जनता में मीडिया की विश्वसनीयता उसकी सबसे बड़ी पूंजी है
प्रिंट व इलेक्ट्रॉनिक मीडिया को एक स्वतंत्र और उद्देश्य पूर्ण दृष्टिकोण से,जनता के प्रति अपने कर्तव्यों को रेखांकित करना होगा- एडवोकेट किशन सनमुखदास भावनानी गोंदिया
एडवोकेट किशन सनमुखदास भावनानी, गोंदिया, महाराष्ट्र। वैश्विक स्तर पर प्रिंट, इलेक्ट्रानिक व सोशल मीडिया का दुनियां के हर देश को उसके विकास की पहचान दिलाने वाला एक सशक्त मीडिया संसाधन है, जो न केवल अंतर्राष्ट्रीय बल्कि राष्ट्रीय स्तर पर भी मीडिया न्यायपालिका, कार्यपालिका और विधान पालिका के बाद चौथा स्तंभ के रूप में कहा जाता है जिसका महत्व आदि अनादि काल से ही रहा है। वहीं भारत को स्वतंत्रता दिलाने वाले कारकों में मीडिया की भी गिनती होती है। महात्मा गांधी से लेकर अनेक नेतृत्व कर्ताओं ने मीडिया के महत्व को रेखांकित किया है। जहां वर्तमान परिपेक्ष में मीडिया के अति विकास प्रौद्योगिकी युग में डिजिटलाइजेशन के चलते रेडियो के माध्यम से अंतिम पंक्ति पर बैठे व्यक्ति के पास भी पूरी जानकारी पहुंचाने में मीडिया का काफी योगदान रहा है, वहीं मीडिया में कुछ विसंगतियां भी उत्पन्न होना शुरू हो चुकी है। स्वतंत्र मीडिया पर कुछ परत बैठी हुई नजर आने लगी है। कोई उसे इस राजनीतिक संस्थान की विचारधारा वाला मीडिया हाउस है, कहता है तो कोइ उसे उस राजनीतिक पार्टी की विचारधारा वाला मीडिया कहता है। यह स्थिति आम जनता रेखांकित कर रही है। मैं स्वयं 25 वर्षों से टीवी चैनलों पर डिबेट में बहुत सी बातें इस संबंध में मार्क करते रहता हूं। मीडिया को माननीय उपराष्ट्रपति ने दिनांक 15 सितंबर 2023 को और फिर दिनांक 23 मार्च 2024 को भी आग्रह किया है कि मीडिया को पक्षपात पूर्ण राजनीति के लिए युद्ध का मैदान बनाने से रोकना होगा, क्योंकि जनता में मीडिया की विश्वसनीयता उसकी सबसे बड़ी पूंजी है। इसलिए आज हम मीडिया में उपलब्ध जानकारी के सहयोग से इस आलेख के माध्यम से चर्चा करेंगे प्रिंट व इलेक्ट्रॉनिक मीडिया को एक स्वतंत्र और उद्देश्यपूर्ण दृष्टिकोण से जनता के प्रति अपने कर्तव्यों को रेखांकित करना होगा ताकि विश्वास बना रहे।
साथियों बात अगर हम दिनांक 23 मार्च 2024 को माननीय उपराष्ट्रपति द्वारा एक कार्यक्रम में मीडिया के संबंध में विचारों की करें तो, उपराष्ट्रपति महोदय ने लोकतंत्र के चौथे स्तंभ के रूप में मीडिया की भूमिका और सामाजिक प्रवचन पर इसके प्रभाव को स्वीकार करते हुए, एक स्वतंत्र और उद्देश्यपूर्ण मीडिया की आवश्यकता पर बल दिया। उन्होंने कहा, मीडिया को भारत को समझने के लिए सही दृष्टिकोण बताने वाला एजेंट बनना चाहिए, न कि हमारी छवि खराब करने वाले सुनियोजित आख्यानों का शिकार बनना चाहिए। उन्होने मीडिया की विश्वसनीयता और स्व-नियमन के मुद्दों पर बात करते हुए, इस बात पर बल दिया कि मीडिया की विश्वसनीयता वस्तुनिष्ठ होने और राजनीति में शामिल न होने से पूरी तरह से उसके नियंत्रण में है। उन्होंने कहा, अगर मीडिया जगत अपनी अंतरात्मा का ख्याल रखेगा तो वह देश की अंतरात्मा का रक्षक बनकर उभरेगा उपराष्ट्रपति महोदय ने मीडिया के राजनीतिकरण के प्रति आगाह करते हुए कहा, मीडिया एक पंजीकृत मान्यता प्राप्त या गैर-मान्यता प्राप्त राजनीतिक दल नहीं हो सकता है। उन्होंने सचेत करते हुए कहा कि मीडिया को सभी सावधानियां बरतनी चाहिए ताकि वह पक्षपातपूर्ण राजनीति के लिए युद्ध का मैदान न बन जाए। उन्होने गलत सूचना और फर्जी खबरों की चुनौतियों का जिक्र करते हुए, निगरानी रखने और ऐसी गलत सूचनाओं पर अंकुश लगाने के लिए मीडिया के दायित्व को रेखांकित किया। उन्होंने कहा, जागरुक जनता लोकतंत्र की मजबूत रीढ़ की हड्डी है। उपराष्ट्रपति महोदय ने अपने संबोधन में मीडिया उद्योग के सभी वर्गों से आर्थिक राष्ट्रवाद को अपनाने की अपील की। उन्होने दूसरी श्रेणी और तीसरी श्रेणी के शहरों में काम करने वाले युवा पत्रकारों द्वारा किए जा रहे कार्यों की प्रशंसा करते हुए उनका साथ देने का आवाह्न किया।
साथियों बात अगर हम माननीय उपराष्ट्रपति द्वारा 15 सितंबर 2023 को एक कार्यक्रम में मीडिया से संबंधित विचारों की करें तो, माननीय उपराष्ट्रपति द्वारा एक पत्रकारिता विश्वविद्यालय में दिनांक 15 सितंबर 2023 को उन्होंने कहा था, पत्रकार प्रेस की स्वतंत्रता के अंतिम प्रहरी हैं। उनका बहुत बड़ा दायित्व है, उनके कंधों पर बहुत बड़ा भार है। चिंता का विषय है, चिंतन का विषय है, मंथन का विषय है और परेशानी का विषय है कि प्रहरी कुंभकरण मुद्रा और निद्रा में है। सभी जानते हैं पत्रकारिता व्यवसाय नहीं है, समाज सेवा है। मेरे से ज़्यादा आप जानते हैं पर बड़े अफसोस के साथ कह रहा हूं बहुत से लोग यह भूल गए हैं। पत्रकारिता एक अच्छा व्यवसाय बन गया है, शक्ति का केंद्र बन गया है, सही मानदंडों से हट गया है, भटक गया है। इस पर सबको सोचने की आवश्यकता है। पत्रकार का काम क्या है? निश्चित रूप से किसी राजनीतिक दल का हितकारी होना तो नहीं है, पत्रकार का यह काम तो कभी नहीं हो सकता कि वह ऐसा काम करें कि एजेंडा सेट हो, कोई खास नॉरेटिव चले, यह तो नहीं होना चाहिए। मैं खुलकर बात इसलिए कर रहा हूं कि एशिया और देश में, इस संस्थान का बड़ा नाम है। जिस व्यक्ति के नाम पर है, उनकी रीढ़ की हड्डी बहुत मज़बूत थी। इसीलिए मैं भी हिम्मत कर रहा हूं, ऐसी बातें दिल से कहूं आपके समक्ष।प्रेस की स्वतंत्रता तभी हो सकती है, जब प्रेस जिम्मेवार हो, सकारात्मक समाचारों को महत्व देने की ज़रूरत है। मेरा आपसे यह आग्रह रहेगा कि मीडिया सजग है तो देश गदगद होगा। कुरीतियों को दूर करने में आपका बहुत बड़ा योगदान है। हमारे संविधान में मौलिक अधिकार है पर मौलिक दायित्व भी है, डायरेक्टिव प्रिंसिपल्स भी हैं। मीडिया ठान ले तो देश में सड़क पर अनुशासन सर्वोपरि होगा। आप लोगो की ताकत बहुत ज़्यादा है, आपको सिर्फ समझने की आवश्यकता है। उनको रास्ता आप दिखाएंगे, जिनको रोशनी की आवश्यकता है।पत्रकारिता की वर्तमान दशा और दिशा गहन चिंता और चिंतन का विषय है। हालात विस्फोटक है, अविलंब निदान होना चाहिए। प्रजातांत्रिक व्यवस्था का आप चौथा स्तंभ है। सबसे कारगर साबित हो सकते हैं, कार्यपालिका हो, विधायिका हो, न्यायपालिका हो, सबको आप अपनी ताकत से सजग कर सकते हैं, कटघरे में रख सकते हैं।
साथियों बात अगर हम भारतीय मीडिया के संबंध में बात करें तो, वैश्विक स्तर पर एक बात पर हर देश सहमत है कि प्रजातंत्र का चौथा स्तंभ मीडिया है। जिसका अंदाजा शायद लोकतंत्र के सबसे बड़े और मज़बूत गढ़ में लगाया जाना आसान है, जहां स्वाभाविक रूप से यह देखा जाता है कि हर शासनकाल में सत्ता केंद्र के अनुकूल विचारों का रुझान हर मीडिया चैनल पर दर्शक और जनता द्वारा महसूस किया जाता है, जो स्वाभाविक भी है, जिसे रेखांकित करना जरूरी है क्योंकि अगर इतना बड़ा मीडिया हाउस चलाना है तो बुराई अनैतिक व्यवहारों इत्यादि के खिलाफ लड़ाई करते हुए, कुछ सत्ता केंद्र की ओर रुझान भी जनता महसूस करती है टीवी चैनलों पर करीब-करीब हर मीडिया चैनल पर हम अक्सर देखते हैं कि अनेक मुद्दों पर अनेक पार्टियों के प्रवक्ताओं को आमंत्रित कर उनसे उस मुद्दे पर डिबेट किया जाता है। परंतु सत्ता केंद्र रुझान वाले प्रवक्ताओं को कुछ बैकिंग मिलती है यह हम साफ़ महसूस करते हैं इसमें कोई आश्चर्य भी नहीं होता है। क्योंकि दर्शक और जनता जनार्दन समझती है कि यह उनके कर्तव्य, मजबूरी या नीति का होना स्वाभाविक है। मैं यह बात इसलिए कह रहा हूं क्योंकि मैं करीब 25 से अधिक वर्षों से टीवी चैनलों पर इस प्रकार के मुद्दों पर डिबेट को देखता हूं और पक्ष विपक्ष के प्रवक्ता मेहमानों की बातों को किस तरह कितना वजन मिलता है, समझ में आ जाता है, अगर किसी प्रवक्ता का आर्गुमेंट रूपी तीर निशाने पर लग गया है तो पक्ष-विपक्ष अनुसार उसको कैसे मोड़ना है, इस कला का एंकर द्वारा खूब प्रयोग होता है, यही कारण है कि दिनांक 14 सितंबर 2023 को विपक्षी महागठबंधन आई.एन.डी.आई.ए ने 14 पत्रकारों या यूं कहें कि मीडिया हाउसों पर अपने प्रवक्ताओं को नहीं भेजने का निर्णय लिया है। इसलिए मीडिया से जुड़े हुए हर व्यक्ति या यूं कहें कि मीडिया से जुड़े अंतिम शोर वाले व्यक्ति को भी अपना काम निष्पक्षता और जनता जनार्दन के प्रति कर्तव्यों के दृष्टिकोण से करना जरूरी है ताकि मीडिया के प्रति विश्वसनीयता बनी रहे।
अतः अगर हम उपरोक्त पूरे विवरण का अध्ययन कर इसका विश्लेषण करें तो हम पाएंगे कि मीडिया को पक्षपातपूर्ण राजनीति के लिए युद्ध का मैदान बनाने से रोकना होगा। जनता में मीडिया की विश्वसनीयता उसकी सबसे बड़ी पूंजी है। प्रिंट व इलेक्ट्रॉनिक मीडिया को एक स्वतंत्र और उद्देश्य पूर्ण दृष्टिकोण से, जनता के प्रति अपने कर्तव्यों को रेखांकित करना होगा।
(स्पष्टीकरण : इस आलेख में दिए गए विचार लेखक के हैं और इसे ज्यों का त्यों प्रस्तुत किया गया है।)
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