नई दिल्ली रेलवे स्टेशन में भगदड़ और इसके लिए जिम्मेदार कौन है?

नई दिल्ली। मुझे नहीं पता कि कल रात नई दिल्ली रेलवे स्टेशन में भगदड़ किन परिस्थितियों में हुई और इसके लिए कौन जिम्मेदार है? लेकिन कुछ प्रश्न मेरे दिमाग में कौंध रहे हैं-

1) पहला यह कि नई दिल्ली देश की राजधानी का सबसे बड़ा और उन्नत रेलवे स्टेशन है, देश के किसी दूरस्थ क्षेत्र या छोटे कस्बे का नहीं। यहां हर प्लेटफार्म पर सीसीटीवी कैमरे लगे हैं। यात्रियों की स्टेशन में घुसने से पहले जांच होती है। पहाड़गंज और अजमेरी गेट दोनों ही तरफ से अंदर आने के और बाहर जाने के तय रास्ते हैं। फिर भी क्या रेलवे प्रशासन को बिल्कुल पता नहीं चला कि कितने लोग स्टेशन में प्रवेश कर चुके हैं और क्या स्टेशन इतने लोगों को हैंडल कर सकता है?
2) अगर ज्यादा लोग आ रहे थे तो उन्हें प्लेटफार्म से या स्टेशन में प्रवेश करने से पहले बैरिकेडिंग करके क्यों नहीं रोका गया?

3) अगर यात्रियों के गुस्से का या किसी और बात का डर था तो भी ऐसा करना चाहिए था क्योंकि यह गुस्सा जरूर होते लेकिन उनकी जान तो बच जाती। वैसे भी सरकार और प्रशासन से इस देश का एक वर्ग बिना बात के हमेशा ही गुस्सा रहता है। कुछ सौ लोग उसमें बढ़ जाते।
4) अगर रेलवे को महाकुंभ के बहाने कमाई करनी थी, अधिक से अधिक टिकट बेचनी थी। तब भी यह दांव उल्टा पड़ा क्योंकि अब तो जितनी कमाई नहीं की उससे अधिक मुआवजा देना पड़ेगा।

5) प्रश्न यह भी है कि सारी स्पेशल ट्रेन एक ही स्टेशन और एक ही प्लेटफार्म से क्यों चलाई जा रही हैं। दिल्ली में और भी कई स्टेशन हैं। नई दिल्ली में और भी कई प्लेटफार्म हैं।
6) किसी प्लेटफार्म पर कोई स्पेशल ट्रेन अचानक कैसे आ सकती है? उसकी तैयारी तो रेलवे ने पहले ही कर रखी होगी? फिर एकदम से घोषणा क्यों हुई कि स्पेशल ट्रेन आने वाली है?
7) नई दिल्ली रेलवे स्टेशन पर आज जितनी बैरिकेडिंग है, बड़े अधिकारी हैं, सुरक्षा व्यवस्था है। इसके आधे भी अगर कल होते तो शायद दुर्घटना नहीं होती।

8) महाकुंभ की बात छोड़ भी दे तो बिहार की ओर जाने वाली सभी ट्रेन हमेशा ही भरी रहती हैं चाहे दीपावली हो, छठ हो या कोई और बड़ा त्यौहार। सामान्य दिनों में भी कोई ट्रेन शायद ही बिहार रुट पर खाली जाती हो। मैं टेक्निकल चीजें तो नहीं समझता लेकिन मन में यह प्रश्न जरूर है कि यदि रेलवे राजस्थान और लखनऊ के लिए डबल डेकर ट्रेन चला सकती है तो बिहार के लिए क्यों नहीं चलाती?

रेल प्रशासन को, जिम्मेदार लोगों को इन प्रश्नों पर विचार करना चाहिए और यदि कोई दोषी है तो उसे कड़ी सजा भी देना चाहिए। हालांकि यह सिर्फ घटना का एक पहलू है। दूसरा महत्वपूर्ण पहलू यह है कि –

1) यही रेलवे पिछले एक महीने से कई हजार ट्रेनों का संचालन कुंभ मेले के लिए सफलता पूर्वक कर चुकी है। लेकिन उनकी यह एक नाकामयाबी तमाम सफलताओं पर भारी पड़ रही है।
2) जिस देश में लिखने के बावजूद लोग रेलवे को अपनी संपत्ति तो छोड़िए सरकारी संपत्ति भी न समझते हों, जिनका व्यवहार इतना अराजक हो कि बिना टिकट एसी के डिब्बो में न घुसने दिया जाए तो उसके शीशे तोड़ डालते हैं। ऐसी भीड़ को नियंत्रित करना किसी भी लोकतांत्रिक व्यवस्था के लिए बहुत कठिन है।

3) इस देश के नेताओं का एक वर्ग ऐसे अराजक तत्वों, घुसपैठियों का दिन रात समर्थन करता है। उनके नाम की माला जपता है।
4) इस देश का मीडिया अराजक तत्वों तो छोड़ो, आतंवादियों तक को अशिक्षित, बेरोजगार, गरीब मास्टर का बेटा कहकर क्लीन चिट देता रहता है।

5) न्याय व्यवस्था भी कुछ ऐसी है कि आतंवादियों के लिए रात के दो बजे कोर्ट खुल जाता है और साधारण लोगों के मामले पीढ़ियों तक चलते रहते हैं।
6) सरकार भी इस भीड़, अराजकता के लिए जिम्मेदार है। क्योंकि जनसंख्या को नियंत्रित करने के बजाय वह गर्भवती महिलाओं को खैरात बांट रही है। जिन्होंने अनाप शनाप परिवार बढ़ाया केवल उन्हें आयुष्मान योजना जैसी सरकारी चिकित्सा सेवा का लाभ दे रही है।

7) जो लोग कल भगदड़ में मारे गए , उन सभी के प्रति मेरे मन में गहरी सहानुभूति है। इसलिए नहीं कि वह मेरे परिवार के थे, मुहल्ले या गांव के थे। बल्कि इसलिए क्योंकि तमाम दुष्प्रचारों, प्रलोभनों और कठिनाइयों के बावजूद वह महाकुंभ जा रहे थे। उन्हें अपने धर्म में, अपनी परंपरा में आस्था थी।
8) इस दुर्घटना का मुझे इसलिए और अधिक दुख है क्योंकि इस देश के कुछ गिद्ध हर हाल में महाकुंभ को फ्लॉप घोषित करना चाहते थे। महाकुंभ के हर छोटे किंतु बुरे पहलू का उन्होंने जोर शोर से प्रचार किया।

इस दुर्घटना के बाद उन सनातन द्रोहियों को कुंभ मेला, सनातन धर्म और एकजुट होते हिंदू समाज को गरियाने का एक और मौका मिल गया है।

(विनय सिंह बैस)
कल की भगदड़ से बेहद आहत

(स्पष्टीकरण : इस आलेख में दिए गए विचार लेखक के हैं और इसे ज्यों का त्यों प्रस्तुत किया गया है।)

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