अपोलो हॉस्पिटल्स में कोलोरेक्टल कैंसर के लिए जिन पर रोबोटिक सर्जरी की गयी उसी 28 वर्षीय डॉक्टर ने जीता स्वर्ण पदक

  • दोहरी ख़ुशी क्योंकि अपोलो इंस्टीट्यूट ऑफ कोलोरेक्टल सर्जरी ने भारत में सबसे व्यस्त रोबोटिक कोलोरेक्टल सर्जरी कार्यक्रम के साथ सफलतापूर्वक पूरे किए पांच साल 
  • कोलोस्टॉमी के बिना और कोलोरेक्टल कैंसर सर्जरी के बाद जीवन की गुणवत्ता में सुधार के लिए लो रेक्टल रिसेक्शन और रिकंस्ट्रक्शन की सुविधा देने वाले चुनिंदा सेंटर्स में से एक
  • यूनिवर्सिटी कॉलेज, लंदन और क्लीवलैंड क्लिनिक, फ्लोरिडा, यूएसए के साथ सहयोग

चेन्नई : अपोलो इंस्टीट्यूट ऑफ कोलोरेक्टल सर्जरी, चेन्नई में 28 वर्षीय स्नातकोत्तर मेडिकल छात्र डॉ. जेडी (गोपनीयता के लिए नाम बदला गया है) पर लो रेक्टल कैंसर के लिए रोबोटिक कोलोरेक्टल सर्जरी सफलतापूर्वक की गयी और उसके बाद उन्होंने मेडिकल पोस्ट-ग्रेजुएशन पूरा किया और उसमें स्वर्ण पदक जीता। यह घटना तब हुई है जब अपोलो इंस्टीट्यूट ऑफ कोलोरेक्टल सर्जरी ने कोलोरेक्टल रोगों, खास कर कोलोरेक्टल कैंसर के रोगियों के इलाज के लिए अत्याधुनिक सबसे कम इनवेसिव रोबोटिक सर्जिकल तकनीकों और प्रौद्योगिकी प्रस्तुत करने को पांच साल पूरे हुए हैं।

अपोलो इंस्टीट्यूट ऑफ कोलोरेक्टल सर्जरी, चेन्नई के कंसल्टेंट कोलोरेक्टल एंड रोबोटिक सर्जन, डॉ. वेंकटेश मुनिकृष्णन ने कहा, “डॉ. जेडी को 2017 में जब वह 24 साल की थी, तब लो रेक्टल कैंसर का पता चला, ठीक उसी समय उनके मेडिकल पोस्ट-ग्रेजुएशन की शुरूआत होने वाली थी। यह उनके लिए एक सदमा था क्योंकि उन्हें लगा कि इलाज के बाद भी, मेडिकल शिक्षा के उनके सपने टूट जाएंगे।

उन्हें ऐसा इसलिए लगा क्योंकि कोलोरेक्टल कैंसर में पारंपरिक सर्जरी रोगियों में कोलोस्टॉमी छोड़ देती है, यानी, शरीर में एक सर्जरी द्वारा बनाया गया ओपनिंग जो बॉवेल वेस्ट को एक बाहरी कोलोस्टॉमी बैग में ले जाता है। उन्होंने इस उम्मीद के साथ हमसे संपर्क किया कि हम उन्हें एक ऐसा समाधान दे सकते हैं जिससे वह अपनी पढ़ाई जारी रखते हुए सामान्य जीवन जी सकें। हमने उन्हें निराश नहीं किया!”

डॉ. मुनिकृष्णन ने रोबोटिक प्रक्रिया के बारे में अधिक जानकारी देते हुए कहा, “रोबोटिक कोलोरेक्टल सर्जरी से, हम कैंसर को हटाने और कोलन को रेक्टल / अनल कनेक्शन के पुनर्निर्माण के लिए जटिल सर्जरी करने में सक्षम हुए, इस तरह से स्थायी कोलोस्टॉमी को टाला गया। वह असामान्य रूप से ठीक हो गई, उन्होंने अपना कोर्स पूरा किया और उसमें उत्कृष्ट प्रदर्शन करते हुए स्वर्ण पदक प्राप्त किया। रोबोटिक सर्जरी के कई अल्पकालिक लाभ भी हैं जैसे खून कम बहना, मरीज़ का जल्दी ठीक होना और सामान्य शारीरिक क्रियाएं बेहतर तरीकों से कर पाना।”

पिछले दो दशकों में युवा वयस्कों में उनकी 20 से 40 तक की आयु में कोलोरेक्टल कैंसर की दर बढ़ रही है। यह उम्र का वो दौर होता है जब लोग काफी ज़्यादा सक्रिय होते हैं, परिवारों और करियर का निर्माण करते हैं और इसीलिए उपचार के बाद इन रोगियों के लिए जीवन की अच्छी गुणवत्ता सुनिश्चित करना महत्वपूर्ण है। हालांकि, कोलोरेक्टल कैंसर की अगर शुरुआती अवस्था में पहचान कर ली जाए तो इसे पूरी तरह से ठीक किया जा सकता है और रोबोटिक कोलोरेक्टल सर्जरी मरीजों को कोलोस्टॉमी से बचने और सामान्य जीवन जीने में मदद करती है।

अपोलो हॉस्पिटल्स ग्रुप के चेयरमैन डॉ. प्रताप सी रेड्डी ने कहा, “विश्व बैंक ने आने वाले दशक में गैर-संचारी रोगों से आने वाले भारी संकट और व्यक्तियों, परिवारों और राष्ट्र पर पड़ने वाले प्रभाव के मुद्दे को रेखांकित किया था। खास कर कैंसर से होने वाला नुकसान बहुत भारी है, कोलोरेक्टल कैंसर बढ़ रहे हैं, यह एक बड़ा खतरा बन रहा है। अपोलो में, हम अत्याधुनिक चिकित्सा तकनीक ला रहे हैं, जो कैंसर के इलाज के लिए हेल्थकेयर इनोवेशन के अगले युग का प्रतिनिधित्व करती है।

2016 में, हमने कोलोरेक्टल सर्जरी के लिए एक विशेष विभाग शुरू किया और साथ ही साथ रोबोटिक कोलोरेक्टल सर्जरी भी शुरू की। इससे सर्जरी काफी सटीक होती है जिससे रोगियों को कम से कम दुष्प्रभावों का सामना करना पड़ता है। रोबोटिक कोलोरेक्टल सर्जरी कार्यक्रम को समूह के अन्य अस्पतालों में भी शुरू किया जाएगा। हमें विश्वास है कि बीमारी का जल्द से जल्द निदान किए जाने के साथ यह कोलोरेक्टल कैंसर सहित कोलोरेक्टल रोगों से होने वाले मृत्यु दर को कम करने में मदद करेगा।”

अपोलो हॉस्पिटल्स ग्रुप की एग्जीक्यूटिव वाइस चेयरपर्सन सुश्री प्रीता रेड्डी ने कहा, “अपोलो इंस्टीट्यूट ऑफ कोलोरेक्टल सर्जरी का भारत में रोबोटिक कोलोरेक्टल सर्जरी के लिए एकमात्र केंद्रित सुपर-स्पेशियलिटी सेंटर के रूप में विकास, नैदानिक उत्कृष्टता के प्रति हमारी दृढ़ प्रतिबद्धता का प्रतीक है। पिछले कुछ वर्षों में, रोबोटिक कोलोरेक्टल सर्जरी जैसी न्यूनतम इनवेसिव तकनीकों में कई प्रगति हुई है।

जिससे कोलोरेक्टल रोगों के प्रबंधन में, विशेष रूप से रेक्टल कैंसर सर्जरी के लिए महत्वपूर्ण बदलाव आया है। इसके अलावा, जब कोलोरेक्टल स्थितियों वाले रोगियों का इलाज कोलोरेक्टल सर्जन द्वारा किया जाता है तब बेहतर नैदानिक परिणाम प्राप्त होने के प्रमाण बढ़ रहे हैं।

मरीजों को दुनिया में सर्वोत्तम उपलब्ध देखभाल प्रदान करने के हमारे दृढ़ संकल्प के हिस्से के रूप में, अपोलो ने यूनिवर्सिटी कॉलेज, लंदन और क्लीवलैंड क्लिनिक, फ्लोरिडा, यूएसए के साथ नैदानिक सहयोग किया है। इस तरह की साझेदारी से हमारी मेडिकल टीम हमेशा समकालीन चिकित्सा विकास पर अपडेट रहती है और साथ ही, नैदानिक विशेषज्ञता का एक स्वस्थ आदान-प्रदान होता रहता है।”

यह इंस्टिट्यूट कोलन, रेक्टम और अनस के रोगों के प्रबंधन के लिए भारत के पहले समर्पित केंद्रों में से एक है और कोलोरेक्टल कैंसर के लिए रोबोटिक और लेप्रोस्कोपिक कोलोरेक्टल सर्जरी और प्रोक्टोलॉजी और पेल्विक फ्लोर रोगों में अत्याधुनिक उपचार प्रदान करता है। रोबोटिक कोलोरेक्टल सर्जरी प्रोग्राम देश में सबसे व्यस्त सर्जरी प्रोग्राम है, जिसमें 2016 में शुरू होने के बाद से 600 से अधिक रोबोटिक कोलोरेक्टल सर्जरी की गयी हैं, जिनमें से 450 डॉ वेंकटेश मुनिकृष्णन द्वारा की गयी हैं, जो देश में सबसे अधिक मात्रा में रोबोटिक कोलोरेक्टल सर्जरीज़ करने वाले सर्जन है।

दुनिया भर में कोलोरेक्टल कैंसर एक आम कैंसर है, लेकिन भारत में इसकी रिपोर्टेड केसेस कम हैं, ग्लोबोकैन 2018 रैंकिंग में मामलों की संख्या के आधार पर कोलन कैंसर 13 वें स्थान पर है, हर साल इसके 27,605 नए मामले आते हैं और सालाना 19,548 मौतें होती हैं। 2018 से, पूरे भारत में 27,605 नए मामले दर्ज किए गए हैं और भारत में इस बीमारी से पीड़ित रोगियों की कुल संख्या लगभग 53,700 होने का अनुमान है। कोलोरेक्टल कैंसर बढ़ रहा है, खास कर युवा एशियाई पुरुषों में यह बीमारी बढ़ती हुई नज़र आ रही है, उनकी अस्वस्थ जीवन शैली इसके प्रमुख कारणों में से एक है।

डॉ. वेंकटेश मुनिकृष्णन ने बीमारी के अगले चरण में जब कैंसर बढ़ जाता है तब इलाज के लिए आने वाले रोगियों पर कोविड महामारी के प्रभाव पर भी प्रकाश डाला। उन्होंने कहा, “महामारी शुरू होने के बाद से बीमारी के अगले चरण में बढ़े हुए कैंसर के साथ अस्पताल में आने वाले मरीज़ चिंता का विषय रहे हैं।

प्रारंभिक चरण एक और दो में कैंसर का इलाज करना आसान होता है तीसरे और चौथे चरण तक कैंसर का आगे बढ़ना रोकने के लिए लोगों को इसके बारे में जागरूक करना आवश्यक है ताकि लक्षण जल्द से जल्द पता चलें और इलाज किए जाएं। कोलोरेक्टल कैंसर के लक्षण और बवासीर जैसी सौम्य स्थितियों के लक्षण समान होते हैं इसलिए उनके बारे में लोगों को जागरूक करने की तत्काल आवश्यकता है।”

मामलों की काफी बड़ी संख्या के साथ देश में सबसे व्यस्त इकाई होने के नाते, डॉ. मुनिकृष्णन के नेतृत्व में अपोलो इंस्टिट्यूट ऑफ कोलोरेक्टल सर्जरी वर्तमान में हर साल 750 से अधिक कोलोरेक्टल प्रक्रियाएं करता है, जिनमें से 130 कोलोरेक्टल कैंसर सर्जरीज़ हैं, और उनमें से 110 से अधिक रोबोटिक सर्जरी हैं।

रोबोटिक कोलोरेक्टल सर्जरी की संख्या काफी ज़्यादा बढ़ जाने की वजह से उनकी लागत में भी बचत हो रही है, रोबोट कोलोरेक्टल सर्जरी की लागत मानक कीहोल सर्जरी के लगभग बराबर है। इस प्रगति ने उन रोगियों को भी लाभान्वित किया है जिन्हें अन्य कोलोरेक्टल बीमारियां हैं, खास कर रेक्टल और पैल्विक विकारों जैसे कि रेक्टल कैंसर या रेक्टल प्रोलैप्स के उपचार में यह फायदेमंद साबित हुई है।

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