ऋषियों ने इसलिए दिया था ‘हिन्दुस्थान’ नाम

पं. मनोज कृष्ण शास्त्री, बनारस : भारत जिसे हम हिंदुस्तान, इंडिया, सोने की चिड़िया, भारतवर्ष ऐसे ही अनेकानेक नामों से जानते हैं। आदिकाल में विदेशी लोग भारत को उसके उत्तर-पश्चिम में बहने वाले महानदी सिंधु के नाम से जानते थे, जिसे ईरानियो ने हिंदू और यूनानियो ने शब्दों का लोप करके ‘इण्डस’ कहा। भारतवर्ष को प्राचीन ऋषियों ने ‘हिन्दुस्थान’ नाम दिया था जिसका अपभ्रंश ‘हिन्दुस्तान’ है।

‘बृहस्पति आगम’ के अनुसार
हिमालयात् समारभ्य यावत् इन्दु सरोवरम्।
तं देवनिर्मितं देशं हिन्दुस्थानं प्रचक्षते॥
यानि हिमालय से प्रारम्भ होकर इन्दु सरोवर (हिन्द महासागर) तक यह देव निर्मित देश हिन्दुस्थान कहलाता है। भारत में रहने वाले जिसे आज लोग हिंदू नाम से ही जानते आए हैं।
भारतीय समाज, संस्कृति, जाति और राष्ट्र की पहचान के लिये हिंदू शब्द लाखों वर्षों से संसार में प्रयोग किया जा रहा है। विदेशियों ने अपनी उच्चारण सुविधा के लिये ‘सिंधु’ का हिंदू या ‘इण्डस’ से इण्डोस बनाया था, किन्तु इतने मात्र से हमारे पूर्वजों ने इसको नहीं माना। ‘अद्भुत कोष’, ‘हेमंतकविकोष’, ‘शमकोष’, ‘शब्द-कल्पद्रुम’, ‘पारिजात हरण नाटक’, कालीका पुराण आदि अनेक संस्कृत ग्रंथो में हिंदू शब्द का प्रयोग पाया गया है।

ईसा की सातवीं शताब्दी में भारत में आने वाले चीनी यात्री ह्वेंनसांग ने कहा था कि यहां के लोगो को ‘हिंदू’ नाम से पुकारा जाता था। चंदबरदाई के पृथ्वीराज रासो में ‘हिंदू’ शब्द का प्रयोग हुआ है। पृथ्वीराज चौहान को ‘हिंदू अधिपति’ संबोधित किया गया है। समर्थ गुरु रामदास ने बड़े अभिमान पूर्वक हिंदू और हिन्दुस्थान शब्दों का प्रयोग किया। शिवाजी ने हिंदुत्व की रक्षा की प्रेरणा दी और गुरु तेग बहादुर और गुरु गोविन्द सिंह तो हिंदुत्व के लिए अपनी ज़िंदगी समर्पित कर दी। स्वामी विवेकानंद ने स्वयं को गर्व पूर्वक हिंदू कहा था। हमारे देश के इतिहास में हिंदू कहलाना और हिंदुत्व की रक्षा करना बड़े गर्व और अभिमान की बात समझी जाती थी।

(नोट : इस आलेख में व्यक्त किए गए विचार लेखक के निजी व व्यक्तिगत है। इस आलेख में दी गई सभी सूचनाएं ज्यों की त्यों प्रस्तुत की गई है।)

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