अशोक कुमार वर्मा “हमदर्द”, कोलकाता। अर्जुन और स्नेहा की शादी की तैयारियाँ पूरे जोर-शोर से चल रही थीं। रवि और चांदनी ने स्नेहा के लिए अपनी पसंद से एक खूबसूरत मंडप चुना था। घर में उत्सव का माहौल था। परिवार के लोग, जो कभी स्नेहा की माँ चांदनी को उसकी भाग कर की गई शादी के लिए ताने मारते थे, अब स्नेहा और अर्जुन की शादी के लिए तैयारियों में बढ़-चढ़कर हिस्सा ले रहे थे।
शादी का दिन नजदीक आ रहा था। स्नेहा के मन में कई भावनाएं उमड़ रही थीं- एक ओर वह अर्जुन के साथ अपने नए जीवन की कल्पना कर रही थी, तो दूसरी ओर उसे अपने घर को छोड़ने का दुख भी सता रहा था। वह अक्सर चुपचाप अपनी माँ के पास बैठ जाती, उनके कंधे पर सिर रखकर अपने दिल का हाल बताती।
एक दिन चांदनी ने स्नेहा से कहा, “बेटा, शादी का दिन नजदीक है, लेकिन तुम्हारे चेहरे पर चिंता की लकीरें देख रही हूँ, सब ठीक तो है?”
स्नेहा ने गहरी सांस लेते हुए कहा, “माँ, सब कुछ ठीक है। बस यह सोच रही हूँ कि शादी के बाद सब कुछ बदल जाएगा। क्या मैं अपने नए जीवन में इतनी ही खुश रह पाऊंगी, जितनी अभी हूँ?”
चांदनी ने स्नेहा का हाथ थामते हुए कहा, “बेटी, बदलाव तो हर जीवन का हिस्सा है। जब मैंने अपने जीवन में कदम रखा था, तब मुझे भी ऐसा ही महसूस होता था। लेकिन एक बात हमेशा याद रखना, शादी का मतलब यह नहीं कि तुम अपने सपनों को भूल जाओ या अपना अस्तित्व खो दो। तुम जिस भी घर में जाओगी, उसे अपने प्यार और समझ से संवारोगी। और मैं जानती हूँ कि अर्जुन भी तुम्हारे साथ हमेशा खड़ा रहेगा।”
स्नेहा ने अपनी माँ की बातों से खुद को थोड़ा शांत महसूस किया। वह जानती थी कि उसकी माँ ने अपनी जिंदगी के इतने उतार-चढ़ाव देखे हैं, फिर भी वे मजबूत खड़ी हैं। स्नेहा ने खुद से वादा किया कि वह अपने नए जीवन को पूरे दिल से अपनाएगी।
शादी का दिन आ गया, घर को फूलों से सजाया गया था और सभी रिश्तेदार एकत्रित हो चुके थे। स्नेहा लाल रंग की साड़ी में सजी-धजी बेहद खूबसूरत लग रही थी। अर्जुन भी अपनी धारीदार शेरवानी में किसी राजकुमार से कम नहीं लग रहा था।
विवाह के मंत्रों के बीच, जब स्नेहा और अर्जुन ने एक-दूसरे के गले में वरमाला डाली, तो पूरा माहौल आनंद और खुशियों से भर गया। रवि की आँखों में गर्व के आँसू थे, और चांदनी के चेहरे पर सुकून की एक मुस्कान थी। उसे लगा जैसे उसकी जिंदगी की अधूरी कहानी अब पूरी हो रही है।
शादी के बाद, स्नेहा और अर्जुन का नया जीवन शुरू हुआ। अर्जुन के परिवार ने स्नेहा को खुले दिल से अपनाया। उसका ससुराल उसकी उम्मीदों से कहीं ज्यादा अच्छा निकला। स्नेहा को वहाँ अपनी आज़ादी भी मिली और प्यार भी।
एक दिन, स्नेहा ने अपनी माँ से फोन पर बात करते हुए कहा, “माँ, यहाँ सब बहुत अच्छा है। मुझे लगता है कि मुझे जीवन का दूसरा मौका मिला है, जिसमें मैं अपनी सारी खुशियाँ पा रही हूँ। अर्जुन भी बहुत समझदार है। लेकिन माँ, एक बात जरूर कहूँगी, आपकी सीख हमेशा मेरे साथ रही। अगर आपने मुझे समझाया न होता, तो शायद मैं भी वही गलतियाँ करती जो आपने की थीं।”
चांदनी ने हँसते हुए कहा, “बेटा, मैं हमेशा यही चाहती थी कि तुम खुश रहो। और मुझे खुशी है कि तुमने अपने जीवन को सही दिशा दी। बस हमेशा याद रखना, कोई भी रिश्ता तब तक मजबूत रहता है जब तक दोनों लोग एक-दूसरे की भावनाओं और सपनों का सम्मान करते हैं।”
स्नेहा ने माँ की बात मन में रखी और अर्जुन के साथ अपने जीवन को बेहतर बनाने में जुट गई। कुछ महीने बाद, स्नेहा को यह खबर मिली कि वह माँ बनने वाली है। यह खबर सुनकर स्नेहा और अर्जुन के जीवन में नई खुशियाँ आ गईं। चांदनी भी इस खबर से बेहद खुश हुई और उसने अपनी बेटी के लिए एक नई यात्रा की शुरुआत को देख गर्व महसूस किया।
अब चांदनी को लगने लगा था कि उसकी जिंदगी की कठिनाइयाँ और दुख अब अतीत बन चुके हैं। उसकी बेटी ने सही दिशा में कदम बढ़ाए थे, और अब वह अपने जीवन में सुख और समृद्धि पा रही थी।
अगली किश्त में, देखेंगे कि स्नेहा और अर्जुन के जीवन में माता-पिता बनने की जिम्मेदारियाँ और नई चुनौतियाँ कैसे आती हैं और वे उन पर कैसे विजय पाते हैं।
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