पंडित मनोज कृष्ण शास्त्री, वाराणसी : पौराणिक कथाओं में कामधेनु गाय का वर्णन एक चमत्कारी गाय के रूप में मिलता है। इनका दूसरा नाम सुरभि भी है, जिन्हें सभी गाय प्रजाति की माता होने का दर्जा प्राप्त है। इनके बारे में ऐसा माना जाता है कि इनके दर्शन मात्र से ही सभी तरह की कष्ट और कलेश दूर हो जाते हैं। दैवीय शक्तियों से संपन्न कामधेनु गाय का दूध अमृत के समान माना जाता था। यह दैवीय गाय स्वर्गलोक में रहती हैं।
कैसे हुई उत्पत्ति : पौराणिक कथाओं के अनुसार देवताओं और असुरों के बीच हुए समुद्र मंथन से निकले 14 रत्नों में से एक कामधेनु गाय थीं, जिसे ब्रह्मवादी ऋषियों ने उसे ग्रहण कर लिया था। कामधेनु प्रतीक है मन की निर्मलता की, क्योंकि विष निकल जाने के बाद मन निर्मल हो जाता है। ऐसी स्थिति में ईश्वर तक पहुंचना और भी आसान हो जाता है।
कामधेनु गाय देखने में एक सफेद गाय की तरह है जिनका सिर एक महिला के जैसी है। इनके पूरे शरीर में अलग-अलग देवी देवता निवास करते हैं। इसलिए हिंदू धर्म में सभी गायों को कामधेनु की सांसारिक अवतार के रूप में पूजा जाता है। इनकी रोज पूजा करने से धन, वाहन, मकान जैसी जीवन से जुड़ी हर इच्छा पूरी हो स्कती है।
इनके चारों पैर ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद, अथर्ववेद का प्रतिक है। इनका सींग ब्रह्मा का रूप है तो सिर का मध्य हिस्सा विष्णु और नीचे का हिस्सा भगवान शिव का रूप है। उनकी आंखें चंद्रमा और सूरज का प्रतीक है।
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जोतिर्विद वास्तु दैवज्ञ
पंडित मनोज कृष्ण शास्त्री
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गौ माता की जय