अशोक वर्मा “हमदर्द” की कहानी : प्रतिशोध

कोलकाता। आज पूजा बहुत खुश थी कारण की पूजा को अपनी चाहत के रूप में अजय मिल गया था। आज पूजा और अजय की सुहाग रात थी।दोनों अपनें प्रथम मिलन को लेकर काफी खुश थे। अचानक उनके खुशी में आग लग गई। क्योंकि आज ही के दिन जमींदार अपनी बकाया रकम मांगने अजय के घर पहुंच गया था।जिसे अजय के पिता ने कभी जमींदार से लिया था ऐसे समय में जमींदार का पहुंचना अजय को चौका दिया था। उसने जमींदार से कुछ समय की मोहलत मांगी थी किंतु निष्ठुर जमींदार ने अजय की एक न सुनी और उसे पकड़ कर अपने साथ ले गए। इधर नई नवेली दुल्हन पूजा अपनें पति के साथ ये घटना देखकर काफी परेशान हो गई थी। पति के आने का इंतजार करते-करते काफी रात हो गई थी। अचानक दरवाजे के खटखटाने की आवाज मिली और पूजा खुश हो गई, उसे लगा उसका अजय लौट आया है उसने चहकते हुए दरवाजा खोला, अचानक जमींदार की देखकर वो डर गई तभी जमींदार ने धक्का देकर पूजा को अंदर कर दरवाजे की कुंडी लगा दी और पूजा को काबू कर लिया।

अशोक वर्मा “हमदर्द”, लेखक

पूजा की हालत बंद पिंजरे के पंछी जैसी हो गई वो जमींदार से विनती करती रही की वो उसे छोड़ दे किंतु ऐसा नहीं हो सका और जमींदार ने पूजा के आबरू को लूट लिया और जाते-जाते कह गया की ये राज अगर तुम छुपा लोगी तो तुम्हारा जीवन सुख से कटेगा। ये बात सिर्फ मेरे और तुम्हारे तक रहेगी अगर तुम पेट से भी रह गई तो अजय को समझ में नही आयेगा क्योंकि वहां से छूटने के बाद वो भूखा शेर की तरह तुम पर झपटेगा ही। पूजा पत्थर की मूर्ति की तरह बुत बन कर आसूं बहाए जा रही थी और जमींदार निकल पड़ा था। इधर अचानक पूजा उठी और बाथरूम में जाकर नहाने लगी जैसे उसके शरीर से ज्वाला ही शांत नहीं हो रही थी। इधर जमींदार अजय के पास पहुंच गया था। अजय जमींदार को देख कर हाथ जोड़कर अपनें रिहाई की भीख मांग रहा था। अचानक जमींदार का सुर बदल गया था वो कहने लगा जाओ मैं तुझे मुक्त करता हूं। आज तुझे यहां नही लाना चाहिए था उसके इस आवाज में चालाकी और व्यंग था।

तभी गिड़गिड़ाते हुए अजय कह रहा था हां मालिक आज हमारी सुहाग रात है तभी जमींदार ने मुस्कुराते हुए अजय से कहा जाओ मैं तुझे मुक्त करता हूं तुम अपनें सुहागरात का आनंद उठाओ, भोग लो इस सुख को जो रोज रोज नही आता। अजय भागा दौड़ा पूजा के पास पहुंचा था। पूजा इधर दुल्हन के लिवास को खोल कर विस्तर पर फेक दी थी शरीर में केवल भीजे हुए कुछ अंग वस्त्र थे। अजय के पहुंचने के बाद जैसे ही दरवाजा खटखटाने की आवाज मिली पूजा सहमी हुई साड़ी को जैसे तैसे शरीर में लपेट कर दरवाजा खोली। अजय पूजा के इस रूप को देख कर चौक गया था उसके चेहरे पर मायूसी छा गई थी। उसने पूजा से पूछा तुम इस हालत में और तुम्हारे वस्त्र भी भींगे है क्या बात है? पूजा ने अपनें बात को बदलते हुए कहा – तो क्या करती पूरे बदन में आग जो जगाकर चले गए थे क्या करती इसे पानी से ही तो बुझाना पड़ा। तभी अचानक अजय ने कुंडी लगाया और पूजा को अपनी गोद में उठा लिया और अपनें बेडरूम की तरफ चल पड़ा।

पूजा अचानक व्याकुल हो गई उसे अजय के रूप में जमींदार दिख रहा था वो अजय के गिरफ्त से अपने आप को छुड़ाना चाह रही थी। इधर पूजा के इस आचरण से अजय परेशान हो उठा और पूजा से कहने लगा क्या बात है तुम मेरे साथ इस तरह का व्यवहार क्यों कर रही हो। दोष तो मेरे पिताजी का था जो जमींदार से कर्ज लिए थे जिसकी भरपाई हम सबों को आज के इस शुभ घड़ी में बंधक बन कर चुकाना पड़ रहा है। पूजा ने सहजता से बातों को संभाला और अजय से कहने लगी आपके अचानक गोद में उठाने से मैं डर गई थी। अजय ने पूजा से विस्तर पर सोने का आग्रह किया जिसे पूजा ने स्वीकार लिया और विस्तर पर दोनो सो गए आज इधर-उधर की बातें ही करते करते अजय को नींद आ गई थी। किंतु पूजा आज के इस हादसे को भूल नहीं पा रही थी, वो आसूं विस्तर पर बहाए जा रही थी। अचानक उसके मन में एक तरकीब सूझी और उसने जमींदार के पूरे परिवार को खत्म करनें की ठान ली। पूजा के रातों की नींद गायब थी और देखते देखते सुबह हो गई।

पूजा सुबह जागकर चाय लेकर अजय के पास आई और उसे गुडमर्निग कह कर जगाया। अजय ने उठकर चाय की प्याली थाम कर चाय के प्याली को टेबल पर रखा और पूजा को अपनें बाहों में भर लिया। पूजा नखरा कर रही थी वो अजय से कह रही थी की आप मुझे छोड़िए नाश्ता करना है, आपको ऑफिस भी तो जाना है किसी तरह पूजा अपनी हाथ छुड़ाकर रसोई की तरफ भागी। इधर अजय नहाधोकर ऑफिस जाने को तैयार था। कुछ क्षण में ही पूजा अजय को उसके टिफिन को सौप कर उसे ऑफिस को विदा कर दिया। अजय के घर से निकलते ही पूजा ने भी सज-धज कर घर में ताला लगाया और बाहर निकल पड़ी। कुछ दूर चलने के बाद वो एक टेम्पु पकड़ी और एक सरकारी हॉस्पिटल जाकर उतरी और रिसेप्सन की तरफ़ चल पड़ी।

उसने हॉस्पिटल के कई विभाग में घुमा और कई लोगों से मिली जैसे लग रहा हो वो किसी व्यक्ति को खोज रही हो, तभी एक नर्स से पूजा की मुलाकात हो गई पूजा ने उससे कई मिनटों तक बात की। नर्स बार-बार अपनी आखें फाड़े पूजा को देख रही थी और लग रहा था की वो पूजा को कुछ समझा रही है हो और पूजा समझने को राजी न हो। कुछ क्षण बाद पूजा ने अपनी थंब दिखाकर ओके कहा और वहां से चल पड़ी। घर आने के बाद पूजा बहुत परेशान थी उसने हल्का सा भोजन लिया और रात भर की जगी विस्तर पर लेटते ही नींद में समा गई। देखते-देखते शाम हो गई थी तभी दरवाजे की बेल बजी और पूजा की नीद खुल गई। उसने अपनी बालों को अपनी हाथों से संवारा और दरवाज़ा खोलने चली गई।

सामने अजय खड़ा था उसने अपनी बाहों में लेकर घर के अंदर प्रवेश किया तभी पूजा ने अजय से पूछा कैसा रहा आज का दिन? अजय ने पूजा के होठों को दबाते हुए कहा जिसकी इतनी सुंदर पत्नी घर में अकेली हो उसका ऑफिस में दिल कैसे लगेगा? ठीक है लेक्चर बाद में हाथ पैर धो लीजिए और मैं चाय लेकर आ रही हूं। समय बीतता गया इधर अजय पूजा के रोज-रोज के एक बहाने से काफी परेशान रहने लगा उसके समझ में नही आ रहा था की अगर पूजा को हमसे रिश्ता ही नही बनाना था तो वो हमसे शादी ही क्योंकि, आखिर क्यों एक-एक दिन अलग-अलग बहाने बना रही है। आज फिर अजय सुबह-सुबह तैयार होकर अपनें ऑफिस निकल चुका था। इधर अजय के निकलते ही रोज पूजा जमींदार की खोज में निकल जाती। एक दिन जमींदार की मुलाकात पूजा से हो गई। पूजा की मुस्कुराहट फिर एक बार जमींदार को पागल बना गई थी।

उसनें आगे बढ़ कर पूजा को आवाज लगाई पूजा का तीर ठीक निशाने पर लगा था वह रुक गई थी, जमींदार ने ललचाई नज़र से पूजा से पूछा कैसी हो तुम्हारी शादी-शुदा जिंदगी कैसे कट रही है। तभी पूजा ने मुस्कुराते हुए कहा आप ने जो सुख दे दिया है वो सुख अब कहां मिलने वाला है अजय से, आप जब से हमसे मिले है एक-एक दिन आपको हमारी चाहत खोजती है। किंतु मर्द जात होते ही ऐसे है अपना काम हो गया और भूल गए। इतने दिनों में एक बार भी क्या हमारी याद नहीं आई? अरे नही, याद तो तुम मुझे हर दिन हर पल आती हो, खैर! बोलो कब मिलना है जमींदार बोलते बोलते रुक गया था और पूजा उसके मंशा को भांप गई थी अतः दोपहर को घर आने का निमंत्रण दे दिया था। जमींदार दूसरे दिन पुनः पूजा के शरीर का भोग किया और पूजा का काम हो गया था।

इधर पूजा की नजर अब जमींदार के छोटे भाई और बेटे पर थी एक एक कर पूजा ने उन लोगों के साथ भी हमबिस्तर होकर दोनों को अपना शिकार बना ली। कुछ दिन बाद जमींदार का पूरा परिवार एड्स का शिकार हो कर इस दुनियां से चल बसा। इसकी चर्चा पूरे शहर में थी की आखिर जमींदार को एड्स की चलते उसकी पत्नी को एड्स हुआ ये समझ में आ रहा है किंतु जमींदार के भाई और उसके बेटे को भी एड्स हुआ ये किसी के समझ में नही आ रहा था। कुछ लोग तो ये भी कह रहे थे की देवर को अपने भाभी से रिश्ता होगा तभी वो इसका शिकार हुआ और इधर जमींदार के बेटे का उसके चाची से रिश्ता होगा तभी तो सारे एक एक कर इस दुनियां से चल बसे थे। जमींदार के मरने के बाद भी उसकी चर्चाएं सार्वजनिक हो गई थी।

आज अजय के सब्र का बांध टूट चुका था। शादी के काफी समय बीत चुके थे किंतु वो एक दिन भी पूजा के साथ हमबिस्तर नही हुआ था आज वो जिद करने लगा था पूजा उसे समझा रही थी तभी उसके सब्र का बांध टूट चुका था। आज पहली बार अजय ने पूजा को थप्पड़ जड़ दिया था। पूजा अपनी आखों से आसूं गिरा कर पूरी वाकया सुना रही थी और बता रही थी की बदले की भावना के चलते उसने हॉस्पिटल जाकर एड्स के मरीज के इंजेक्शन के निडिल को अपने शरीर में चुभा कर एड्स लेकर जमींदार के पूरे कुनवे को खत्म की और प्रतिशोध के रूप में बदला लिया।

आज मैं इतने दिनों से आपसे दूरी इस लिए बना रही थी की आपको भी ये रोग न लग जाए, अब बताईए मैं क्या करती, तमाम बातें सुनकर अजय सोच में पड़ गया था और सोच रहा था की आज मैंने पूजा को थप्पड़ क्यों मारा ये तो अपनें आबरू के बदले की भावना के चलते अपने जीवन की परवाह न करते हुए दरिंदों को मारा। अभी अजय सोच ही रहा था की पूजा की तबियत अचानक खराब हो गई अजय आनन फानन में पूजा को हॉस्पिटल ले कर गया कुछ देर बाद पूजा की सासें थम गई थी और अजय दहाड़ मार कर रोते-रोते स्टैचू बन गया था।

अशोक वर्मा “हमदर्द”
43, आर.के.एम लेन, चापदानी
पोस्ट – बैद्यवाटी हुगली, 712222

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