अर्जुन तितौरिया : मां तुमने जो अपने आंचल की छांव स्नेह और प्रेम मुझ पर लुटाया…. मैं उसका ऋणी रहा इस बार ना सही अगले जन्म में शायद तेरा कर्ज उतार पाऊं…………. जब भी जन्म लूं तेरी कोख से ही लूं यह आशा करता हूं।
पिता जी मैं क्षमा प्रार्थी हूं
आपने अपने खून पसीने की कमाई से मेरी अच्छी परवरिश की मुझे अच्छी जीवन शैली मिले उच्च शिक्षा प्राप्त हो। यह हुआ भी किंतु मैं निराश हूं मैं आपके स्वप्न को पूर्ण ना कर सका जीवन में सफल ना हो सका जो मेरा लक्ष्य था वह मैं पूर्ण ना कर पाया।
जो स्वप्न तुमने देखें उनको पूरा ना कर पाया मैं कायर नहीं हूं….हालात से लाचार हो चुका हूं कठिन परिश्रम के पश्चात भी आशातित सफलता ना मिलने से मैं अब कुंठित हो चुका हूं।
आपके सारे सपने मैने चकना चूर कर दिए….
इतना कह आनंद ने अपनी गर्दन धड़……गड़…….धड़…….. गड़ आती रेल के चक्के के नीचे रख अपनी जीवन लीला समाप्त कर ली।
आनंद पढ़ने में होशियार था समझदार था माता पिता और छोटी बहन अर्पिता की आंख का तारा था।
यह सब आनंद ने अपनी जीवन लीला समाप्त करने से पूर्व अपने सुसाइड नोट में लिखी थी….आनंद की लाश को उठाते हुए पुलिस ने उसके कपड़ों की तलाशी ली जिसमें 400 रुपए और यह सुसाइड नोट बरामद हुआ।
पुलिस इंस्पेक्टर गोपाल ने यह सुसाइड नोट पढ़ कर सुनाया तो वहां खड़े प्रत्येक व्यक्ति की आंखों से आंसुओ की अश्रुधार बह उठी। उस अश्रुधारा का आवेग इतना तीव्र था की खुद अपने आंसू इंस्पेक्टर गोपाल नहीं रोक पाए।
आंसुओं के साथ-साथ था सिस्टम के खिलाफ क्रोध और आक्रोश……आखिर क्या गलती थी आनंद की?
जैसे वहां खड़ा हर व्यक्ति सिस्टम से यह प्रश्न कर रहा था।
आनंद के पिता दयाराम और माता सुनंदा पूरी कॉलोनी की शान थे।
आनंद हंसमुख शालीन भाषाई उच्च संस्कारों वाला युवा था।
आनंद पढ़ने में तेज खेल में हमेशा अव्वल रहता था।
अपने विद्यालय के शिक्षकों की आंखो का तारा था आनंद।
आनंद की खुदकुशी से माता सुनंदा ओर पिता दयाराम पूरी तरह टूट गए, बहन अर्पिता का रो-रो कर बुरा हाल था, हर कोई ढांढस तो बंधा रहा था किंतु वह खुद के आंसुओं को काबू में नहीं रख पा रही थी।
आज फिर एक युवा सड़े-गले सिस्टम की भेंट चढ़ गया।