अशोक वर्मा “हमदर्द” की कहानी – कहां गये वो लोग…

अशोक वर्मा “हमदर्द”, कोलकाता। दोपहर का समय था हम अपनें बच्चों के साथ खाने पर बैठने वाले थे तभी डाकिया ने आवाज़ लगाई, कोई है… रजिस्ट्री पत्र आया है हम तुरंत बाहर निकले, डाकिया ने हमसे हस्ताक्षर करवाया और पत्र को हमें सौप दिया। मैंने तुरंत पत्र को खोला और पढनें लगा पत्र मेरे मां ने भिजवाया था मेरे बहन की शादी ठीक हो गई थी समय कम था और व्यवस्था कुछ ज्यादा ही करना था ऐसे तो हम पांच भाई है, सबसे बड़ा होने के कारण कुछ ज्यादा ही दायित्व हम पर था और छोटे भाई अपनी पढ़ाई पूरी कर रहे थे। पिताजी अवकाश प्राप्त कर के हमारे बच्चों के साथ अपना समय व्यतीत कर रहे थे। बहन इकलौती थी अर्थात कोई भी कोर-कसर हम शादी में छोड़ना नहीं चाहते थे। मगर हमारे भी बच्चे और प्राइवेट काम, अभाव तो था ही फिर भी हमनें पन्द्रह दिनों के अंदर तैयारी कर के अपनी पत्नी और बच्चों के साथ अपनें गांव रवाना हो गये।

अशोक वर्मा “हमदर्द”, लेखक

आज शाम 8 बजे विभूति एक्सप्रेस हावड़ा से खुलने वाली थी, चुकी हम लोग कोलकाता के उपनगरीय इलाके में रहते थे पहले ही घर से निकल पड़े। समय कम होने के कारण आरक्षित सीट उपलब्ध नहीं थी अतः हम लोग साधारण डब्बे में ही सफर करने को बाध्य थे। हम लोगों को डुमरांव तक जाना था वहां से हमारा घर 7 किलो मीटर रेहियां नामक गांव में है, ऐसे तो हमारा निकटवर्ती स्टेशन टूड़ीगंज है मगर वहां एक्सप्रेस गाडियां कम ही रुकती है। गाड़ी अपने समय से 8बजे हावड़ा स्टेशन से खुली, डब्बे में खचाखच भीड़ भरी थी फिर भी हम लोगों को बैठने की जगह मिल गई थी।हमारे सामने वाली सीट पर एक और परिवार अपनें दो बच्चों को लेकर बैठा था तब तक गाड़ी बर्दमान तक पहुंच चुकी थी।

तभी सामने वाली सीट पर बैठी उस महिला ने हमारे पत्नी से पूछा बहन जी कहां तक चलना है आप लोगों को, हमारे पत्नी ने सहजता से उत्तर दिया हम लोगों को डुमरांव तक जाना है, आप कहां तक जाएंगी हमारी पत्नी ने भी एक प्रश्न डाल दिया तभी उस महिला ने कहा हम लोग तो पंडित दीनदयाल यानी मुगलसराय जाएंगे बहुत परेशानी हो रही है समय कम होने के कारण आरक्षित सीट भी नही मिली उस महिला ने कहा। उसके भाषा और रहन सहन से ये पता चल रहा था की वो एक अच्छे परिवार से थी। तभी उसके पति ने भी हम सबों से दोस्ती बढ़ा ली और कहने लगा मुगलसराय के निकट ही मेरा गांव पड़ता है मां की तबियत खराब है, नही तो इतनी जल्दी क्या थी बाद में हम लोग जाते मगर मौका ही ऐसा है खैर!

आप लोग तो बाद में जा सकते थे आप लोगों को भी काफी तकलीफ हो रही है, तभी मेरे मुंह से निकल गया भाई साहब मेरे भी बहन की शादी है अगले सप्ताह और सारी व्यवस्थाएं हमें ही करनी है नहीं तो मैं भी इतनी परेशानी में क्यों जाता। इधर हमारी पत्नी और हमारे बच्चे यहां तक कि मैं भी सामने वालों के साथ काफी कम समय में घुल मिल गये थे। तब तक दुर्गापुर पहुंच चुके थे तभी हमारे पत्नी ने कहा बातें तो होती रहेगी अब कुछ खा पी लिया जाए। सोने का भी समय हो रहा है बच्चे सो जायेंगे कह कर वो थैले से टिफिन निकालना शुरू कर दी इधर हम सबों को देख कर अगला दंपत्ति भी अपनें खाने का सामान निकाला और हम सब एक दूसरे के साथ बांटकर खाने लगे।

खाना पीना हो जाने के बाद हम सब जैसे तैसे नीचे बिछाकर बच्चों के सोने की व्यवस्था किये और खुद बैठे बैठे सो गये जब होश हुआ तो हम सब मुगलसराय के एक हॉस्पिटल में थे सर चक्कर दे रहा था, आखों के सामने अंधेरा था शरीर निर्जीव जैसा लग रहा था मुंह से आवाज नही निकल पा रही थी हमारे बच्चों की हालत और खराब थी। डॉक्टरों की आवाज हम सुन पा रहे थे वो कह रहे थे अब संकट टल चुका है बच्चे कुछ घंटों में ठीक हो जाएंगे नशा ज्यादा है। तभी लड़खड़ाती जुबान से मैं बोलना चाह रहा था, डॉक्टर साहब हम सबों को क्या हुआ है हम सब कहां है? तभी एक सिपाही ने हम लोगों से कहा आप लोग नशा खुरानी गिरोह का शिकार हो गए हैं। तभी अचानक मैं अपनें सामानों को ढूंढने लगा मगर कुछ नही मिला सारा सामान गायब था, मैने उस सिपाही से पूछा सर! मेरे साथ और एक परिवार था उन्हें भी मुगलसराय तक ही आना था “कहां गये वो लोग” वे लोग तो हमारे अपने जैसा हो गए थे।

तभी सिपाही ने झुंझलाते हुए कहा अगर वो अपनें जैसा व्यवहार नही करते तो आप उनके खानें वाली वस्तुओं को कैसे खाते, उनकी इन बातों में ही तो लोग फंस कर अपना सब कुछ गवां बैठते है ऐसे भी आप लोगों को डुमरांव तक ही सफर करना था आपके पॉकेट से ये टिकट मिली है जिस पर डुमरांव तक ही सफर करने का अधिकार दिया गया है। दूसरे दिन हम लोगों को हॉस्पिटल से छुट्टी मिल गई थी हम लोगों के पास अपना शरीर छोड़कर कुछ नही बचा था। हमनें सिपाही को अपनी मजबूरी बताकर उससे 20 रूपये मांगे। उसे हम सबों पर तरस आ गई उसने 20की जगह सौ रूपये का एक नोट देकर कहा भाई साहब ये सौ ही रखिए सफ़र में काम आएगा। मैंने धन्यवाद कह कर पैसे को संभाल कर रख लिया। सिपाही मदद के लिये मुगलसराय से पटना जाने वाली ईएमयू पैसेंजर में बिठाकर चल पड़ा।

इधर पत्नी का रो रोकर बुरा हाल था। पैसेंजर में लोगों की जवाब देते-देते हम लोग थक गए थे। लोग तरह तरह के सुझाव दे रहे थे तो कुछ हम सबों को बेवकूफ समझ रहे थे। अब तक हम लोग बक्सर पहुंच चुके थे वहां से पैसेंजर ट्रेन होने के कारण हम लोग अपनें स्टेशन टूड़ीगंज ही उतरना ठीक समझे। तब तक डुमरांव पार कर चुके थे हमनें अपनी पत्नी से कहा गेट पर आ जाओ टूड़ीगंज आ रहा है। कुछ मिनटों में हम अपनें स्टेशनों पर उतर गये। मेरे भाई सुबह से ही आने जानें वाली हर गाड़ी पर ध्यान दे रहे थे। हम सबों का मुरझाया चेहरा देख कर सारे अचंभित थे। वो हमारे सामान को लेने आए थे मगर सामान था ही कहां, मैने अपनें साथ घटी सारी बातें बताई और घर की तरफ चल पड़ा। घर पर पहुंचने के बाद जब लोगों को हम सबों के साथ होने वाले हादसों की खबर मिली तो सारे लोग दंग रह गए।

फिर कई दिन बीत गए थे सबके चेहरे पर मायूसी छा गई थी अब होता भी क्या और 3 दिन बचे थे बारात आने को, समझ में नही आ रहा था की क्या किया जाय। इधर बहन का चेहरा देखने लायक था वो बार-बार बोल रही थी भैया अब क्या होगा? अगर वर पक्ष वाले मान जाते है तो शादी का समय कुछ दिनों के लिये बढ़ा दीजिए हो सकता है तब तक कुछ जुगाड़ हो जाए। तभी मेरे दिमाग में एक बात आई क्यों न अपनें खेत को गिरवी रख दिया जाए इसमें कोई शिकायत नहीं थी बेटी के व्याह की बात थी आज और एक दिन निकल गया था। सुबह नहा धोकर हम पैसों की जुगाड़ में निकलने वाले थे तभी एक पार्सल वाला बड़ा सा पैकेट लेकर हमारे दरवाजे पर आ गया। भैया अभिषेक आप ही का नाम है यह पैकेट आप के ही नाम से है, कुछ देर के लिए मैं तो हतप्रभ था की किसके द्वारा भेजा गया यह पार्शल है, खैर! मैंने पार्सल लिया और वह व्यक्ति चलता बना।

मैंने पार्सल को घर के अंदर जाकर खोला तो दंग रह गया ये तो हमारा ही सारा सामान था जो सफ़र में चोरी हो गया था उसमे एक पत्र था। पत्र को हम पढ़ने लगे जिसमे लिखा था – आदरयुक्त भैया जी नमस्कार, मैं आपसे क्षमा चाहता हूं, मुझसे बहुत बड़ी गलती हो गई है मैंने आपके साथ बहुत बड़ा विश्वासघात किया है। आपको ज्ञात हो की हम और हमारा परिवार हम सब नशाखुरानी के सदस्य है। मेरा पेशा ही लोगों को लूटना है मगर मेरे जीवन का यह प्रथम वाकया है जब लूटा हुआ सामान हमें अपनें ही हाथों लौटाना पड़ रहा है, मुझे माफ़ कीजिएगा, कहानी कुछ ऐसी है दुर्गापुर से जब ट्रेन गुजर रही थी उस समय आपके पत्नी ने खाने का पैकेट निकाला इसके पहले बातों ही बातों में हमें पता चल गया था की आप शादी में जा रहे है, हम लोगों को ऐसे ही मुर्गों की तलाश रहती है जहां सोना चांदी समेत नगद मिलता हो।

तभी हमारे पत्नी ने भी अपनें भोजन का पैकेट निकाल लिया और आपस में बांटकर खाने का शिलसिला जारी हुआ इसी क्रम में आपके पूरे परिवार के भोजन में नशा डाल दिया गया था, खाने के कुछ ही देर बाद आपका पूरा परिवार नशा के आगोश में आ गया और हम अपनें पूरे परिवार के साथ आपका माल लेकर उतर गये। हम और हमारा परिवार अपने सफलता पर काफी खुश थे। हम लोग सामान को कुरेद रहे थे तभी आपके बहन का लिखा हुआ पत्र मिला और हम पढ़ने लगे जिसमें लिखा था, आदरयुक्त भैया एवं भाभी चरण कमलों में सादर प्रणाम, आपको ज्ञात हो की छोटे भैया ने मेरे लिये एक वर ढूंढ़ा है भाभी जी तभी से मैं परेशान रहने लगी हूं। मुझे पता है की मेरे शादी में बहुत खर्च है और आप लोगों के पास पैसे नहीं है थोड़ा बहुत बाबूजी के पास जो पैसे थे वो पैसा उनके बीमारी में खत्म हो गया। अगर आप लोग खेत भी बेचते है तो गांव का परिवार खाएगा क्या?

भाभी जी यही सोच कर मुझे नींद नहीं आती है। मैं ये भी जानती हूं की भैया के पास भी पैसे नहीं होंगे कारण की शहर में रहकर बच्चों को पढ़ाना, घर का किराया बिजली का बिल भैया को बचता ही क्या होगा। मैं ये भी जानती हूं की मेरे शादी के लिये भैया को कर्ज़ लेना पड़ेगा और उसे चुकता करना भैया के लिए बड़ी बात होगी और साहूकार भैया को उल्टी सीधी बातें बोलेंगे और भैया को मेरी वजह बहुत कष्ट सहना पड़ेगा। मेरे लाख मना करनें के बाद भी छोटे भैया ने शादी ठीक करनें की ठान ली है। भाभी जी मैं नही चाहती की मेरी वजह मेरे भाइयों को कोई तकलीफ़ पहुंचे। भाभी जी मैं आपसे वादा करती हूं की मेरी वजह भैया लोगों का पगड़ी नीचा नहीं होगा मैं हमेशा अपनें भाइयों के सम्मान की रक्षा करूंगी, भाभी मैं शादी नही करना चाहती।

ऐसे भी लड़के वालों के तरफ से कुछ नगद और सोने के कंगन सहित कुछ गहनों की भी मांग है। अब आप हीं बतलाइए की जहां दुआर पूजाई और बारात के खाने का पैसा न हो वहां सोना चांदी और नगद कहां से आएगा? मैं नही चाहती की शादी के पहले तो कष्ट कर ही रही हूं शादी के बाद भी दहेज के लिए पीटी जाऊं या फिर जला दी जाऊं, भाभी भैया को समझाइये उन्हें विश्वास दिलाइए की मैं उनके सम्मान की रक्षा करूंगी मगर वो इस शादी को ख़त्म कर दें। मेरी हिम्मत भी नहीं की मैं भैया के आखों में आखें डाल कर उनसे कुछ कह सकूं। मेरी बातों पर चिंतन जरूर कीजिएगा, आपकी ननद – ज्योति

पत्र पढ़ कर मेरे पुराने समय याद आ गए कभी मेरे बहन ने भी ठीक ऐसा ही पत्र लिखा था जो आज नही है। वो दहेज लोभियों के हाथों की शिकार हो गई मैंने भी अपनी बहन के लिये सोने का एक कंगन बनवाया था जो उसे दे नही पाया था। उसे आपके सामान के साथ दे रहा हूं। मैं सोच कर दहल गया हूं की कहीं सामान की वजह आपके ज्योति के साथ भी ऐसी हादसा न हो जाए। अतः मैंने यह समान आपको पहुंचा देना उचित समझता हूं और प्रतिज्ञा करता हूं की मैं और मेरा परिवार नशा खुरानी जैसे कार्य को कभी अंजाम नही देंगे, आपका दोस्त – मनोहर

सामान पाने के बाद घर में खुशी का माहौल था गांव में भी इस घटना की चर्चा हो रही थी। इधर बहुत सारे रिश्तेदारों को भी ये पता चल गया था की शादी का सारा सामान लूट लिया गया है अतः रिश्तेदार भी जितना हो सके सहयोग के लिए आगे आ गये थे।इधर ज्योति ने अपने होने वाले ससुर जी को सारी बातें बता दी थी। जिसके बातों से प्रभावित होकर उन्होंने दहेज में लिए हुए तमाम नगद रूपये लौटा दिये थे। उनका कहना था की एक लुटेरे के अंदर अगर दिल है तो हम सब तो समाज के प्रबुद्ध व्यक्ति है। शादी के बाद जब ज्योति अपनें ससुराल से लौटी तो अपनें भाभी के हाथों में दहेज के नगदी रुपयों को देकर कहा भाभी जी ये पैसा भैया को देकर कहें कि वो महाजन को लौटा दें। हमारे ससुर जी का कहना है की उस लुटेरे और हम में फर्क क्या रह जायेगा, वो भी हराम के पैसों के लिए लूटता है और दहेज लोभी भी हराम के पैसों के लिये लड़की वालों को लूटते है।

इस कहानी में यात्रा करते समय सावधानी बरतें और किसी के मित्रवत व्यवहार में न फसें न खाएं न खिलाएं साथ ही साथ दहेज लेना पाप और सामाजिक बुराई है की प्रेरणा दी गई है।

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