होंने सदन के सदस्यों से अनुरोध किया कि वे संसद की गरिमा का ध्यान रखें। उन्होंने कहा कि इस पवित्र परिसर ने कई उतार-चढ़ाव देखें हैं जिन पर हमें विचार-विमर्श करने की आवश्यकता है। उन्होंने कहा, यह सत्र संविधान सभा से शुरू होने वाली 75 वर्षों की संसदीय यात्रा – उपलब्धियां, अनुभव, यादें और सीख पर चिंतन और आत्मनिरीक्षण करने का एक उपयुक्त अवसर प्रदान करता है।

साथियों बात अगर हम लोकसभा में 18 सितंबर 2023 को माननीय पीएम के संबोधन की करें तो, पीएम ने कहा कि मंगलवार से हम नए भवन में चले जाएंगे लेकिन यह भवन आने वाली पीढ़ी को प्रेरणा देता रहेगा। 75 वर्ष की हमारी यात्रा ने अनेक लोकतांत्रिक परंपराओं और प्रक्रियाओं का उत्तम से उत्तम सृजन किया है और इस सदन के सभी सदस्यों ने उसमें सक्रियता से योगदान दिया है। पीएम ने कहा ये सही है कि इस इमारत के निर्माण का निर्णय विदेशी शासकों का था। लेकिन ये बात हम कभी नहीं भूल सकते हैं कि इस भवन के निर्माण में परिश्रम, पसीना और पैसा मेरे देशवासियों का लगा था। आज कार्यवाही को हाल में उद्घाटन किए गए भवन में स्थानांतरित करने से पहले भारत की 75 वर्षों की संसदीय यात्रा का पुनः स्मरण करने का अवसर है। पुराने संसद भवन के बारे में चर्चा करते हुए, पीएम ने कहा कि यह भवन भारत की स्वतंत्रता से पहले इम्पीरियल लेजिस्लेटिव कॉउन्सिल के रूप में कार्य करता था और स्वतंत्रता के बाद इसे भारत की संसद के रूप में मान्यता दी गई थी। उन्होंने बताया कि भले ही इस इमारत के निर्माण का निर्णय विदेशी शासकों द्वारा किया गया था, लेकिन यह भारतीयों द्वारा की गई कड़ी मेहनत, समर्पण और धन से विकसित हुआ।

75 साल की यात्रा में इस सदन ने सर्वोत्तम परंपराएं और प्रथाएं बनाई हैं, जिसमें सभी का योगदान रहा है और सभी इसके साक्षी हैं। हम भले ही नए भवन में शिफ्ट हो रहे हैं लेकिन यह भवन आने वाली पीढ़ी को प्रेरणा देती रहेगी। चूंकि यह भारतीय लोकतंत्र की यात्रा का एक स्वर्णिम अध्याय है। एक नए घर में स्थानांतरित होने वाले परिवार की उपमा देते हुए, प्रधानमंत्री ने कहा कि पुराने संसद भवन को विदाई देना एक बहुत ही भावनात्मक क्षण है। उन्होंने इन सभी वर्षों में सदन द्वारा देखी गई विभिन्न मनोभावों पर विचार करते हुए कहा कि ये यादें सदन के सभी सदस्यों की संरक्षित विरासत हैं। उन्होंने कहा, इसका गौरव भी हमारा है। उन्होंने कहा कि इस संसद भवन के 75 साल के इतिहास में देश ने नए भारत के निर्माण से जुड़ी अनगिनत घटनाएं देखी है और आज का दिन भारत के आम नागरिकों के प्रति सम्मान व्यक्त करने का अवसर है। संसद के गेट पर अंकित उपनिषद वाक्य का हवाला देते हुए कहा कि संतों ने कहा है कि लोगों के लिए दरवाजे खोलो और गौर करो कि उन्हें उनका अधिकार कैसे मिलता है। उन्होंने कहा कि सदन के वर्तमान और पूर्व सदस्य इस कथन की सत्यता के गवाह हैं।

पीएम ने समय के साथ सदन की बदलती संरचना पर प्रकाश डाला क्योंकि यह अधिक समावेशी हो गया और समाज के सभी वर्गों के प्रतिनिधि सदन में आने लगे। उन्होंने कहा, समावेशी माहौल लोगों की आकांक्षाओं को पूरी शक्ति से प्रकट करता रहा है। पीएम ने महिला सांसदों के योगदान के बारे में बताया कि इससे सदन की गरिमा बढ़ाने में मदद मिली है। एक ही सदन में 2 साल और 11 महीने तक संविधान सभा की बैठकों और संविधान को अपनाने और लागू करने के दिनों का स्मरण करते हुए, पीएम ने कहा कि 75 वर्षों में सबसे बड़ी उपलब्धि साधारण व्यक्ति का उनकी संसद में बढ़ता विश्वास रहा है। डॉ. राजेंद्र प्रसाद, डॉ. कलाम से लेकर श्री रामनाथ कोविन्द और श्रीमती द्रौपदी मुर्मु तक विभिन्न राष्ट्रपतियों के अभिभाषण से सदन लाभान्वित हुआ है।

अतः अगर हम उपरोक्त पूरे विवरण का अध्ययन कर इसका विश्लेषण करें तो हम पाएंगे कि संसद का विशेष सत्र ऐतिहासिक फैसलों का यादगार सत्र होगा – 33 प्रतिशत महिला आरक्षण बिल कैबिनेट में पारित। भारत ने 75 वर्षों की यात्रा में अनेक लोकतांत्रिक परंपराओं प्रक्रियाओं का उत्तम सृजन किया है। लोकतंत्र की सफ़लता के लिए स्वस्थ बहस होना ज़रूरी – नए संसद भवन से नए भारत के स्वर्णिम काल की यात्रा शुरू करने का संकल्प करना समय की मांग।

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