व्यंग्य: कुछ याद उन्हें भी कर लो।
श्रद्धासुमन पांच सौ और हज़ार के नोटों को ।। आपने किसी को फांसी की सज़ा
मैं कतरा हो के भी तूफ़ां से जंग लेता हूं (हास-परिहास)
विषय बदल गया है साल तक जिन कृषि कानूनों के फायदे समझा रहे थे अचानक
ऊंचे पर्वत पर खड़े हुए बौने लोग
कुछ ऐसा ही लग रहा है जैसे कोई किसी की बड़ी रेखा को छोटा कर
किन बातों को अपनाना या छोड़ना (विरासत)
लगता है जैसे तमाम लोग मानते हैं कि हमारी सभी पुरानी ऐतहासिक धार्मिक किताबों की
किसान होना क्या होता है
मोदी जी उनके दल के विधायक सांसद अन्य दलों के नेताओं कुछ पढ़े लिखे कुछ
जीवन भर साथ निभाने की बात
महिलाओं को मना किया है क्योंकि कहते हैं उनको बताई बात राज़ नहीं रहती है।
जनसेवकों के लिए न्यूनतम समर्थन वेतन तय हो
सबसे पहले न्यूनतम समर्थन मूल्य का मकसद समझते हैं। किसान को समझाया जाता रहा है
अन्नदाता तुम आना जब दिल्ली बुलाए ( मरी हुई संवेदना )
किसानों को दिल्ली आने से रोकना सत्ता का अनुचित इस्तेमाल कर तमाम तरह से ,
बेगुनाही की सज़ा मिलती है ( व्यंग्य-कथा ) : डॉ लोक सेतिया
काली रात के अंधेरे में सुनसान वीरान जगह उन सभी बड़े बड़े लोगों की दुनिया
कांच का लिबास संग नगरी
उनकी नकाब हट गई तो उनका असली चेहरा सामने आएगा जो खुद उन्हीं को डराएगा।