कोलकाता। चाय बोर्ड के अध्यक्ष पी के बेजबोरुआ ने गुरुवार को कहा कि इस सांविधिक निकाय को नियामक की जगह संवर्धन और विपणन संगठन के रूप में अधिक सक्रिय भूमिका निभानी चाहिए।बेजबरुआ ने कहा कि उदारीकरण के मौजूदा परिदृश्य को देखते हुए 1953 के चाय अधिनियम के कुछ वर्गों को हटाने से जमीन पर कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा।
उन्होंने सरकार द्वारा कानून की कुछ धाराओं को निलंबित करने के बारे में कहा, ‘‘मुझे लगता है कि चाय बोर्ड को वर्तमान उदारीकृत वातावरण में नियामक के बजाय एक संवर्धन और विपणन निकाय के रूप में होना चाहिए।’’ वाणिज्य मंत्रालय ने 23 अगस्त 2021 को एक अधिसूचना में कहा कि कानून की धारा 12 से 16, धारा 39 और 40 तत्काल प्रभाव से निलंबित रहेंगी।
बेजबरुआ ने कहा कि इसका मतलब है कि अब फसल लगाने के लिए चाय बोर्ड से इजाजत की जरूरत नहीं होगी। उन्होंने कहा कि पिछले 30 वर्षों से छोटे चाय उत्पादकों ने चाय बोर्ड से इजाजत नहीं ली, और वे कुल उत्पादन में 50 प्रतिशत से अधिक का योगदान करते हैं। इसलिए इस फैसले का जमीन पर कोई प्रभाव नहीं होगा।