अशोक वर्मा “हमदर्द” की कहानी : बेटी का स्नेह बंधन

अशोक वर्मा “हमदर्द”, कोलकाता। आज जूही के मां की तेरहवीं थी। घर पर बहुत सारे रिश्तेदार इकट्ठा हुए थे, जूही को अपनें मां से बहुत प्यार था वो मां के रहते मायके में एक काम नही करती थी। जूही की मां हमेशा कहती बेटी है जहां जायेगी वहां तो काम करना ही पड़ेगा कम से कम मायका में तो आराम कर ले। इन्हीं कारणों से जूही की भाभी लता से जूही के मां का नही बनता था। लता हमेशा अपनें पति से झगड़ती वो कहती मैं यहां नौकरानी बन कर नही आई हूं, मेरा भी शरीर है मशीन को भी कुछ घंटों का आराम दिया जाता है। मेरे जिंदगी में तो आराम ही नहीं, एक तुम्हारी बहन है जो एक ग्लास पानी भी उठा कर नहीं पीती, भाभी मुझे ये दो भाभी मुझे वो दो, उसके बाद तुम्हारी मां है जो दिन भर कोई ना कोई काम बोलती ही रहती है। तभी आकाश ने लता को चूमते हुए कहा था, पगली! ननद है तुम्हारी, ये हमेशा तुम्हारे कल्याण का सोचती है। जब तक मां पिताजी है बेटियां बहुत इठलाती है और जब ये नही रहते बिना पहिए की गाड़ी हो जाती है मायके में।

अशोक वर्मा “हमदर्द”, लेखक

अभी जूही के शादी के साल भी नही बीते थे कि मां चल बसी थी। तेरहवीं के दूसरे दिन जूही आंख में आसूं लिए लाचार अपनें घर को निहार रही थी शायद उसकी आंखे अपनी मां को ढूंढ रहे थे। आकाश अपने बहन को इस प्रकार लाचार देख कर उसके पास गया और कहने लगा, तूं चिंता मत कर बहन मां नही है तो क्या हुआ अभी तुम्हारी भाभी है तुझे तेरे मायके में कभी अकेलापन का अहसास नही होने देगी। ऐसे भी अभी पिताजी तो है, जब दिल करे आ जाया करना। आज लता को भी अपने ननद पर दया आ रही थी। वो भी बड़े ही स्नेह से जूही को बोल रही थी आप चिंता मत करना जूही, मां नही तो क्या हुआ मैं तो हूं मां का हर फर्ज निभाऊंगी। तब तक दरवाजे पर गाड़ी आ चुकी थी, बहुत ही करूणामय दृश्य था। सब अपनें अपनें आखों से आंसू पोछ रहे थे, वही जूही के पिता को अपनें पत्नी के जाने से ज्यादा बेटी के आखों से ओझल होने का गम सता रहा था।

वो अपने करुणा को नही रोक सके और चिग्घाड़ मार कर रोने लगे, अचानक उनकी रुलाई लोगों को चीरती चली गई। यह देख जूही के भी सब्र का बांध टूट गया और वो पीछे मुड़कर अपने पापा के गले लग कर दहाड़ मार कर रोने लगी। कुछ क्षण बाद जूही बिदा हो गई। जूही के बिदा होने के बाद आज लता को आकाश की सारी बातें याद आ रही थी जो उसने जूही के लिए कहे थे। समय गुजरता चला गया, मां के मरने के बाद जैसे जूही को मायका जाने की इच्छा ही मर गई। इधर जूही दो बच्चों की मां भी बन गई। जूही का समय अब अपने बच्चो में ही कट जाता। इधर जूही के पिता हमेशा जूही की खबर लेते, लता भी हमेशा जूही को अपनें यहां बुलाती। मगर किसी ना किसी समस्या से घिरी जूही मायके नही जा पाती। आज जूही के पिता का फोन आया था वो कह रहे थे बेटा तुझे देखे हुए बहुत दिन हो गए आ जाओ, अब तक हम तुम्हारे बच्चों से भी नही मिल पाए, शरीर ऐसा की अब चला भी नहीं जाता जो मैं तुम्हारे घर तक चल कर आ जाते।

तुम्हारी मां नही है तो क्या हुआ…मैं तो अभी जिंदा हूं…तुझे कोई परेशानी नहीं होगी मुझसे मिलने आ जाओ। जूही अपने पिता के स्नेह और वेवसी पर केवल आंखों में आसूं हां पापा हां पापा के अलावा कोई शब्द निकल नही पाए, जैसे ही जूही के पिता ने फोन रखा वो फूट-फूट कर रोने लगी, वो सोचने लगी जब तक मां जिंदा थी कैसे मैं उछल कर शान से अपने मायका में रहती थी। अब तो वो रही नही, किंतु पिता जी का क्या दोष, वो तो मेरा बहुत ख्याल रखते थे। मुझे जब भी किसी चीज की आवश्यकता होती वो पाई पाई जोड़कर मेरे उस जरूरत को पूरा करते। यह सोच कर जूही का दिल बैठा जा रहा था। वो अगले सप्ताह अपनें बच्चों को लेकर मायके पहुंच गई। अच्छा था मई का महीना था और बच्चों के स्कूल की छुट्टी थी। अचानक जूही को अपनें सामने देख कर जूही के पापा अपने बेटी को गले लगाकर रोने लगे। पिता को रोता हुआ देख कर जूही भी फफक कर रोने लगी। पत्नी के देहांत के बाद जूही के पिताजी काफी कमजोर हो चले थे। यह अक्सर देखा गया है की जब भी दो हंसों का जोड़ा बिछड़ता है तो एक की हालत बिल्कुल खराब होती है।

जूही अपने पापा को टूटा हुआ और असहाय देखकर ऐसा महसूस कर रही थी जैसे वो अपने पापा को अपनें सीने में छुपा ले। मायके में जूही के महीनों कैसे निकल गए पता ही नही चला। जूही के पापा अपने नाती नतिनी के साथ ऐसे रहते जैसे घर में एक और बच्चा बढ़ गया हो। वो कभी घोड़ा बनकर बच्चो को सवारी करवाते तो कभी बिल्ली बन कर म्याऊ म्यायु करते, तरह तरह के खेलों से बच्चो का मनोरंजन करते। लता और आकाश दोनो हीं जूही का ख्याल रखते। मां के नही रहने के बाद भी जूही को परिवार के हर सदस्यों में मां का स्नेह दिखता था। आज फिर जूही अपनें मायके से विदा होने जा रही थी। जूही के पापा जूही के पैर पखार रहे थे जिनमे उनके आंसू भी सम्मिलित थे। जूही के आसूं भी रुकने के नाम नही ले रहे थे। इधर भैया और भाभी के आसूं भी जूही के सर पर गिर कर उसे मानों आशीर्वाद दे रहे थे तभी जूही के पिता ने एक कागज लाकर जूही को दिया और रोते हुए कहा – बेटा ये मेरे जायदाद का आधा हिस्सा है जो तुझे सौप रहा हूं अब मेरे जिंदगी का कोई ठीक नही, मैं अपनें जिंदा जी तुझे सौप देना चाहता हूं।

जूही ने कागज के टुकड़े को लेकर पढ़ा और उसे फाड़ दिया और कहने लगी..पापा आप मुझे इतना गिरा हुआ समझ लिए, आपके सारे संपत्ति पर मेरे भैया भाभी का हक रहेगा मुझे तो बस इस घर का प्यार मिल जाए मेरे लिए बहुत बड़ी संपत्ति है। मैं नही चाहती की आपके कलेजे को दो टुकड़ों में बांट लूं जिसे आप ने अपने खून से तैयार किया है। यह सब आकाश और लता सुन रहे थे। आज लता के मन में जूही के प्रति और स्नेह भर गया था। जूही ससुराल पहुंची ही थी की एक महीने बाद हीं आकाश का फोन आया की बहना पापा नही रहे।जूही मायके जाने के लिए तैयार हो रही थी और सोच रही थी की शायद पापा मुझे देखने के लिए ही जिंदा थे। उसने मेरे दोनों बच्चों से मिलकर परम् सुख का आनंद लिया और इस दुनियां से रुखसत हो गये। बेटियां मायके में बोझ नहीं होती, ये हमेशा मायके की भला हीं चाहती है बस उसे समझने की जरूरत है।

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