अशोक वर्मा “हमदर्द” की कहानी : चाहत

अशोक वर्मा “हमदर्द” कोलकाता। सुबह का समय था, गार्जियन अपनें अपनें बच्चों को स्कूल छोड़ने जा रहे थे। इधर रवि और दीप्ति अपनें बालकनी से ये नज़ारा देख रहे थे। तभी दीप्ति अपनें रुंधे गले से रवि से कह रही थी, रवि हमारे शादी के सात साल हो गये फिर भी हम लोगों को बच्चों का सुख नहीं मिला, लगता है हम लोगों के भाग्य में यह सुख नही है।कुछ क्षण के लिए रवि झेप गया था फिर खुद को संभालते हुए मजाकिया अंदाज में दीप्ति से कह रहा था, अरे पगली! तूं चिंता मत कर आज मैं तुझे यह सुख दे दूंगा, अब जाओ मेरा लॉन्च तैयार करो मैं भी निकलूं ऑफिस और ये बेफिजूल की चिंता मत किया करो, समय आने पर भगवान सब ठीक कर देंगे तुझे संतान सुख अवश्य मिलेगा। दीप्ति रवि से सिमट गई थी, कुछ क्षण बाद वो किचन में जाकर रवि का लॉन्च बॉक्स तैयार की और रवि को देते हुए कह रही थी ठीक से जाना और हां गाड़ी ठीक से चलाना आज कल के लड़के बहुत ही रफ़्तार में गाड़ी चलाते है उनसे बच बचाकर रहना। ठीक है बाबा, मैं अपना ख्याल रखूंगा तुम भी अपना ख्याल रखना और वो दीप्ति को चूम कर ऑफिस को चल पड़ा था।

आज रवि अपने ऑफिस में व्याकुल था कैसे शाम ढल गई उसे पता ही नही चला। रवि के ऑफिस के सारे स्टॉफ अपने-अपने घर चले गए थे किंतु रवि को दीप्ति की वो बातें बहुत परेशान कर रही थी जो उसने कहा था, रवि हम लोगों को यह संतान सुख कब मिलेगा। यह सोच कर रवि अपने आप को अक्षम मान असहाय बोध कर रहा था। वो पसीने से तर-बतर होकर बार-बार रुमाल से अपनें पसीने को पोछ रहा था तभी ऑफिस के चपरासी ने आकर रवि से कहा! सर सारे लोग चले गए ऑफिस बंद करना है तभी रवि की तंद्रा भंग हुई और वो घड़ी की तरफ देखा और चौक गया, काफी समय हो चुका था। रवि अपना बैग उठाया और चल पड़ा। कुछ क्षण ड्राइव करने के बाद रवि अपनें घर पहुंच चुका था।

अशोक वर्मा “हमदर्द”, लेखक /कवि

इधर दीप्ति दरवाजे पर खड़ी होकर रवि का इंतज़ार कर रही थी। वो रवि को देख कर उछल पड़ी जैसे वो रवि से वर्षों बाद मिली हो और वो रवि को चुमनें लगी। तभी रवि अपना बैग रख कर दीप्ति को अपनें गोद में उठा लिया और अपने बेडरूम में ले जाकर बिस्तर पर पटक दिया और कामवासना में लिप्त हो गया, किंतु फिर वही बात आज भी रवि चंद मिनटों में ठंढा हो गया। इधर दीप्ति पागल हो रही थी तभी रवि दीप्ति के चेहरे को अपनें हाथों में लेकर कहने लगा सॉरी दीप्ति आज भी मैं तुझे खुश नहीं कर पाया।तुम चिंता मत करो, मैं किसी अच्छे डॉक्टर से अपना ईलाज कराऊंगा और तुझे संतान सुख दूंगा। तभी दीप्ति कहने लगी अगर उससे भी ठीक नहीं हुआ तो? अरे पगली! सब ठीक होगा, तूं चिंता मत कर मैं हूं ना, फिर दोनो एक दूसरे से लिपट जाते है। कुछ क्षण बाद दीप्ति अपनें साड़ी को ठीक करते हुए बाथरूम की तरफ चल पड़ती है और पानी के झरनें से अपनें मन को शांत करती है।

दूसरे दिन रविवार था, रवि सुबह-सुबह बाज़ार निकलता है और एक रेस्टोरेंट में बैठ कर चाय पी रहा था तभी रवि का एक दोस्त वहां पहुंच गया था। वो रवि को अकेला देख कर पूछ रहा था की रवि तुम कैसे हो, आज वर्षों बाद हम लोग मिले है बताओ भाभी जी कैसी है। रवि बोला ठीक है तुम कैसे हो? मित्र ने सहजता से कहा सब ठीक है, किंतु ये तो बताओ कितनें बच्चे है? यह बात सुन कर रवि उदास हो गया और वो अपनें मित्र से बोला! उसी बात का तो रोना है भाई, शादी के सात साल हो गए किंतु एक भी संतान नही हुए, यही कारण है की तुम्हारी भाभी भी उदास रहती है। तो क्या तुमने डॉक्टर को नही दिखाया? दिखाया तो बहुत डॉक्टरों को किंतु सब ने एक हीं बात कही दोष मेरे में है। तो क्या इसका कोई निवारण नही है? रवि के मित्र ने कहा, निवारण है दूसरे के वीर्य का प्रत्यारोपण।

ये तो अच्छा ही है हमनें भी सुना है यह बिल्कुल गुप्त होता है न तो लेने वाले को ये पता होता है की किसने दिया और न ही देने वाले को पता होता है की किसे दिया गया। ऐसे में मेरे समझ से बस ये मन को मनाने वाली बात है और ऐसे भी जन्म तो भाभी जी ही देंगी, क्या फर्क पड़ता है। सारे कार्य तो मेडिकल टीम ही करेगी। सोचो रवि अब मैं चलता हूं, कह कर मित्र खड़ा हो गया। रवि कहने लगा अरे भाई इतने दिनों बाद मिले हो चाय तो साथ में पी लो, नही नही भाई, फिर कभी आज तो छोड़ ही दो, फिर मिलते है बॉय बॉय। कहकर रवि का मित्र चल पड़ा था, किंतु जाते-जाते वो एक बात छोड़ गया था की वीर्य प्रत्यारोपण गुप्त होता है और ये बात रवि के दिमाग में प्रवेश कर गया था। वो चाय पी कर बाजार की तरफ निकल पड़ा था और कुछ देर बाद बाजार से घर पहुंचा था।

आज की छुट्टी बिल्कुल दीप्ति के साथ वो बिताना चाहता था और ऐसा ही हुआ। रात हो चली थी और रवि बिस्तर पर आ गया था दीप्ति कह रही थी क्या बात है आज सुबह से ही रोमांस के मूड में है आप? हां! अरे कारण तो बताइए केवल हां कहने से नहीं होगा! हमें लग रहा है आप कुछ सोच रहे है आखिर क्या बात है हमसे तो शेयर कीजिए, दीप्ति कह रही थी। तभी रोमांस के अंदाज में रवि दीप्ति को अपने बाहों में भर कर उसके कानों में कुछ कहता है और रवि के बातों को सुनकर दीप्ति चौक गई थी, आपका दिमाग तो खराब नही हो गया है! आपको पता है आप क्या कह रहे है? ये कभी नहीं होगा जो आप चाहते है जानते है इसका अंजाम क्या होगा? दीप्ति झल्ला कर रवि को कहा। मैं जानता हूं कुछ नही होगा बस मैं जैसे बोल रहा हूं तुम वैसे वैसे करो मैं तुम्हारा शत्रु नहीं तुम्हारा शुभ चिंतक हूं समझी।

इसमें दोनों का हित है सब बढ़िया हो जायेगा, आगे की योजना मैं बता रहा हूं कल तक का समय है कल मैं दफ्तर से छुट्टी ले लूंगा बस तुम अपनी तैयारी कर लो हम दोनों किसी हिल स्टेशन चलते है ऐसे भी बहुत दिन हो गए हम लोग कहीं गये नहीं। घूम-फिर कर आयेंगे अच्छा लगेगा। दीप्ति रवि की योजना को स्वीकार कर ली किंतु वो रात भर सो न सकी और सुबह हो गए। आनन फानन में रवि का नाश्ता तैयार किया और उसे ऑफिस भेज दिया। रवि को अपनें दफ्तर से 3 दिन की छुट्टी मिल गई थी और अगली सुबह पति पत्नी टूर पर एक हिल स्टेशन निकल पड़े थे। वहां जाने के बाद रवि ने अपने नाम से दो कमरे बुक किए और नहा धोकर फ्रेस होकर प्राची (दीप्ति का ही बदला हुआ नाम) को लेकर घूमने निकल पड़ा।

नजारा बहुत ही मन मोहक था काफी सैलानी वहां पहुंचे थे किंतु प्राची का मन अशांत था। उसकी निगाहें किसी को खोज रही थी, तभी उसकी नजर एक बांका जवान पर पड़ी जो न जानें कब से प्राची को निहार रहा था। जब प्राची की निगाहें उससे मिली तो वो झेप गया तभी प्राची ने मुस्कुराकर उसे बल दिया और वो भी मुस्कुरा दिया था। प्राची का काम बन गया था, उसने पहले से तैयार अपनें बैग से कागज पर लिखा अपना नंबर निकाला और नीचे गिरा दिया और रवि को लेकर आगे बढ़ गई थी।उस लड़के को लगा था की ये बिंदास लड़की को मैं पसन्द हूं। उसने धीरे-धीरे उस कागज के टुकड़े के पास पहुंचा और उसे उठा कर चूम लिया, जिस पर लिखा था, एक नजर में आप मुझे भा गए, नीचे मेरा नंबर है आप केवल मैसेज में बात करिएगा, क्योंकि मेरे साथ मेरे पति है बॉय!

कुछ क्षण बाद घूमते फिरते रवि और प्राची अपने होटल के कमरे में आ गए थे। तभी प्राची के मोबाईल पर एक मैसेज आया, आप कहां है, मैं आपके दीदार के लिए पागल हो रहा हूं किंतु आप दिख नही रही है। मैं भी अपनें लिए एक कमरा बुक करने जा रहा हूं, ये मैसेज देख कर प्राची और रवि अपने कामयाबी पर अपने पंजे टकराते है और ठहाका मार कर हंसने लगे। तभी प्राची रवि से कहने लगी अरे अभी तो रुको, बहुत काम बाकी है और वो उस लड़के को मैसेज भेज रही थी, प्रिय ‘ तुम रूम की चिंता मत करो मैं अपने होटल में अपने बगल वाले रूम को तुम्हारे लिए बुक कर रही हूं, तुम चिंता मत करो आज की रात तुम्हारी और हमारी होगी, रात को जब हमारे पति सो जायेंगे तो मैं आपसे मिलने आऊंगी।

कुछ देर बाद होटल पैराडाइज में रूम नंबर आपको बता दूंगी, किंतु हां बड़े ही सावधानी से काम करनी है बातें केवल मैसेज में होनी चाहिए। कुछ देर बाद प्राची एक मैसेज भेज दी थी 104 और ये नंबर देख कर वो लड़का उछल गया था और प्राची को लेकर सपनों में खोये जा रहा था। शाम से रात हो गई थी इधर प्राची रवि को छोड़ कर उस लड़के के कमरे में नही जाना चाह रही थी उसे रवि से प्यारा इस दुनियां में कोई नहीं लगता था, कुछ क्षण बाद रवि को तकलीफ न हो प्राची नशे का एक दवा ड्रिंक में मिला कर रवि को दे दी थी और रवि सो गया था। प्राची रवि को सोया हुआ देख कर उसे चूम रही थी और वहां से उस लड़के के कमरे तक पहुंच गई थी जो पहले से उसका इंतजार कर रहा था।

प्राची को अपनें पास देख कर वो लड़का पागल हो गया था और कह रहा था बहुत देर कर दी सनम आते आते और दरवाजा बंद कर दिया था। दोनों एक दूसरे के आगोज में समा गए थे। कुछ क्षण बाद प्राची वहां से निकल कर अपनें कमरे में आ गई थी और रवि को निढाल देख कर आखों में आसूं लिए उसके बगल में सो गई थी। किंतु रवि को बीच में ही होश आ गया था और वो अपनें चालाकी पर खुश हो रहा था। इधर दीप्ति को भी पता चल गया था की रवि को सब पता चल गया है तो वो रवि को पकड़ कर रोने लगी थी तभी रवि दीप्ति को समझने लगता है और दोनों एक दूसरे से लिपट कर सो गए थे।

इधर सुबह होते ही रवि और दीप्ति होटल छोड़ दिए थे और दीप्ति अपना सिम निकाल कर तोड़ कर फेक दी थी और दोनों बस अड्डे तक पहुंचे थे। इधर वो नौजवान अपनें फोन से दीप्ति को फोन कर रहा था किंतु उसका फोन नॉट रिचेबल आ रहा था। फोन बंद देख कर उसका मन अशांत सा हो गया था, उसे लग रहा था की हम दोनों के इस हरक्कत से कोई अनहोनी तो नही हो गई। वो प्राची के कमरे की तरफ बढ़ा था किंतु वहां भी निराशा हाथ लगी दरवाजे पर ताला लगा था। वो रिसेप्सन में जाकर जानना चाहा कि दोनो दंपत्ति कहां गए तो रिसेप्सनिस्ट ने कहा सर, वो लोग तो सुबह ही अपना रूम छोड़ चुके है और ऐसे भी आप तो उनके रिश्तेदार हो जब उन्होंने आपका रूम बुक किया था तो यही बताया था। लड़के ने पूछा किंतु वो लोग गए किधर आप बता सकते है? नही सर, हम तो ये नही बता सकते, किंतु वो जब ऑटो रिक्शा बुक कर रहे थे तो इतना जरूर सुना था की मुझे बस स्टैंड तक जाना है।

फिर एक बार वो लड़का दीप्ति को फोन कर रहा था किंतु इस बार भी नॉट रिचेबल आ रहा था। व्याकुल वो लड़का बस स्टैंड की तरफ भागा ताकि एक बार फिर प्राची को देख सके और वो बस स्टैंड तक पहुंचा था, तभी प्राची की नजर उस लड़के पर पड़ती है इधर वो लड़का भी प्राची को देख लेता है। तभी बस अपने पूरे रफ्तार से आगे बढ़ने लगती है और प्राची उसे बाय बाय कह कर खिड़की के शीशे को ऊपर की तरफ चढ़ा ली थी और वो लड़का थम सा गया था। वो सोच रहा था की कल जो भी हुआ क्या वो उसके पति के रजा मंदी से हुआ आखिर क्यों? इधर चंद दिनों बाद पता चला की दीप्ति पेट से है और ये खुशी जानकर रवि अपनें कामयाबी पर खुश था।

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