कोलकाता। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने देश में ‘समान नागरिक संहिता (यूसीसी)’ की वकालत की है। लेकिन, अभी भी यूसीसी का मुद्दा पश्चिम बंगाल में गरम नहीं हो सका है। राजनीतिक पर्यवेक्षकों का मानना है कि यूसीसी का मुद्दा राज्य में नहीं गरमाने के दो कारण हैं। पहला कारण त्रि-स्तरीय पंचायत प्रणाली के लिए आगामी चुनावों को लेकर बढ़ती राजनीतिक सरगर्मी है, जिसमें हिंसा और झड़पों में पहले ही 12 लोगों की जान जा चुकी है। सत्ता पक्ष और विपक्ष दोनों ही इसमें उलझे हुए हैं, इसलिए उनका ध्यान अभी तक राजनीतिक मुद्दे के रूप में यूसीसी पर केंद्रित नहीं है।
एक अन्य कारण यह है कि पश्चिम बंगाल में भाजपा नेतृत्व स्वयं यूसीसी को लागू करने के पक्ष में प्रधानमंत्री मोदी के तर्कों को सामने लाने में कम दिलचस्पी ले रहा है। जबकि, तृणमूल कांग्रेस और सीपीआई (एम) दोनों ने राष्ट्रीय स्तर पर यूसीसी के कदम पर आपत्ति जताई थी। हालांकि, उनके राज्य नेतृत्व इस मामले पर कमोबेश चुप है।
राज्यसभा में तृणमूल कांग्रेस के नेता डेरेक ओ ब्रायन के अनुसार यूसीसी का मुद्दा प्रधानमंत्री मोदी ने लोकसभा चुनाव 2024 से पहले उठाया है। क्योंकि, वह समझते हैं कि लोग आमतौर पर बेरोजगारी और महंगाई सहित अन्य चीजों से नाखुश हैं। यह इन ज्वलंत मुद्दों से ध्यान भटकाने का एक स्पष्ट प्रयास है।
सीपीआई (एम) पोलित ब्यूरो ने एक बयान जारी कर दावा किया है कि हिंदुत्व ब्रिगेड की सांप्रदायिक राजनीति और अल्पसंख्यकों (विशेष रूप से मुस्लिम समुदाय) में उत्पन्न असुरक्षा के बीच सुप्रीम कोर्ट द्वारा समान नागरिक संहिता की सिफारिश की गई है। मौजूदा हालात में इससे ‘राष्ट्रीय एकता के उद्देश्य’ पर विपरीत प्रभाव पड़ेगा।
बयान में आगे कहा गया है कि बहुसंख्यक सहित विभिन्न समुदायों के कई व्यक्तिगत कानून महिलाओं के खिलाफ भेदभाव करते हैं। जो भारतीय संविधान में नागरिकों को दिए गए अधिकारों के अनुरूप नहीं हैं। विभिन्न व्यक्तिगत कानूनों में सुधार की तत्काल आवश्यकता है। जिसमें देरी नहीं की जा सकती।
कुछ राजनीतिक पर्यवेक्षकों का मानना है कि पंचायत चुनावों की व्यस्तताओं के अलावा, एक और कारण हो सकता है कि भाजपा नेता राज्य में इस मुद्दे पर ज्यादा शोरगुल नहीं कर रहे हैं। उन्हें लगता है कि इस साल ग्रामीण निकाय चुनावों के साथ ही 2024 के लोकसभा चुनावों के बीच इस मामले में तृणमूल कांग्रेस की भाजपा विरोधी अभियान से बचा जाए।
राजनीतिक टिप्पणीकार सब्यसाची बंदोपाध्याय ने कहा कि नवंबर 2016 में पश्चिम बंगाल के विभिन्न हिस्सों से हजारों इमामों की एक विशाल सभा हुई थी, जहां उन्होंने स्पष्ट रूप से कहा था कि वे समान नागरिक संहिता को स्वीकार नहीं करेंगे।
उन्होंने आगे कहा, ”याद रखें, तत्कालीन तृणमूल कांग्रेस के लोकसभा सदस्य स्वर्गीय सुल्तान अहमद सदन में प्रमुख वक्ताओं में से एक थे, जहां उन्होंने स्पष्ट रूप से कहा था कि समान नागरिक संहिता भाजपा के लिए एक चुनावी खिलौना है। अब, पश्चिम बंगाल में मुस्लिम मतदाताओं का कुल वोट प्रतिशत 33 है। इसी को देखते हुए भाजपा सतर्क है। जिससे भ्रष्टाचार के मुद्दों पर राज्य में तृणमूल कांग्रेस विरोधी लहर यूसीसी के चलते भाजपा के खिलाफ ना हो जाए।”
राजनीतिक टिप्पणीकार और स्तंभकार अमल सरकार ने बताया कि 2021 के पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव से पहले भारी लहर पैदा करने के बावजूद टीएमसी ने भाजपा को 294 सीटों वाली विधानसभा में 77 पर रोक दिया गया था। क्योंकि, टीएमसी के पक्ष में मुस्लिम वोट बैंक एकसाथ आया था।
ममता बनर्जी ने भी राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर और नागरिकता (संशोधन) अधिनियम के मुद्दों पर भाजपा को लगातार कठघरे में खड़ा किया। इसका फायदा टीएमसी को मिला था। लिहाजा, बीजेपी समान नागरिक संहिता पर सावधानी से आगे बढ़ रही है।